हम अक्सर ये कहावत सुनते है कि बूंद बूंद से ही तालाब भरता है। एक एक कड़ी को जोड़कर किसी भी रहस्य को सुलझाया जा सकता है, और अकेले रहने पर भी खुद पर भरोसा करके अगर हम परिश्रम करे, तो सफलता हमारे कदम चूम सकती है। आज दुनिया मतलबी हो चुकी है। हर इंसान अपना फायदा पहले सोचता है। ऐसी दुनिया और ऐसे लोगों से कोई उम्मीद रखना खुद के साथ नाइंसाफी है। ऐसे में अपनी कोशिश ही हर रास्ते को मंजिल तक पहुंचा देती है। आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनने जा रहे हैं, जो हिम्मत से भरपूर है और खुद पर भरोसा करने की प्रेरणा देती है। यह कहानी है शिल्पा की, जो दक्षिण भारत के शहर मैंगलोर में रहती हैं।
जब एक महिला की शादी होती है तो उसके अनेक अरमान होते हैं। उसका सपना होता है कि वो भी अपने पति के साथ अपने सपनों कि एक दुनिया बनाए, जिसमें वो अपने परिवार के साथ खुशी खुशी रह सके। लेकिन जब अचानक यह सपना टूटता है, तो इंसान जिंदा रहकर भी मरा हुआ प्रतीत होता है। शादी के बाद जब किसी महिला का पति मर जाता है तो वह महिला एक संतोष की भावना के साथ आगे की जिंदगी गुजारने की कोशिश करने लगती है। यह सोचकर कि शायद यही उसकी किस्मत में लिखा था। लेकिन अगर उसका पति उसे छोड़कर चला जाए तो उसके पास समाज के तानों और जीवन लीला समाप्त करने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आता। परंतु ऐसे समय में भी खुद पर भरोसा करके अपनी आगे की जिंदगी गुजारने का साहसिक कदम उठाना बहुत बड़ी बात होती है। शिल्पा भी ऐसी ही महिलाओं में से एक हैं।
साल 2005 में शिल्पा ने शादी करके अपने मां पिता का घर छोड़ अपने पति के साथ मैंगलोर चली आई। ज़िन्दगी अच्छे से चल रही थी, लेकिन उन्हें शायद यह नहीं पता था कि कुछ ही दिनों बाद उन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए ‘फूड ट्रक’ चलाना पड़ेगा। साल 2008 का वो दिन, जब उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया। एक दिन व्यापार के लिए लोन लेने का बहाना बनाकर वो बैंगलोर चले गए, और कह गए कि दो-चार दिनों में वापस आ जाएंगे। लेकिन आज वो दिन कई सालों में बदल गए हैं। अपने पीछे वो शिल्पा के पास एक तीन साल का बच्चा छोड़ गए। पति से दूर होने के बाद शिल्पा के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया। एक समय तो ऐसा भी आया जब उन्होंने अपनी ज़िन्दगी समाप्त करने का मन बना लिया था, लेकिन बच्चे के प्रेम ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
फूड ट्रक चलाने का फैसला
अपनी और अपने बच्चे के सुनहरे भविष्य की चिंता उन्हें दिन रात सताती थी। एक दिन उन्होंने एक साहसिक फैसला लिया। उनके घर के सामने महिंद्रा कंपनी का शोरूम था, जो ट्रक और गाडियां बेचती है। यही से उन्होंने अपनी फूड ट्रक शुरू करने का मन बनाया। उनके पास बैंक के खाते में एक लाख रुपए जमा थे। इन पैसों का इस्तेमाल उन्होंने अपनी फूड ट्रक शुरू करने में किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं था। इन एक लाख रुपयों के अलावा उनके पास कुछ नहीं था। साथ ही उन्हें खाना बनाना बचपन से ही पसंद भी था।
शिल्पा को व्यापार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए उन्हें इस बात का डर भी था कि क्या वह इस फूड ट्रक के व्यापार में सफल हो पाएंगी? लेकिन उन्होंने खुद पर भरोसा किया और इस व्यापार में उतर गई। जब उन्होंने कुछ लोगों से बात की तो लोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि आप एक सेकंड हैंड ट्रक खरीद लीजिए। लेकिन परेशानी यह थी कि सेकंड हैंड ट्रक किश्तों पर नहीं मिलता है। उसके लिए उन्हें पूरी कीमत चुकानी पड़ती, और यह करना आसान नहीं था। तब उन्होंने एक नया ट्रक लेने का निश्चय किया। जब वह ट्रक के शोरूम में पहुंची तो उन्हें मालूम हुआ कि उन्हें किश्तों पर ट्रक लेने के लिए एक लाख 18 हजार रुपए देने पड़ेंगे। उनके पास सिर्फ एक लाख रुपए ही थे। परेशानी यह थी कि अगर वह पूरे पैसे दे देती तो आगे खर्च करने के लिए उनके पास एक पैसा भी नहीं बचता। फिर उन्होंने सरकार की ‘महिला रोजगार उद्योग योजना’ के बारे में सुना। इस योजना के तहत उन्होंने अपने सोने के जेवर गिरवी रखकर बैंक से लोन लिया और किश्तों पर एक ट्रक खरीदा।
मेहनत और सफलता
शिल्पा बताती हैं कि जब उन्होंने यह फूड ट्रक शुरू किया तब उन्हें इस बात का डर था कि कहीं वह इस व्यापार में असफल ना हो जाए। इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हर मुसीबत का जमकर सामना किया। शुरुआत में उन्हें बहुत कम लोग जानते थे, लेकिन धीरे धीरे उनके हाथ का बना हुआ पकवान खाकर लोग खुश होते गए, और उनका नाम भी बढ़ता गया।
शिल्पा बताती हैं कि आज वह जो कुछ भी है उसमें महिंद्रा कंपनी के मालिक आनंद महिंद्रा का भी हाथ है। एक दिन आनंद महिंद्रा ने जब शिल्पा के बारे में जाना तो उन्होंने ट्वीट कर उन्हें शाबाशी दी और हर संभव मदद करने का प्रयास किया। “उनके इस ट्वीट की वजह से अनेक लोगों का ध्यान मेरी तरफ आकर्षित हुआ और मेरे ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होने लगी”। उनका यह व्यापार चल पड़ा और आज पूरे मैंगलोर में उनका यह फूड ट्रक ‘हाली माने रोटीज’ के नाम से मशहूर है।
शिल्पा बताती हैं कि जब उन्होंने यहां व्यापार शुरू किया था तब उन्हें हर दिन लगभग 500 से 1000 रुपए की कमाई होती थी। लेकिन आज समय बहुत बदल चुका है। आज वह पूरे दिन में लगभग 10000 रुपए कमा लेती हैं। इन पैसों का उपयोग वह अपने परिवार की देखभाल करने के साथ-साथ अपने सपने पूरे करने में करती हैं। उन्होंने अपने बच्चे को एक सुनहरा भविष्य प्रदान किया है। अब उन्हें समाज के लोग ताने नहीं, प्यार देते हैं।
सीख
हमारी जिंदगी में अनेक परेशानियां आती हैं। उन परेशानियों की वजह से हमें कभी-कभी अपनी जीवन लीला समाप्त करने का भी विचार आता है। लेकिन परेशानियों का डटकर मुकाबला करना ही एक सच्चे योद्धा और एक सच्चे मनुष्य की पहचान होती है। शिल्पा की यह फूड ट्रक वाली कहानी भी हमें यही प्रेरणा देती है। अगर यह कहानी आपको पसंद आई हो तो इसे और भी लोगों तक जरूर पहुंचाएं। hairy woman