मौत की उम्र क्या
दो पल भी नहीं…
मैं जी भर जिया,
मैं मन से मरूं
जिंदगी एक सिलसिला,
आजकल की नहीं…
मैं जी भर जिया,
मैं मन से मरूं
लौट कर आऊंगा
कूच से क्यों डरूं?
उपरोक्त पंक्तियां पढ़कर आपने इस बात का अंदाजा तो लगा ही लिया होगा कि यह पंक्तियां किसकी हैं और यह लेख किसकी जिंदगी पर आधारित है ।
जी हां दोस्तों, आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं। आज हम बात करेंगे अटल बिहारी वाजपेयी जी की।
उन दिनों ग्वालियर रियासत हुआ करती थी, अटल जी के माता-पिता ग्वालियर में ही रहा करते थे। कहा जाता है कि मुख्यतः वे बटेश्वर (आगरा) के रहने वाले थे, परन्तु रोजगार की तलाश में वे ग्वालियर आ बसे। अटल जी के पिता का नाम था – कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माँ का नाम था कृष्णा। अटल जी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था।
अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि वो अपनी खरी से खरी बातें भी, आसान शब्दों में शालीनता के साथ बयाँ कर देते थे और ताज्जुब की बात यह थी कि उनके हर एक जुमले और भाषण पर उनके विरोधी भी उनकी पीठ थपथपाया करते थे। अटल जी की जिंदगी, उनके राजनैतिक संघर्ष, उनके व्यवहार और उनकी वाक्पटुता से हम बहुत कुछ सीख सकते है।
राजनैतिक विरोधी होते हुए भी अटल जी जवाहरलाल नेहरू को बहुत मानते थे और जवाहरलाल नेहरू भी विदेश से आए हुए मेहमानों से अटल जी का परिचय होनहार सांसद के रूप में कराते थे।
नेहरू जी कहा करते थे-“ये विपक्ष के युवा नेता हैं, मैं इनमें बहुत संभावनाएं देखता हूँ और ये मेरी आलोचना भी खूब किया करते हैं।”
मशहूर पत्रकार किंग शुक नाग ने अटल जी की जीवनी लिखी है – ‘अटल बिहारी वाजपेयी -अ मैन फार ऑल सीजन’। किंग शुक नाग बताते हैं कि वाजपेयी जी नेहरू से सीखा करते थे , वे दोनों ही लोग उत्तर प्रदेश से ताल्लुकात रखते थे। नेहरू जी पहले प्रधानमंत्री भी थे और विदेश मंत्री भी थे। उसके बाद अटल जी विदेश मंत्री बन गए तो वह प्रधानमंत्री का कमरा ही विदेश मंत्री का कमरा बन गया।
तो हुआ कुछ यूँ कि 1977 में जब अटल जी विदेश मंत्री बने तो वह अपने दफ्तर पहुंचे। दफ्तर जाते ही उन्होंने पूछा कि -“अरे! नेहरू जी की तस्वीर तो यही थी, कहाँ गई ?
उनके जो साथी थे, उन्होंने नेहरू जी का पोस्टर वहां से हटा दिया था। फिर, वाजपेयी जी के कहने पर उसे वही लगा दिया गया।
वहां बैठकर वाजपेयी जी ने जो पहले शब्द कहे वो ये थे – “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं इस कमरे में कभी बैठ सकता हूँ। जहाँ जवाहरलाल नेहरु बैठा करते थे। ”
अटल जी के दिल में बहुत इज्जत थी सबके लिए फिर चाहे वह उनके विरोधी ही क्यों ना हों।
शिव कुमार जी बीते लगभग 48 सालों से अटल जी के साथ रहे हैं। वे अटल जी के चपरासी, रसोइए, बॉडीगॉर्ड , सचिव और लोकसभा क्षेत्र प्रबंधक की भूमिका निभाते रहें हैं। एक बार शिव कुमार जी से पूछा गया कि एक बात बताइये -“क्या अटल जी को गुस्सा आता था?”
ये सवाल पूछने पर वे बताते हैं कि एक बार वे (अटल जी) बेंगलुरु से आ रहे थे। शिवकुमार जी को उनको लेने एयरपोर्ट जाना था, पर शिवकुमार जी के एक मित्र ने उनसे कहा कि -“चलो पिक्चर देखने चलते हैं।”
शिवकुमार बोले-” नहीं हमको अटल जी को लेने जाना है। हम नहीं जाएंगे।”
इस पर शिवकुमार जी के मित्र उनसे कहते हैं कि -“बेंगलुरु की फ्लाइट तो हमेशा ही लेट आती है, छोटी पिक्चर है जल्दी खत्म हो जाएगी उसके बाद आप लेने चले जाइएगा।”
उनके कहने पर शिवकुमार जी उनके साथ चले जाते हैं, पर यह उनका दुर्भाग्य समझें या समय का संजोग। उस दिन फ्लाइट समय पर आ जाती है और पिक्चर देर से छूटती है।
जैसे ही पिक्चर छूटती है , वे तुरंत अटल जी को लेने गाड़ी से एयरपोर्ट जाते हैं। वहां जाकर देखते हैं कि फ्लाइट आ चुकी है, लिस्ट में नाम देखते है तो अटल जी भी आ चुके थे और घर की चाबी शिवकुमार जी के पास ही थी। शिवकुमार जी को लगा कि अब तो अटल जी बहुत गुस्सा करेंगे, उन्होंने भगवान का नाम लिया और घर की ओर चल दिए घर आए, तो उन्होंने देखा कि अटल जी का बैग रखा हुआ है और वह लॉन में टहल रहे हैं।
शिवकुमार जी थोड़ा डर गए थे, उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह वहां जाएं। पर बिना जाए काम भी कहां चलना था। जैसे -तैसे गए।
अटल जी ने पूछा- “शिवकुमार जी आप कहां चले गए थे?” शिवकुमार जी बोले -“मैं पिक्चर देखने चला गया था।”
अटल जी ना नाराज हुए ना ,गुस्सा आया। बोलते हैं-“आप पिक्चर देखने चले गए थे। अरे ! यार मैं भी चलता आपके साथ, कल चलते हैं।”
चलो, अभी तो मुझे इंपॉर्टेंट मीटिंग में जाना है हम कल चलेंगे।”
इतना कहकर वे अपनी मीटिंग में चले जाते हैं। इस छोटे से वाक्या से हम उनके बड़प्पन का अंदाजा लगा सकते हैं। वह चाहते तो शिवकुमार जी को कुछ कह सकते थे, कुछ डांट सकते थे पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा।
देश के प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी वह उनका इंतजार करते रहे। क्या हम ये सोच भी सकते हैं कि अटलजी से महान कोई व्यक्ति हो सकता है? मेरे ख्याल से तो शायद नहीं।
एक बार अटल जी प्रेस क्लब जा रहे थे, तो रास्ते में उनकी कार खराब हो गई। अब अटल जी बहुत चिंता में खड़े हुए थे कि क्या किया जाए। प्रेस कॉन्फ्रेंस तो थोड़ी देर में शुरू होने वाली है? तभी उन्होंने एच .के दुआ को वहाँ से गुजरते देखा। एच के दुआ एक पत्रकार थे। वे वहीं जा रहे थे जहाँ अटल जो को जाना था। उन्होंने एचके दुआ से उनके स्कूटर पर लिफ्ट मांगी।
जब अटल जी एच के दुआ के स्कूटर पर बैठ कर वहाँ पहुँचे जहाँ प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी थी।
तो एक कार्यकर्ता ने उनसे कहा कि कल की हैडलाइन तो यही होगी कि “Vajpayee takes ride on H.K Dua’s scooter”। वाजपेयी जी तुरंत बोले- “अरे ! नहीं हेडलाइन यह होगी-” ‘H.K Dua takes Vajpayee for a ride.’”
अटल जी की जिंदगी से जुड़े, उनकी जिंदगी में घटे ये छोटे-छोटे वाक्या हमें यह सिखाते हैं कि इंसान चाहे जितना भी बड़ा क्यों ना बन जाए, उसे हमेशा अपनी जमीन से जुड़ा रहना चाहिए।
आपका पद आप को महान और बड़ा नहीं बनाता है, बल्कि आपका व्यवहार आप को महान बनाता है।
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