भ्रष्टाचार, अशिक्षा, जात-पात, छुआ छूत, दहेज प्रथा जैसी अनेक समस्याएं हैं हमारे देश में, जिन्हें हम अक्सर अपनी दैनिक जीवन में देखते और महसूस करते हैं। ये समस्याएं हमें हर काम में, हर शहर, हर गांव, हर कस्बे में दिखाई देती हैं। खेल के मैदान से लेकर सिनेमा जगत तक, हर जगह समस्याएं हैं। ऐसा नहीं है कि ये समस्याएं आज के समय में ही उत्पन्न हुई हैं। ये पुराने समय से ही चली आ रही हैं। अगर भारतीय सिनेमा जगत की बात करें, तो यहां भी समस्याएं हैं, और असमानताएं भी। लेकिन कहते हैं न, जहां चाह है वहीं राह है। असमानताओं के बावजूद खुद को साबित करना, और आने वाले समय के लिए रास्ते बनाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। आज हम भारतीय सिनेमा जगत से जुड़ी एक ऐसी ही अभिनेत्री के बारे में जानेंगे, जिन्होंने भाषा और क्षेत्र से जुड़ी लोगों की मानसिकता को बदल कर उत्तर और दक्षिण भारत के भेद को ही खत्म कर दिया।
भारतीय सिनेमा जगत पर प्रकाश डालें तो हम देखेंगे कि आज के समय में यहां अनेक भाषाओं में फिल्में बनती हैं। भोजपुरी, हिंदी, तमिल, बंगाली, पंजाबी जैसी अनेक भाषाएं है, जिनकी फिल्मों के दर्शक दीवाने हैं। यह देखकर बहुत खुशी होती है कि हमारे पसंदीदा कलाकार क्षेत्रीय भाषाओं के साथ साथ हिंदी भाषा की फिल्मों में भी काम करते हैं, और वहां भी नाम कमाते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि ऐसी परंपरा की मजबूत नीवं किसने रखी थी? चलिए आज जानते है इसका जवाब। अगर बीते हुए समय पर नजर डाले तो सबसे पहला नाम आता है मशहूर अदाकारा ‘वैजयंती माला’ का।
वैजयंती माला
13 अगस्त 1936 को चेन्नई के तमिलनाडु में जन्मी वैजयंती माला हिंदी फिल्मों में एक नया इतिहास लेकर आती हैं। उनके माता पिता उन्हें प्यार से ‘पापाकुट्टी’ कहकर बुलाते थे, जिसका अर्थ छोटा बच्चा होता है। उनकी मां वसुंधरा चालीस के दशक की मशहूर अभिनेत्री थीं। एक मशहूर अभिनेत्री की बेटी होने की वजह से वैजयंती माला को अदाकारी में दिलचस्पी होने लगी, या यूं कहे तो उन्हें यह कला अपनी मां से विरासत के रूप में मिली। उन्होंने 13 साल की उम्र से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। 1949 में तमिल भाषा में आई फिल्म ‘वाझाकाई’ उनकी पहली फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने तमिल भाषा में कई सुपरहिट फिल्में दी, और तमिल फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री बन गई।
करीब पांच साल की उम्र में वैजयंती माला को यूरोप जाने का मौका मिला। मैसूर के महाराज के सांस्कृतिक दल में वैजयंती अपनी मां, पिता और नानी के साथ गई थीं। यह 1940 का वाकया है। यूरोपीय देश वेटिकन सिटी में वैजयंती माला को पोप के सामने नृत्य करने का अवसर मिला। उन्होंने अपने नृत्य प्रदर्शन से सबका मन मोह लिया। पोप ने एक बॉक्स में चांदी का मेडल देकर उन्हें पुरस्कृत किया। इसके बाद वैजयंती माला ने गुरु ’अरियाकुडी रामानुज आयंगर’ और ‘वझूवूर रमिआह पिल्लै’ से भरतनाट्यम सीखा।
जब हिंदी फिल्मों में रखा कदम
यह वह समय था, जब क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्रियों को हिंदी भाषा की फिल्मों में काम करने का अवसर नहीं मिलता था। लेकिन वैजयंतीमाला ने इस परंपरा को भी तोड़ दिया। जिस वक्त वैजयंती माला हिंदी सिनेमा में आईं, उस वक्त सुरैया, मधुबाला, नरगिस और मीना कुमारी आदि अभिनेत्रियां सिने पटल पर छाई हुई थीं। वैजयंती माला को इनके बीच ही अपनी अलग पहचान बनानी थी, जो बेहद ही चुनौतीपूर्ण काम था। उन्होंने अपने अभिनय और नृत्य कला के बूते यह साबित कर दिया कि वह भी किसी से कम नही हैं। वैजयंती माला उन अभिनेत्रियों में शुमार हैं जिन्होंने हिंदी फिल्मों में ‘सेमी क्लासिकल डांस’ की शुरुआत की।
उन दिनों हिंदी सिनेमा में शास्त्रीय संगीत और नृत्य का प्रचलन नहीं था। दक्षिण भारत की खूबसूरती को समेटे वैजयंती माला के नृत्य में थिरकते पांव जब हिंदी सिनेमा तक पहुंचे तो उनके घुंघरू की खनकती हुई आवाज से पूरा बॉलीवुड गूंज उठा। वैजयंती माला एक ऐसी अभिनेत्री और नृत्यांगना थीं, जिनका दूसरा विकल्प आज तक खोजा नहीं जा सका। उनके नृत्य में थिरकते हुए पांव दर्शकों को अपना दीवाना बना देते थे। उनकी दीवानगी को ध्यान में रखते हुए फिल्मों की कहानी लिखी जाने लगी, जो एक नई परंपरा रच डालती हैं। वैजयंती माला दक्षिण भारत की फिल्मों की ऐसी अभिनेत्री थीं, जिनके नक्शे कदम पर चलते हुए आज कई अभिनेता और अभिनेत्रियां हिंदी फिल्मों में काम कर रहीं हैं।
करियर की दूसरी पारी
भारतीय सिनेमा जगत और भारतीय राजनीति का हमेशा से एक अटूट रिश्ता रहा है। कई ऐसे कलाकार हुए हैं, जिन्होंने फिल्मों के साथ साथ राजनीति में भी कदम रखा है। वैजयंती माला भी उन्हीं कलाकारों में से एक हैं। 1984 में वैजयंतीमाला ने कांग्रेस के टिकट पर चेन्नई संसदीय क्षेत्र से तमिलनाडु आम चुनाव में हिस्सा लिया और जीत हासिल की। इस दौरान उन्होंने भाजपा के इरा सेजियान को करारी शिकस्त दी। 1989 में भी उन्होंने तमिलनाडु आम चुनाव में जीत हासिल की।
पांच बार फिल्म फेयर अवार्ड विजेता और 1996 के फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित वैजयंती माला की आंखो की चमक, पांव की थिरकन, सनसनाती हंसी और बेमिसाल नृत्य कला भारतीय फिल्म जगत में एक नया दौर लेकर आते हैं। आने वाले समय में भी इनके नक्शे कदम पर चलते हुए कई लोग क्षेत्रीय भाषाओं के साथ साथ हिंदी फिल्मों में काम कर उत्तर दक्षिण के भेद को और ज्यादा खत्म करेंगे। онлайн займ
Leave a Reply