हसरत जयपुरी का जन्म 15 अप्रैल , 1922 को जयपुर में इक़बाल हुसैन के नाम से हुआ था । फ़िल्म इंडस्ट्री में आने बाद ये हसरत जयपुरी के नाम से जाने गए।
उन्होंने मध्यम स्तर तक अंग्रेज़ी का अध्ययन किया और फिर फ़ारसी और उर्दू सीखने अपने परदादा के पास चले गए । उन्होंने बीस वर्ष की उम्र से ही पद्द लिखना शुरू किया था । उसी दौरान इन्हें अपने पड़ोस में रहने वाली महिला , राधा से प्रेम हो गया था । इन्होंने बहुत वर्षों बाद किसी इंटर्व्यू में कहा की ज़रूरी नही की एक मुस्लिम लड़का एक मुस्लिम लड़की से ही प्यार करें और आगे यह भी कहा की उन्होंने राधा के लिए एक प्रेम पत्र भी लिखा था जिसमें एक कविता लिखी थी की – “ यह मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर के तुम नाराज़ न होना”
ये नही पता चल पाया कि राधा को वह चिट्ठी मिली या नही परंतु राज कपूर को यह कविता इतनी पसंद आयी की उन्होंने अपने फ़िल्म ‘ संगम ’ में इसे एक गाने का रूप दिया जो काफ़ी हिट भी हुई ।
साल 1940 में हसरत साहब जयपुर से बॉम्बे पहुँचे और पैसे कमाने के लिए बस कंडक्टर की नौकरी करने लगे । उनका वेतन उस समय सिर्फ़ ग्यारह रुपय हुआ करता था । उन्हें हमेशा से गीत में शौक़ था इसीलिए वे मशायरो में भी भाग लिया करते थे ।ऐसे ही किसी मशायरे में , पृथ्वीराज कपूर भी उपस्थित थे और उनका ध्यान इन पर गया । उन्होंने अपने बेटे राज कपूर को इनके बारे में बताया और इन्हें काम देने की सिफ़ारिश की । उस समय राज कपूर शंकर जयकिशन के साथ अपनी अगली फ़िल्म “बरसात” पर काम कर रहे थे। हसरत साहब ने इस फ़िल्म के लिए अपना पहला गाना – “जिया बेक़रार है” लिखा ।
फिर 1966 में राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला की फ़िल्म ‘सूरज’ के लिए शैलेंद्र और हसरत साहब को गीतकार के रूप में चुना गया था । एक ओर शैलेंद्र ने जहाँ सिर्फ़ दो गाने जैसे -‘देखो मेरा दिल मचल गया’ और ‘तितली उड़ी उड़ जो चली’ लिखे वही दूसरी ओर हसरत साहब ने पाँच गाने लिखे जैसे – “ कैसे समझाऊँ बड़ी नासमझ हो , इतना है तुमसे प्यार मुझे , चेहरे पर गिरी ज़ुल्फ़ें , बहारों फूल बरसाओ और ओ एक बार आता है दिन ऐसा ” लिखे । यह सभी गाने बहुत विख्यात हुए और फ़िल्म भी दर्शक को ख़ूब पसंद आई ।
बहारों फूल बरसाओ को उस वर्ष तीन फिल्मफेअर अवार्ड भी मिले । पहला अवार्ड सर्वश्रेष्ठ गीतकार का ,दूसरा सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का और तीसरा इस गाने के गायक को ।
राजेश खन्ना , शम्मी कपूर और हेमा मालिनी की फ़िल्म “अन्दाज़” के लिए इन्होंने “ ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना ” लिखा। इस गाने के कई वर्ज़न भी बनाए गए और इस गाने के लिए हसरत साहब को सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेअर अवार्ड भी मिला था।
17 सितम्बर 1999 को मुंबई में उनका निधन हो गया परंतु हिंदी सिनमा में इनका योगदान सदा के लिए स्मरण रहेगा । फिल्म ‘बरसात’ के गाने जिया बेकरार है से लेकर ‘अंदाज’ के जिंदगी एक सफर है सुहाना तक, फिल्म सेहरा के गाने पंख होते तो उड़ आती रे से लेकर प्रिंस के गाने बदन पे सितारे लपेटे हुए तक, इन सभी गीतों ने एक पूरे पीढ़ी का मनोरंजन किया है और आगे भी करता रहेगा। payday loan
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