एक्शन सीन तो हर फ़िल्म कि जान होते हैं। उनके बिना कोई भी फ़िल्म मानो अधूरी सी लगती हैं। परन्तु, जनता को तो वह एक्शन सीन परदे के सामने एकदम आसान सा दिखता हैं।और वह उसका आनंद उठा कर उस सीन के हिसाब से, अपनी सोच बता देती हैं कि फ़िल्म कैसी थी। लेकिन क्या आप यह बात जानते हैं कि सीन जितना हीं अच्छा होता हैं उतना हीं ख़तरनाक भी।
जितना ख़तरनाक सीन होता हैं, उतना हीं ज़्यादा मेहनत उसे शूट करने मे भी लगती हैं। बस आज का हमारा मुद्दा भी उसी एक स्टार के साथ घटित एक घटना के ऊपर आधारित हैं। जिसकी एक एक्शन सीन करते-करते जान खतरे मे पड़ गयी थी!
क्या होता हैं एक्शन सीन?
एक्शन सीन एक फ़िल्म का बहुत हीं खास हिस्सा होता हैं। उसे बनाने के लिए कई सारे लोगो कि ज़रुरत पड़ती हैं। जो कि यह ध्यान देते हैं कि अगर कोई इंसान सीन कर रहा हैं, तो वह सही सलामत वापस आये और यह ध्यान रखे कि कहीं उसकी जान को तो खतरा नहीं। ज्यादातर यही होता हैं कि बड़े-बड़े सितारों के स्टंट सीन कोई और हीं अपनी जान को खतरे मे डाल कर करता हैं। परन्तु, जनता को लगता हैं कि वह स्टंट हीरो ने हीं किया हैं।
लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता हैं कि कुछ अभिनेता सच मे उस सीन को करते हैं। ताकि उनकी जनता को वह और भी ज़्यादा असली लगे और पसंद भी आए। इससे उनकी जान को भी बहुत ज़्यादा खतरा होता हैं। पर ये तो हम सब भी जानते हैं कि हर अच्छा काम खतरों से भरा होता हैं। भले हीं डर लगे परन्तु “डर के आगे जीत हैं”।
कैसे पड़ी दिलीप कुमार जी की जान खतरे मे?
अपनी एक फ़िल्म, जिसका नाम ‘नया दौर’ था, उसकी दिलीप साहब शूटिंग कर रहे थे। फ़िल्म मे अभिनेत्री के तौर पर वैजयन्ती माला जी को कास्ट किया गया था। उसी फ़िल्म के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग के दौरान, उनको खुद से एक स्टंट सीन भी करना था। जिसमे उन्हें टांगे पर सवार होकर एक मोटरसाइकिल के साथ रेस लगानी थी।
अब ज़ाहिर सी बात हैं, अगर टांगे की रेस मोटरसाइकिल के साथ होंगी तो, टांगे को उससे ज़्यादा तेज़ दौड़ना पड़ेगा। ताकि वह उसकी बराबरी कर पाए या उससे जीत सके। बस उसी प्रकार दिलीप साहब भी करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन तभी अचानक से उनके हाथ से घोड़े कि लगाम छूट गयी थी।
कैसे बचाई अपनी जान?
इस मुश्किल घड़ी मे भले हीं उनके हाथ से घोड़े की लगाम छूट गयी हो, लेकिन उन्होंने अपने संयम को नहीं छोड़ा। इस दृश्य को आँखों से देखने के बाद सेट पर जितने भी लोग उस समय मौजूद थे, वह घबरा गए कि अब क्या होगा। वह जल्दी-जल्दी उन्हें बचाने का प्रबंध करने लगे। उतनी हीं देर मे दिलीप जी ने किसी तरह झुक कर धीमे से लगाम साधने कि कोशिश की।
हालांकि उस समय टांगे की रफ़्तार बहुत हीं ज़्यादा तेज़ थी। अगर कहीं उनसे थोड़ी सी भी गलती होती, तो इसमें उनकी जान भी जा सकती थी। पर अच्छी बात तो यह थी कि उनकी यह कोशिश सफल हो गई। फिर उसके बाद उन्होंने घोड़ो पर लगाम पा ली। और इसी दौरान उस फ़िल्म का सीन शूट हो गया। पर असली सीन को थोड़ा उभारने के लिए एडिटिंग कि ज़रुरत पड़ गयी थी। क्योकि जो भी हादसा उस समय घटित हुआ था, वह सब कैमरे मे रिकॉर्ड हो चुका था।
इसी प्रकार फ़िल्मी जिंदगी मे हीं नहीं, बल्कि असल ज़िन्दगी मे भी हीरो हमारे दिलीप साहब ने अपनी ज़िन्दगी को मौत के कुए से निकाल लिया। अगर उस दिन सही समय पर उन्होंने घोड़े की लगाम ना थामी होती तो पता नहीं क्या होता। займы без отказа
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