भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या का पेट पालने के लिए लिए देश का किसान दिन रात मेहनत करता है। आज हमारा देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है। बड़ी मात्रा में हम खाद्यान्नों का निर्यात भी कर रहे हैं लेकिन अभी भी प्रति हेक्टेयर उत्पादन के हिसाब से हम बहुत पिछड़े हुए हैं। क्योंकि हमारे ज्यादातर किसान अभी भी परंपरागत तरीके से ही खेती कर रहे है जिससे उत्पादन कम होता हैं तथा लाभ भी पूरा नही मिलता। आज जरूरत है कि नई तकनीकी और नई विधियों का इस्तेमाल किया जाए। गेंहू और धान भारत में प्रमुखता से उपजाए जाने वाले अनाज हैं। गेंहू की खेती उत्तर भारतीय प्रदेशों तक ही सीमित है जबकि धान पूरे भारत में उगाई जाने वाली फसल है। कुछ प्रदेशों में वर्ष में धान की दो फ़सलें भी उगाई जाती हैं।
धान की खेती परंपरागत तरीके से करने पर लागत ज्यादा आती है और उत्पादन भी कम होता है। पिछले कई वर्षों से किसान एक नए तरीके “श्री विधि” से धान की खेती करने लगे हैं। श्री विधि मतलब है, SRI – System of Rice Intensification। दूसरी विधियों से धान की खेती में पानी बहुत लगता है जबकि श्री विधि से धान की खेती में पानी बहुत कम लगता है, और इस विधि में डेढ़ से दो गुना ज्यादा पैदावार मिलती है
श्री विधि से बीज का शोधन
आइए जानते हैं कि इस विधि में बीज का चुनाव और उसे कैसे उपचारित करते हैं। इस विधि में एक एकड़ के लिए दो किलो बीज पर्याप्त रहता है। अच्छी क्वालिटी का बीज का चयन कीजिए। एक बाल्टी में पानी भर कर उसमें नमक डालतें हैं। पानी में इतना नमक मिलाते हैं कि उसमें अंडा तैरने लगे। फिर बीज पानी में डालकर तैरने वाले बीजों को हटा देते हैं। बचे हुए बीजों को धोकर फिर दूसरे पानी में रात भर भिगो कर रख दिया जाता है अगले दिन पानी निकाल कर जूट के बोरे से ढककर रख दिया जाता है, आठ से दस घंटे में बीज अंकुरित होने लग जाते हैं तब इसे कार्बेन्डाजाईम से उपचारित कर लेते हैं। उपचारित करने के बाद बीज को एक बार फिर से गीले बोरे से 10-12 घंटे के लिए ढककर रख देते हैं। जिससे यह अच्छी तरह से अंकुरित होकर बोने के लिए लिए तैयार हो जाए।
बीज की नर्सरी तैयार करना
नर्सरी के लिए 5×10 फीट की समतल भूमि का चयन करें यह बेड भूमि से 4 इंच ऊँचा होना चाहिए इसके चारों तरफ जल निकासी के लिए नाली बना दे। इसके बाद इसमें गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालकर मिट्टी को भुरभुरा बना ले। उसके बाद नर्सरी की सिंचाई कर दें।। 5×10 फीट के एक बेड के लिए आधा किलो अंकुरित बीज मे पाँच किलो वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर नर्सरी की गीली मिट्टी में छिड़क देते हैं। बाद उसे पुआल से ढक दिया जाता है। इस विधि से 12 से 15 दिन में पौध लगाने के लिए तैयार हो जाती है।
खेत की तैयारी
खेत की तैयारी परंपरागत तरीके जैसे ही करते हैं लेकिन इस विधि में पौध लगाते समय खेत मे पानी ज्यादा नहीं रखा जाता है। उर्वरक डालने के बाद खेत को जुताई करके समतल कर लिया जाता है। पौध रोपण के 12 से 24 घंटे पहले खेत में 1 से 3 सेमी तक ही पानी भरा जाता है।
पौधों निकालते समय रखे सावधानी
पौध को 12 से 15 दिन पर नर्सरी बेड से उखाड़ कर खेत में लगाया जाता है। पौध उखाड़ते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि पौधें टूटने न पाएँ। पौध को एक-एक करके सावधानी से मिट्टी सहित अलग करना चाहिए। इनको 1 घंटे के अंदर ही खेत में लगा देना चाहिए।
रोपाई करने का तरीक़ा
पौध रोपने के लिए 10×10 इंच की दूरी पर निशान लगाकर रोपाई की जाती है। हर एक निशान पर एक पौधे को लगाया जाता है। नर्सरी से निकाले गए पौधों को बिना धोएं उनकी जड़ों में लगी मिट्टी के साथ ही लगाते हैं। पौध को ज्यादा गहराई में नही लगाया जाता है। यदि हर 12 लाइन के बाद दो लाइन की जगह छोड़ दी जाएं तो बाद में फसल में उर्वरक तथा कीटनाशकों का छिड़काव करने में बहुत सुविधा होती है।
फसल सुरक्षा एवं सिंचाई
धान खरीफ की फसल है इस मौसम में खरपतवार की ज्यादा समस्या आती है लेकिन श्री विधि से धान की खेती करने पर खरपतवार की ज्यादा परेशानी नही आती क्योंकि पौधे लाइन में लगे होने की वजह से हाथ से चलाए जाने वाले कृषि यंत्र वीडर का प्रयोग आसानी से हो जाता है, जिससे खरपतवार उखड़ जाता है तथा मिट्टी भुरभुरी हो जाती है तथा मिट्टी में आक्सीजन का आवागमन ज्यादा हो पाता है।
इस विधि में खेत में पानी ज्यादा नहीं रखा जाता है, उतना ही पानी भरा जाता है जिससे खेत में नमीं बनी रहे। इससे पौधों में कल्ले अच्छे फूटते हैं देखा गया है कि एक पौधे में 50 कल्ले तक हो जाते हैं। जिससे पैदावार ज्यादा होती है। इस विधि से धान की खेती में रोग और कीट-पतंगो का प्रभाव कम होता है। जिससे कीटनाशकों का खर्च बचता है।
आज झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, और उत्तर प्रदेश के लाखों किसान इस विधि से धान की खेती करके लाभान्वित हो रहे हैं । केंद्र सरकार की राष्ट्रीय आजीविका मिशन योजना के माध्यम से भी किसानों को श्री विधि से धान की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस विधि से धान के खेत में मीथेन गैस का निर्माण नहीं होता है। जिससे पर्यावरण भी शुद्ध रहता है। hairy girl
Leave a Reply