समुद्र की लहरों की आवाज़, सड़कों पर दौड़ती हुई तेज़ रफ़्तार वाली गाड़ियाँ, आसमानों को छूतीं बड़ी-बड़ी इमारतें और लोगों के सपनों को उड़ान देती ये नगरी मुंबई है। अब मुंबई की बात हो और बॉलीवुड का नाम न हो, ये कैसे हो सकता है।
यह किस्सा है राजेश खन्ना की ज़िंदगी से जुड़ा है। सावंत कुमार ने एक स्क्रिप्ट तैयार की और राजेश खन्ना से कहा-“मैं आपके साथ फ़िल्म करना चाहता हूँ।”
राजेश जी बोले – “बिल्कुल करेगें पर अभी मेरी डायरी में तारीख खाली नहीं हैं।” बात आई-गई हो गई फिर 80 के शुरुआती दौर में राजेश खन्ना की फिल्में कुछ ठीक नहीं चलीं। धर्मकांटा, शांति,50-50, बन्देश आदि।
ऐसे समय में राजेश खन्ना को लगा कि उन्हें सावंत कुमार से बात करनी चाहिए, उन्होनें सावंत कुमार को फोन किया और कहा-“सावंत मेरी डायरी में तारीख खाली है बताओ कब करनी है फिल्म?”
सावंत फिल्म पर काम शुरू करने के बारे में सोचने लगे, फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई, फ़िल्म बनी और फ़िल्म का नाम था ‘सौतन’। फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले राजेश सावंत को घर पर बुलाते हैं और कहते हैं-” सावंत इस फ़िल्म का क्लाइमैक्स बदलना पड़ेगा, मैनें फ़िल्म देख ली है और अपने कुछ दोस्तों को भी दिखाई। वे बोल रहे थे कि फ़िल्म के क्लाइमैक्स में राजेश खन्ना मर जाता है, ये लोगों को पसंद नहीं आएगा। एक काम करो फ़िल्म का क्लाइमैक्स चेंज कर दो।” सावंत जी तो हक्के-बक्के रह गए बोले -“अब कुछ नहीं हो सकता!”
राजेश खन्ना भड़क गए कहते हैं-“ठीक है, मैं फ़िल्म के प्रीमियर पर आऊँगा ही नहीं।” सावंत कुमार ने उन्हें बहुत मनाने की कोशिश की पर वो नहीं माने। फिर प्रीमियर से पहले वे खुद ही मान गए और सबके साथ दिल्ली प्रीमियर के लिए चले भी गए।
फ़िल्म शुरू हुई , लोगों की तालियां और वाह वाही सुन कर वे इंटरवल में सीधा स्टेज पर पहुँचे और उस फ़िल्म का डॉयलॉग बोल डाला – “मैं वो बला हूँ जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूँ”
डायलॉग सुनते ही पब्लिक बेकाबू हो गई, बड़ी मुश्किल से भीड़ से बचाकर उन्हें वहाँ से रवाना किया गया। पर राजेश बोले – “नहीं मैं तो पूरी फ़िल्म बालकनी से देखूँगा।” इंटरवल के बाद की सारी फ़िल्म राजेश खन्ना ने पब्लिक को बिना बताए, बालकनी में खड़े होकर देखी। पब्लिक के रिस्पांस को देख कर राजेश खन्ना ने सावंत को सीने से लगा लिया और एक बार फिर छा गया हिंदी सिनेमा का सुपरस्टार। займы на карту
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