ड्रिप इरिगेशन प्रणाली को अपनाएं और अपनी फसलों की उत्पादक क्षमता को बढ़ाएं

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ आज भी करोड़ों लोग कृषि क्षेत्र में अपना योगदान देकर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। भारत की आधी आबादी कृषि क्षेत्र में अपना रोजगार पाती है और कृषि क्षेत्र भारत की जीडीपी का 52% हिस्सा है।

21वीं सदी में जहां पूरा विश्व टेक्नोलॉजी के माध्यम से कृषि क्षेत्र में अपने उत्पाद को कई गुना बढ़ा रहा है, वही भारत आज भी पुरानी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर फसल उगाता है। भारत में आज भी सिंचाई के लिए किसानों को प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। और जिस वर्ष बारिश कम होती है उस वर्ष अकाल पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। उन्नत टेक्नोलॉजी के अभाव में भारत में आज भी कई हिस्से बंजर है। अगर उन क्षेत्रों में सिंचाई की विभिन्न तरीके बताए जाएं और किसानों को समर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाए तो वह बंजर इलाके भी खेत खलिहान में बदल सकते हैं।

आज हम अपने दर्शकों को इस आर्टिकल के माध्यम से सिंचाई के विभिन्न तरीकों के बारे में बताएंगे और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम की जानकारी देंगे। अंत में हम यह देखेंगे कि कैसे ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करके भारत के कृषि वैज्ञानिक ने गुजरात में धान की खेती की और किसानों की उत्पादक क्षमता को बढ़ा दिया।

सिंचाई के विभिन्न प्रकार

भारत में खेती सीधे तौर पर बारिश पर निर्भर रहती है परंतु, वर्षा का सटीक अनुमान ना लगाने के कारण किसानों को बहुत हानि पहुंच सकती है। इसीलिए हमारे यहां सिंचाई के विभिन्न प्रणालियों को विकसित किया गया, जिसमें मुख्य रुप से भूमिगत जल का उपयोग किया जाता है। इन विभिन्न प्रणालियों से किसानों को प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

प्रमुख सिंचाई प्रणालियां:

  1. जलाशय जल सिंचाई प्रणाली
  2. कुआं जल सिंचाई प्रणाली
  3. खुले कुएं सिंचाई प्रणाली
  4. ट्यूबेल जल सिंचाई प्रणाली
  5. आप्लावन नहर सिंचाई प्रणाली
  6. नदी घाटी सिंचाई प्रणाली
  7. ड्रिप सिंचाई प्रणाली

ड्रिप सिंचाई प्रणाली (टपक सिंचाई)

ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक उन्नत सिंचाई व्यवस्था है जिससे पानी की बचत होती है। इस विधि में पानी की बूंदों को पौधे या पेड़ की जड़ तक सीधा पहुंचाया जाता है जिसके कारण पौधों की जड़ पानी को धीरे-धीरे सीचती रहती है और अत्यधिक पानी बर्बाद नहीं होता। इस विधि के लिए छोटी व्यास के प्लास्टिक पाइप का इस्तेमाल किया जाता है, जो सीधा पेड़ या पौधों की जड़ों तक पानी की बूंदों को पहुंचाते हैं। इस विधि के कारण भूमि रिसाव या ईवापोरेशन से होने वाली जल की हानि कम से कम होती है।

सिंचाई की उन्नत विधि शुष्क एवं अर्ध शुष्क जगह के लिए एक वरदान से कम नहीं है परंतु, इसका उपयोग किसी भी वातावरण एवं जमीन पर किया जा सकता है। यह सिंचाई प्रणाली थोड़ी महंगी है और बिना इसके पूरी जानकारी के किसान इसका लाभ नहीं ले सकते। इसलिए इस सिंचाई प्रणाली को उपयोग करने से पहले इसके बारे में जानकारी लेने के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए।

फायदे:

  1. इस सिंचाई प्रणाली में समय और मजदूरी कम लगती है।
  2. जड़ क्षेत्र में पानी सदैव पर्याप्त मात्रा में रहता है।
  3. जमीन में वायु एवं जल की मात्रा उचित बनी रहती है और फसल की वृद्धि में तेजी होती है।
  4. पानी का बहुत बचत होता है क्योंकि यह प्रणाली 95 परसेंट एफिशिएंट है।

ड्रिप इरिगेशन से धान की खेती:

हम सभी जानते हैं कि धान उगाने के लिए पानी की बहुत आवश्यकता होती है और यह उस क्षेत्र में उगाया जाता है जहां पर पानी की कमी नहीं होती और वर्षा अत्याधिक होती है। परंतु, गुजरात के धनसुरा जिले के रहने वाले किसान जितेश पटेल ने ड्रिप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल कर, गुजरात जैसे अर्ध शुष्क इलाके में धान की खेती कर रहे हैं।

कृषि विज्ञान में एमएमसी की डिग्री लेने के बाद जितेश ने नौकरी करने की वजह गाँव में खेती करना चुना। एक इजरायली कंपनी की मदद से उन्होंने गुजरात में, अपने गांव में ड्रिप इरिगेशन का पहला परीक्षण स्टार्ट किया। वे ड्रिप इरिगेशन प्रणाली से सबसे पहले सब्जियों की खेती करते थे परंतु, कोरोना की वजह से लॉकडाउन के कारण सब्जियों का बाजार तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया था एवं बाजार में अनिश्चितता बनी हुई थी, इसलिए उन्होंने ड्रिप प्रणाली के साथ धान की खेती शुरू की।

उन्होंने इस प्रणाली को अपने गाँव के साथ साथ कई और गाँव के किसानों को सिखाया और सरकार द्वारा किसानों को मिलने वाली सब्सिडी के बारे में भी बताया। जितेश पटेल गुजरात के किसानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है क्योंकि उन्होंने पुण्य टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर किसानों के उत्पाद को बढ़ाने का काम किया है और वह इसका प्रशिक्षण भी देते हैं।

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