दान, शायद जिससे बड़ा कोई पुण्य नहीं। दान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अगर आपके पास जीवन में दान करने का विकल्प हो तो उसे कभी नहीं गवाना चाहिए। ईश्वर स्वयं कहते है की दान से बड़ा महान काम जग में कोई दूसरा नहीं। इस पुण्य कर्म का फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। आज हम एक ऐसी ही कथा देखेंगे जिसमे दान के महत्व को दर्शाया गया है।
एक समय की बात है, एक राजा के पास खूब धन – दौलत, ऐश्वर्य था, समृद्ध राज्य था परन्तु उसे दान का महत्त्व नहीं पता था। एक बार एक भिक्षु साधु उनसे दान मांगने आया। राजा ने उनसे कहा – आपको जो कुछ चाहिए वह मैं आपको अवश्य दूंगा पर दान के नाम पर नहीं।
राजा ने साधु से कहा कि दान व्यर्थ है। कोई भी इंसान दान दिखावे हेतु करता है। कोई भी अपनी ज़रुरत को, प्रिय वस्तु को को दान नहीं करता। इस पर साधु मुस्कुराये और उनसे बोले ” हे राजन् ! कभी किसी भिखारी से दान मांग कर देखिएगा , आपको आपका उत्तर स्वयं मिल जायेगा। पर हां उसके दान दी हुई वस्तु का दोगुना धन उसे अवश्य दीजियेगा। ”
राजा उनकी इस बात पर हामी भरते है कि वह ज़रूर इस कार्य को करेंगे। इसके बाद वह साधु को कुछ चीज़े देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते है तो साधु मना कर देते है, वह कहते है की “अब तो राजन् मैं आपसे दान तभी लूंगा जब आप इसका महत्तव समझ आएगा ।” यह कह कर साधु वहां से चले जाते है।
कुछ दिनों के बाद राजा अपने रथ पर राज्य का भ्रमण कर रहे थे। उन्हें तभी रास्ते में एक भिखारी नज़र आता है । राजा ने सोचा की यह साधु की बात को परखने का सही समय है। राजा ने भिखारी के पास जा कर कहा की आप मुझे दान में कुछ प्रदान करे, मेरे गुरु ने कहा है भिखारी से दान लेने पर मेरी सारी मुश्किलें समाप्त हो जाएँगी।
इस बात से भिखारी हैरान था। पर उसने दान देने का निश्चय किया। उसने अपनी झोली में हाथ डाला तो पाया उसके पास तो सिर्फ एक मुट्ठी ही अनाज है, जो आज उसके परिवार के भोजन के लिए है। लेकिन दान से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता यह सोच कर भिखारी ने राजा को आधी मुट्ठी अनाज दे दिया। भिखारी ने सोचा की आज हम परिवारजन आधा पेट भोजन करके ही सो जाएंगे। यह देख राजा भावविभोर हो गए। उनका मन भर आया, उन्हें अपनी भूल का एहसास हो गया।
राजा ने अनाज के दोगुने वज़न की धन की पोटली उस भिखारी को दी और कहा की इसे घर जा कर ही खोलना। घर जा कर भिखारी ने जब पोटली खोली तो पाया उसमे सोने के सिक्के है, वह समझ गया की राजा ने उसे दान के बदले यह दिया है।
इस बीच राजा तुरंत उस महात्मा भिक्षुक साधु के पास गए। उनसे हाथ जोड़ कर क्षमा मांगी व बतलाया कि ” हे साधु महाराज ! आज मेने दान के महत्व को जान लिया है। मै देख चुका हूँ की किस प्रकार दान से बड़ा पुण्य कोई दूसरा नहीं होता।”
इस पर साधु ने कहा ” राजन् अब चूँकि आप दान के महत्व को समझ गए है तो मुझे दान देने की कृपा करे ”
राजा ने कहा ” मुनिवर आप जो चाहे, जो भी इस संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है वह मांग ले, मैं आपको वह अवश्य दूंगा ”
इस पर साधु कहते है कि “इस समय तो उस आधी मुठी अनाज से ज्यादा मूल्यवान और कुछ नहीं है। आप मुझे वही देने की कृपा करे। ”
राजा उन्हें वह दान दे कर, उनसे आशीर्वाद व सीख ले कर वहां से चले जाते है। займ на карту онлайн
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