इंसान के अंदर अनेक प्रकार की प्रवृति होती हैं। कोई ज्यादा गुस्से वाला होता है, तो कोई भावुक, कोई लालची तो कोई दयालु। ऐसी ही एक प्रवृति है कंजूसी, जो अक्सर हम अनेक लोगों में देख सकते हैं। कंजूस प्रवृत्ति के लोग अक्सर अपनी संपत्ति दूसरों में बांटना नहीं चाहते। हर इंसान की प्रवृति उनकी परिस्थिति के अनुसार ही बनती है। जरूरत के अनुसार कंजूसी करना भी सही है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं जहां कंजूसी करने से हानि होती है और दिल खोल कर बांटने ने लाभ। वो चीज है ज्ञान। अगर हमारे पास ज्ञान है, तो हमें इसे खुद तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे बांटते रहना चाहिए। इससे हमारा ज्ञान कम नहीं होता बल्कि और बढ़ता जाता है। आइए, इस बात को सिद्ध करने के लिए हम एक कहानी सुनते हैं।
गुरु की अमानत
एक लोक कथा के अनुसार एक समय एक आश्रम में एक संत अपने दो शिष्यों के साथ रहते थे। उन्होंने अपने शिष्यों को बड़ी अच्छी शिक्षा दी थी। दोनों शिष्य हर कला में निपुण थे। एक दिन संत ने उन दोनों को अपने पास बुलाया और दोनों को एक एक डब्बा दिया। उन्होंने कहा कि मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। मुझे वापस लौटने में दो साल लग जाएंगे। इन डिब्बों में गेहूं है, इन्हें तुम दोनों संभाल कर रखना। जब तक मैं वापस ना आऊं, तब तक इन डिब्बों की जिम्मेदारी तुम दोनों की है। इसके अंदर के गेहूं खराब नहीं होने चाहिए। इतना कहकर संत यात्रा पर निकल पड़े।
दोनों शिष्यों ने संत के आदेश का पालन किया। दोनों ने डिब्बे अपने पास रख लिए। एक शिष्य ने डिब्बे को अपने गुरु की अमानत मानकर पूजा घर में रख दिया। वह हर दिन उसकी पूजा भी करने लगा। दूसरे शिष्य ने ठीक इसके विपरीत काम किया। उसने गेहूं के दानों को खेतों में डाल दिया। कुछ समय बाद जब फसल तैयार हुई तो उसके पास गेहूं के दानों के ढेर लग गए। एक डिब्बा गेहूं के दानों से उसने पूरी फसल तैयार कर ली थी।
परीक्षा का परिणाम
दो साल बाद जब संत तीर्थ यात्रा से वापस लौटे, तो उन्होंने अपने शिष्यों से अपने गेहूं के डिब्बों की मांग की। पहले शिष्य के डिब्बा वापस करते हुए कहा कि उसने अच्छी तरह से उनकी देखभाल की है। वह रोज उनकी पूजा भी करता था। यह सुनकर है जब संत ने डिब्बे को खोला तो वह आश्चर्यचकित रह गए। गेहूं के दाने खराब हो गए थे। उसमें कीड़े लग गए थे और बदबू भी आ रही थी। यह देखकर शिष्य बहुत शर्मिंदा हुआ। शर्म के मारे उसने अपना सर झुका लिया।
जब संत ने दूसरे शिष्य से गेहूं के दाने मांगे तो उसने एक बड़ा सा थैला संत के सामने रख दिया। वह थैला गेहूं से भरा हुआ था। थैले को देखकर संत अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। मैं यह देखना चाहता था कि तुम दोनों ने मेरे ज्ञान को अपने जीवन में उतारा है या नहीं। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुमने मेरे दिए हुए ज्ञान का सही जगह उपयोग किया।
सीख
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कंजूसी छोड़ दान करने की प्रवृत्ति अपनानी चाहिए क्योंकि दान करने से वस्तुएं घटने की जगह बढ़ती हैं। अगर हमारे पास ज्ञान है तो हमे सही जगह इसका इस्तेमाल करना चाहिए। गुरु और शिष्य की यह कहानी अगर आपको पसंद आई हो तो इसे और भी लोगों तक जरूर पहुंचाएं। payday loan
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