जब महमूद साहब ने बचाया था अमिताभ बच्चन का फिल्मी केरियर

वो मशहूर कॉमेडियन जिसकी अदाएं किसी रोते हुए इंसान को हँसाने की ताकत रखती थी। जिनका नाम आते ही दर्शकों के होठों पर बरबस ही हँसी बिखर जाती। हिंदी सिनेमा के ऐसे ही एक अनूठे फनकार महमूद के जिंदगी से जुड़े कुछ छुए अनछुए पहलुओं पर हम रोशनी डालेंगे। महमूद साहब को उनके हाव भाव और आवाज के चलते उन्हें बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में किंग ऑफ़ कॉमेडी के तौर पर जाना जाता है। उनकी बेमिसाल अदाकारी के सामने कोई दूर दूर तक नहीं टिकता है।

वैसे तो महबूब साहब ने लगभग हर तरह के किरदार निभाए, लेकिन अधिकतर उनके हास्य कलाकार के तौर पर की गयी भूमिकाओं के चलते उन्हें अधिक पहचान मिली। उनके कॉमेडी के किरदारों को दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया। अपने अभिनय और कॉमेडी के लिए उन्होंने लीक से हटकर अपनी अलग शैली बनायीं। उनके किरदार एक तरफ जहाँ दर्शकों के हँसा हँसा कर पेट फुला देते थे तो वहीँ दूसरी तरफ उनकी अनूठी अदाकारी के चलते दर्शक रोने को मजबूर हो जाते थे। ऐसा हुनर महमूद सरीखे अभिनेताओं में ही मिल सकता है।

लेकिन फिल्मों में आना भी उनके लिए काफी संघर्षों से भरा रहा। उन्हें यहाँ तक सुनना पड़ा था कि वे कभी अभिनेता बन ही नहीं सकते। लेकिन फिर भी उन्होंने हर नहीं मानी। हालाँकि महमूद साहब के पिता मुमताज अली भी फिल्मों से जुड़े थे। लेकिन उन्हें शराब पीने की बुरी लत लग गयी। लिहाज़ा उनके इस आदत ने परिवार को आर्थिक तंगी की हालत में ला दिया। घर की बिगड़ती हालत को देखते हुए महमूद साहब ने लोकल ट्रेनों में टाफी बेचना शुरू किया। उन्होंने अख़बार बेचे, रिक्शे चलाये, और भी न जाने कितने छोटे मोटे काम किये। और मुफलिसी के इस दौर में अपना हौसला बनाये रखा।

महमूद साहब ने शुरुवात में हिंदी फिल्मों में काफी छोटे छोटे रोल किये। एक जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर उन्होंने प्यासा, दो बीघा जमीन, सीआईडी जैसी फिल्मों में काम किया। महमूद साहब को पहला ब्रेक फिल्म ‘परवरिश’ में मिला। लेकिन उन्हें फिल्मों में पहचान मिली मनोज कुमार की फिल्म ‘गुमनाम’ से। इस फिल्म का एक गाना ‘हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं’ इतना हिट हुआ कि दर्शक हाल की तरफ खिंचे चले आते थे। इसके बाद महमूद साहब फिल्मों में एक मशहूर कॉमेडियन के तौर पर उभरे।  उनकी फिल्म ‘पड़ोसन’ तो हिंदी कॉमेडी के जगत में एक कालजयी फिल्म साबित हुई।

वो एक ऐसे प्रसिद्ध कॉमेडियन के तौर पर उभरे जिनके नाम से ही फ़िल्में हिट हो जाया करतीं थी। वे ऐसे एक मात्र हास्य कलाकार थे जिनकी तस्वीर पोस्टरों में हीरो के साथ रहा करती थी। क्योंकि फिल्म प्रोडूसर्स को लगता था कि अगर फिल्म को हिट करना है तो उन्हें फिल्म में लेना पड़ेगा। चाहे कितना ही बड़ा अभिनेता क्यों न हो, दर्शक हाल में सिर्फ महमूद को ही देखने जाया करते थे। महमूद साहब के लिए ये भी कहा जाता है कि वे हीरो से भी अधिक रुपये लेते थे। कई लोगों को ये बात पसंद नहीं आती थी। इसलिए वे अपेक्षा करते थे कि उनकी फिल्म में उनके डायरेक्टर और प्रोडूसर महमूद को न लें।  हालाँकि ऐसा कम ही होता था।

अपने चरित्र की एकरूपता से बचने के लिए महमूद साहब ने अलग अलग तरह की भूमिकाएं की। मसलन वे फिल्म पड़ोसन में नेगेटिव रोल में दिखे और फिल्म ‘कुंवारा बाप’ में उन्होंने एक मजबूर बाप की भूमिका निभाई। फिल्म पड़ोसन का एक गाना ‘एक चतुर नार करके श्रृंगार’ काफी हिट हुआ था। वहीँ फिल्म हमजोली में वे अपने ट्रिपल रोल के साथ अलग ही अंदाज में नज़र आये थे।

महमूद साहब ने 300 से भी अधिक फिल्मो में अपनी भूमिका दी। उनके अभूतपूर्व अभिनय के लिए उन्हें तीन बार फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनकी कुछ अन्य प्रमुख फिल्मे हैं – ससुराल, प्यार किये जा, ऑंखें, दिल तेरा दीवाना,  दो फूल जिंदगी, बहुत बंगला, पारस, वरदान आदि।

महमूद साहब न सिर्फ एक अच्छे कलाकार थे, बल्कि वे एक नेक दिल इंसान भी थे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के अदाकारी के हुनर को सबसे पहले महमूद साहब ने ही पहचाना था। जब अमिताभ की कई फिल्मे एक के बाद एक फ्लॉप हुई थी तो उन्होंने घर जाने का सोच लिया था।  जब ये बात महमूद साहब को पता चली तो उन्होंने अमिताभ को जाने से रोक लिया। उन्होंने ही अमिताभ को अपनी फिल्म ‘बॉम्बे टु गोवा’ में लीड रोल दिया। उनके दरियादिली के किस्से बॉलीवुड की गलियों में भरे पड़े हैं।

महमूद साहब अभिनेता के अलावा एक अच्छे डांसर, सिंगर और फिल्म डायरेक्टर थे। उन्हें टेबल टेनिस का भी शौक था। ये बात कम ही लोग जानते होंगे की मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी को उन्होंने ही टेबल टेनिस सिखाई थी। बाद में उन्ही की बहन मधु से महमूद साहब ने शादी की थी। займ на карту срочно без отказа


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