नरगिस समझती थी बेटा संजय दत्त "गे"हैं, दोस्तों के आने पर कर लेते थे दरवाज़ा बंद!

मुन्ना भाई को कौन नहीं जानता। भारतीय फ़िल्मी जगत मे यह नाम जब-जब आता हैं, तब-तब संजय दत्त को याद किया जाता हैं और हमेशा किया जाएगा। हाल ही मे एक दो साल पहली ही रणबीर ने संजय दत्त के ऊपर एक बायोपिक बनाई थी। भले ही वह बायोपिक थी लेकिन, उसमे उनकी जिंदगी का हर किस्सा नहीं जोड़ा गया था। इसके साथ-साथ उनकी ज़िन्दगी के ऊपर एक किताब भी लिखी गयी थी। उसी किताब में से एक-दो किस्सों मे से कुछ किस्सों के साथ आज हम आपको वाकिफ कराने आए हैं।

माँ समझती थी लड़का “गे” हैं

 

नरगिस दत्त अपने जमाने की सबसे मशहूर हीरोइनों में से एक मानी जाती थी। उन्होंने फिल्मी जगत को कुछ बहुत ही उम्दा फिल्में दी है। परन्तु, उनका बेटा उनकी तरह नाम नहीं कमा पाया। अपनी ज़िन्दगी के बीच रास्ते में ही संजय दत्त बिगड़ गए थे। इसी के चलते उनकी जिंदगी की लगाम उनके हाथ से छूट गई थी। यह बात तब की है जब उनसे मिलने उनके दोस्त आया करते थे। जब भी उनके दोस्त आते, तब वह उनको अंदर बुलाकर दरवाजा बंद कर देते थे। ऐसा करने पर माँ को लगता था कि कहीं बेटा कुछ गलत तो नहीं कर रहा है। हालांकि गलत कर रहे थे या नहीं वह तो उनको नहीं पता था। लेकिन, माँ के मन में यह विचार ज़रूर उठा था कि कहीं बेटा गे तो नहीं हैं। परंतु, ऐसा नहीं था और यह सब उनकी दिमागी पहल थी।

लेना शुरू कर दिया था ड्रग्स

बच्चे जब अपनी बढ़ती उम्र में होते हैं, तब उनके सामने जिंदगी के दो पहलू होते हैं। पहला रास्ता वो होता है जो उनको एक कामयाब सफर पर ले जाता है। वही दूसरा रास्ता वो होता है जो उनकी जिंदगी बर्बाद कर देता है। ना चाहते हुए भी संजय दत्त उन रास्तों में भटक गए थे। इसी कारण उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए एक बहुत ही गलत रास्ता चुन लिया था। इस रास्ते के तहत वह गलत लक्षणों में पड़ गए थे और उन्होंने गलत संगती में आकर ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था। ड्रग्स के नशे में वो इतना चूर हो चुके थे कि उनको यह भी नहीं पता चल पाया कि दुनिया मे क्या चल रहा है। इसी वजह से उनको अपनी जिंदगी में बहुत सारे दुख भी झेलने पड़े थे।

रॉकी फिल्म और माँ का देहांत

हर माँ की दिली तमन्ना होती है कि वह अपनी ज़िन्दगी मे अपने बच्चों को तरक्की हासिल करते हुए देख पाए। परन्तु, नरगिस के नसीब में यह दिन नहीं था। क्योंकि जब तक वह दिन आता तब तक वह अपना शरीर छोड़ चुकी थी। यह बात तब की है जब संजय दत्त की पहली फिल्म रॉकी सिनेमा पर आने वाली थी।

भले ही बाप सुनील दत्त ने माँ नरगिस से यह बात छुपाई थी कि उनका बेटा बुरे लक्षणों में पड़ गया है। परंतु, माँ को यह बात समझ में आ गई थी। इस बात को छुपाने का एक बात बड़ा कारण यह भी था कि उन को कैंसर था। और सुनील दत्त उनको और दुख नहीं देना चाहते थे। जल्द ही एक माँ की आखिरी तमन्ना पूरी होने वाली थी। वह अपने बेटे को तरक्की छूते हुए देखने ही वाली थी की बीच मे उनकी तबियत बहुत ज़्यादा बिगड़ गयी थी। तबियत ज्यादा बिगड़ने की वजह से उन्हें फ़िल्म देखने का मौका नहीं मिल पाया था। रॉकी फ़िल्म बड़े पर्दे पर 26 अप्रैल, 1981 मे आई थी और घर में बने थिएटर में 8 मई को फिल्म दिखाया जा रहा था, लेकिन नरगिस का देहांत 3 मई 1981 में हो गया था।

माँ से अच्छा कोई नहीं

संजय दत्त के लिए उनकी जिंदगी में उनकी माँ ही सबकुछ थी। वह जो भी करते अपनी माँ को बारे मे ही सोच कर करते थे। यह बात हमें बेशक उनकी बायोपिक संजू में भी देखने को मिली है। साथ ही साथ इस काव्य का वर्णन संजय दत्त की जिंदगी पर लिखी गई किताब में भी किया गया है। उसमें यह साफ दर्शाया गया हैं कि वह अपनी माँ से कितना प्यार करते थे। परंतु, बुरे लक्षणों मे फसने की वजह से वह जितना उनके पास आना चाहते थे, उतना ही उनसे दूर चले गए थे।

जब उनकी माँ अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। उस दिन में भी वह नशे में धुत थे। यहाँ तक की जब उनकी माँ इस दुनिया को छोड़ कर जा रही थी। तब भी उनको कोई होश नहीं था और जब तक वह ठीक होते तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस हादसे के बाद उनको यह अहसास हो चुका था कि उनकी इस लत ने उनकी पूरी जिंदगी को तहस-नहस करके रख दिया है।

लत छुड़ाने के लिए गए थे विदेश

 

पिता सुनील दत्त से अपनी बेटे की बर्बादी और नहीं देखी जा रही थी। अब हालात उनके हाथों मे नहीं थे। इसके चलते उन्होंने जबर्दस्ती उन्हें जर्मनी और अमेरिका जैसे बड़े देशों में इलाज के लिये भेज दिया। वह चाहते थे कि उनका बेटा वहां से बिल्कुल सही होकर वापस आए। बीच में तो वो वहां से भाग भी गए थे। पर फिर वह वापस लौटकर कर आए और अपना इलाज करवाया। कुछ सालों बाद फिर से एक नई छवि लेकर वह दुनिया के सामने आए। भले ही वो अपनी जिंदगी में ज्यादा अच्छी फिल्में ना कर पाए हो । परंतु, उन्होंने जितना भी काम किया, वह काबिले तारीफ था।

शुरू किया था एक नया ट्रेंड

संजय दत्त पहले ऐसे इंसान थे जिन्होंने 90 के दशक मे बॉडी बनाने का ट्रेंड शुरू किया था। उनके स्टाइल पर लड़कियां मरती थी और उनकी बॉडी पर लड़के फिदा थे। हर लड़का चाहता था की वह अपना लुक उनके जैसा बना सके। अपने इस लुक की वजह से बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियां भी उन पर फिदा थी। कई के साथ तो उनका नाम भी जोड़ा गया था।

ज़्यादातर हम यही देखते आए हैं की संजय दत्त मीडिया का बेखौफ तरीके से सामना करते हैं। वह अपनी पूरी जिंदगी को सरल भाव में मीडिया के सामने बोल देते हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी वह सच बोलने से बिल्कुल भी नहीं कतराते हैं। यही एक असली कलाकार और एक सच्चे इंसान की पहचान होती है। срочный займ


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