कुण्डली के द्वादश भावों से जातक के जीवन सम्बन्धी जानकारी प्रप्त होती है। इन भावों से क्या-क्या पता लगता है। अथवा यह भाव क्या-क्या सूचित करते हैं, इस प्रकार है –
प्रथम भाव
प्रथम भाव लग्न का होता है। प्रथम भाव से आदि रंग-रूप, स्वभाव, शारीरिक गठन, स्वास्थ्य, सम्वृद्धि आदि ज्ञात होता है। यह भाव कुण्डली में अति महत्वपूर्ण माना गया है। जातक के जीवन के सम्बन्ध में सब कुछ इस भाव मे ही जाना जाता है। आयु, शरीरिक दुख-सुख, रोग, स्वास्थ्य, जीवन-शक्ति, जीवन का प्रारम्भ, शरीर पर लहसुन, विचार-शक्ति, सफलता-असफलता, उच्च शिक्षा, लम्बी यात्रा, शत्रु की बीमारी, बच्चों की यात्रा, बड़े भाई के पड़ोसी तथा यात्रा, नाना, सिर, चेहरे का ऊपरी भाग मस्तक आदि का पता चलता है।
दूसरा भाव
इसको धन स्थान भी कहा जाता है। सम्पत्ति, खज़ाना, लाभ-हानि, गहने, रत्न, धन, मूल्यवान वस्तुएं, धन सम्बन्धी दस्तावेज, पाक शक्ति, कुटुम्ब, धन संग्रह, नेत्र दृष्टि, दाई आंख, स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति, सम्वृद्धि, लाभ, हानि, पत्नी की आयु, मृत्यु, भाग्य, बैंक बैलेंस, वाणी, खाद्य पदार्थ आदि का पता चलता है। इसका प्रभाव जीभ, नाक, दांत, ठोढ़ी, नाखुन एवं मुख्य प्रभाव गले, नेत्र व चेहरे पर होता है। यह मारक स्थान भी माना गया है।
तीसरा भाव
इसको सहज, भ्राता तथा पराक्रम स्थान भी कहा जाता है। इससे छोटे भाई, बहन, भाईयों का सुख, निकट सम्बन्धियों का मख. पडोसी. छोटी यात्राएँ, साहस मानसिक झुकाव, योग्यता, स्मरण शक्ति, वृद्धि, वीरता, पत्र-व्यवहार, परीक्षा में बैठना, प्रतियोगता आदि का मुख्य तौर पर पता लगता है। इसका मुख्य प्रभाव हाथ गला,कन्धा, भुजा पर होता है।
चौथा भाव
इसे माता स्थान भी कहते हैं। माता, अपना घर, घर का सुख, घर का वातावरण, जीवन का अन्त कब्र, गुप्त जीवन, बाहन, खेती की जमीन, मैदान पैतक सम्पत्ति, गुप्त खजाना, विद्या व जल-स्त्रोत की जानकारी मिलती है। इसका मुख्य प्रभाव छाती तथा पीठ पर होता है।
पांचवां भाव
इस भाव में मुख्य तौर पर सन्तान के सम्बन्ध में .. बिचारा जाता है। इस भाव से स्वभाव, मन का झुकाव, सुख, आनन्द, कला, योग्यता. मनोरंजन, खेल तमाशे, सट्टा, लाटरी, प्रेम, जुआ, मंत्र-तंत्र, बुद्धि, आध्यात्मिक विद्या, धार्मिक अवस्था, उच्च विद्या, गर्भ, उपासना, यश, अपयश, सुसाइटी, गाना-बजाना, शेयर, धन वाणिजय, खरे-खोटे की पहचान सम्बन्धी विचार होता है। इसका मुख्य प्रभाव दिल, पेट पर होता है।
छठा भाव
इसको रिपु स्थान भी कहा जाता है। इससे शत्रु, मामा, ‘ मौसी, रोग, बीमारी, नौकरी, सेवक, अधीनस्थ कर्मचारी, पशु, बुरे ।’ कर्म, बंधन, डर, हानि, अपयश, चिन्ता, झगड़ा, उधार कंजूसी व किराएदार का विचार होता है। कार्य की रूकावट, स्वास्थ्य एवं सफाई सम्बन्धी विचारा जाता है। इसका प्रभाव कमर, आंतड़ियों नाभि एवं पेट पर होता है।
सातवां भाव
इसको अस्त अथवा कलत्र अथवा जाया स्थान भी कहा जाता है। इससे पत्नी, पत्नी सुख, शादी-विवाह, व्यापार, अदालती झगड़े, सांझेदारी, प्रत्यक्ष शत्रु अथवा विरोधी, झगड़ा, विवाद, विदेश से प्राप्त मान-सम्मान. जीवन को खतरा विचारा जाता है। पत्नी का पति सुख (स्त्री जातक की कुण्डली में) सांसरिक सम्बन्ध, अर्न्तराष्ट्रीय व्यापार विचारे जाते हैं। इसका प्रभाव कमर, मूत्र प्रणाली आदि पर होता है।
आठवां भाव
इसको आय अथवा मृत्यु स्थान भी कहा जाता है। इस भाव से मृत्यु, मृत्यु का कारण, आयु, संकट, शास्त्र भाव, अचानक लाभ, पत्नी द्वारा धन प्राप्ति, कर्जा, शत्रु भय, विरासत में धन-सम्पत्ति की प्राप्ति, बीमा, वसीअत, पैन्शन, दुर्घटना, आत्म हत्या, दुःख-संताप, रुकावटें, राधा, झगड़ा परेशानी, दुर्भाग्य, चोरी, डकैती, शममानमार्ग, दहेज, बिना कमाई की सम्पत्ति तथा भय सम्बन्धित बातों का विचार होता है। गुप्तांगों जनेन्द्रियों का विचार भी इस भाव से होता है।
नवम भाव
इसे धर्म-स्थान भी कहते हैं। इस भाव से धार्मिक . प्रवृति, तप, धार्मिक विश्वास, तीर्थ यात्रा, लम्बी यात्रा, विदेश यात्रा, भाग्य, साधन, वृद्धि, अर्न्तदृष्टि, सहज जार, उपासना, पिता गुरु, विद्या, आयात-निर्यात आदि का विचार होता है। इससे जांघों तथा घुटनों का भी विचार होता है।
दशम भाव
इसे कर्म स्थान भी कहा जाता है। इसके द्वारा कारोबार, व्यवसाय, रोजगार, बाणिज्य, पद, मान-सम्मान, उद्योग, सरकार से मान-सम्मान, राज्य सेवा, नौकरी, उन्नति, आचरण, सफलता, सांसारिक गतिविधियां, धार्मिक उत्सव, प्रबन्ध, शासन, हुकूमत करना, तीर्थ मात्रा लाभ, मात-पिता की क्रिया, खेतबाड़ी, सम्वृद्धि, छोटे भाई को संकट आदि का विचार होता है। इसका मुख्य प्रभाव घुटनों पर होता है।
एकादश भाव
इसे ग्यारहवां भाव कहते हैं और इसे आय अथवा लाभ का भाव अथवा स्थान भी कहा जाता है। अनेक प्रकार का लाभ इच्छापूर्ति, उत्साह, उम्मीद, आशा, आभूषण, स्थाई मित्र, मित्र सुख, विद्या लाभ, सामाजिक स्थिति, मनोकामना, कारोबार, तरक्की, उन्नति, रोगों व बीमारी से मुक्ति, बड़े भाई-बहन, मान-सम्मान, सम्वृद्धि पिता की यात्राएं, पत्र-व्यवहार, लाभ आदि का विचार होता है। उसका प्रभाव बाएं कान, दाहिने पैर तथा पिंडलियों पर होता है।
द्वादश भाव
इसे बारहवां भाव कहते हैं। इससे मोक्ष प्राप्ति, गुप्तं विद्या, आध्यात्मिक विद्या, कैद, जुर्माना, शत्रु, व्यय, शनि, घाटा, नुक्सान, गृहस्थी पर व्यय, पाखंड, गुप्त कार्य, दुःख, धोखा, राज्य भय व सज़ा, कर्जा, ठगी, विदेश भ्रमण, दुर्भाग्य, अस्पताल, जेलखाना, पागल खाना, हत्या रात्रि विश्राम, शय्या सुख, विदेश में जीवन. कटम्ब से अलग होना अकस्मात् घटनाएं, बीमारी, गुप्त योजनाएं, स्कैंडल आदि का विचार होता है। इसका मुख्य प्रभाव बाई आंख, बाएं कान, . पैर, पैर के पंजे, अंगुली एवं तलवे पर होता है।
इस कुण्डली से द्वादश भावों से मुख्य क्या-क्या विचार होता है जाना जा सकता है।
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