स्विगी की सफलता की कहानी, जानें कैसे स्टार्ट हुआ इंडिया का यह यूनिकॉर्न

इस बात को कोई भी नहीं झुठला सकता की कबीरदास जी का कोई ना कोई दोहा हर किसी की ज़िन्दगी मे कहीं ना कहीं तो उपयोग मे ज़रूर आता है। फिर चाहे वह किसी की निजी ज़िन्दगी से सम्बंधित हो या फिर पढ़ाई से। लेकिन आज हम आपके सामने एक ऐसी शख्स की कहानी प्रस्तुत करने जा रहे है जिसकी ज़िन्दगी मे कबीरदास जी का यह दोहा ज़रूर सच साबित होता है-

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

आज हम आपके सामने लाये है एक ऐसी शख्सियत की दास्तां जो कहीं ना कहीं आपको प्रेणना से जरूर भर देगी। तो आइये शुरुआत करते है।

किसी ने यह सच ही कहा है की उतार चाढ़व तो सबकी ज़िन्दगी मे होते है। लेकिन असली बाज़ीगर वही होता है जो हँसते हँसते उन कठनाईयो का सामना कर ले। साथ ही साथ उनसे कुछ सीख कर भी जाये जिससे की आगे अगर उसकी ज़िन्दगी मे फिर से कभी ऐसी दिक्कतें आती है तो उसे पता हो की कैसे उनका सामना करना है। या फिर यह भी कह सकते है की वह यह पूरी कोशिश करें की दोबारा कभी उसको अपनी ज़िन्दगी मे वह दिन ना देखना पड़े।

यह दास्तां उस शक़्स की है जिसका नाम आपने शायद ही सुना हो लेकिन इसने जो कमाल करके दिखाया है ना उससे आप ज़रूर रूबरू होंगे। जी हाँ, आज हम आपके सामने बात करने जा रहे है स्विगी के संस्थापक और सीईओ, श्रीहर्षा मजेटी की।

वह एक व्यावसायिक परिवार से नाता रखते है। उनके पिता एक भोजनालय चलाते है और उनकी माँ एक डॉक्टर है। वह विजयवाड़ा के निवासी है। वह एक बहुत ही नामी कॉलेज से पढ़े हुए है। उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की शिक्षा बिट्स पिलानी से प्राप्त की है। अपनी शिक्षा हासिल करने के दौरान उनकी कई लोगो से मुलाक़ात और दोस्ती भी हुई। इंजीनियरिंग की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद एक साल उन्होंने ब्रेक लिया और अपनी किस्मत को आज़माने का निर्णय लिया। इसमें वह ज़्यादा सफल नहीं रहे और उसके बाद ही उन्होंने आईआईएम,  कलकत्ता से मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरुआत कर दी। उनको घूमने फिरने का बहुत शौक था। और उनका मानना यह भी है की इस शौक ने उनके जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव भी डाला है।

उनके करियर की दास्तां

शुरुआती दौर मे वह लंदन बैंक मे नौकरी करते थे। 2007 जब वह वापस भारत आए तब उन्होंने देखा की यहाँ पर ऑनलाइन खरीदारी की दुनिया परवाज़ पर है।  उनका कहना यह था की जिनसे उनको अपने काम की तरफ प्रेणना मिली वह और कोई नहीं रेड बस के संस्थापक फणींद्र सामा है। कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी सहयोगी मित्र नंदा रेड्डी के साथ एक जुट होकर एक सॉफ्टवेयर बनाने की कोशिश की। इसका नाम उन्होंने बंडल रखा था।

कैसे चुनौतिओं का किया डट कर सामना

वह यह बात जानते थे की किसी भी ऑनलाइन विक्रेता के लिए वितरण सबसे बड़ी चुनौती है और इस कार्य को करने के लिए उन्हें एक टेकनिकल सहयोगी की मदद की बहुत जरुरत थी। पर दुख की बात तो यह थी की उनके जितने भी  जानने वाले थे उनमे से किसी को भी इस कार्य के बारे मे ज़्यादा ज्ञान नहीं था। इस कारण वह इस काम के लिए जोखिम उठाने को बिलकुल तैयार नहीं थे।

बाद मे किसी कारण उनका यह कार्य असफल होने के साथ साथ एक साल के अंतर्गत ही बंद हो गया। इससे उन्होंने हार नहीं मानी और प्रेरणा लेकर फिर से एक बार  सफलता पाने की राह पर चल पड़े। इस विषय पर उन्होंने यह भी बताया की आज का इंसान बहुत आलसी हो गया है और उसको हर चीज घर बैठे बैठे ही चाहिए। चाहे फिर वह खाना हो या सामान और इसी सोच से वह स्विगी का निर्माण करने मे सफल रहे।

उनकी सफलता की पहली सीढ़ी स्विगी के नाम पर

स्विगी की स्थापना 2014, अगस्त मे हुई थी। यह एक ऐसा नाम बन चुका है की शायद ही कोई हो जिसको इसके बारे मे ना पता हो। इसका मुख्यालय बेंगलुरु मे है।
इस सॉफ्टवेयर का काम करने का तरीका कुछ इस प्रकार से है की जब आपको भूख लगे और आप जहाँ पर भी हो, बस इसे खोलो इसमें जो खाना है वह खोजे और तुरंत माँगा ले। जो भी पैसे बनते है उस सामान के, वह आप उस आदमी को देकर अपना सामान ले सकते है जो की आपका सामान लाएगा।

जिस समय यह सॉफ्टवेयर लॉन्च हुआ था उस टाइम उसका कोई कंपटिशन ना होने के कारण यह पूरे देश मे बहुत जल्दी मशहूर हो गया था। आज यह दुनिया भर के मशहूर नामों मे से एक है। दुनिया भर मे इस सॉफ्टवेयर के 5000000 से भी ज़्यादा उपभोक्ता हैं।

स्विगी की शुरुआत

जब इसकी शुरुआत हुई थी तब इसमें केवल चार फूड डिलीवरी करने वाले शामिल थे। पर आज यह ऐसा मुकाम हासिल कर चूका है जहाँ ये उनके लिए काम करने वाले खुद के फूड डिलीवरी करने वाले लोग हैं। इस स्विगी ना सिर्फ हमारी भूख मिटाई  बल्कि बिरोज़गारो को भी रोटी प्रदान करने मे भी सहायता करी।

इस सॉफ्टवेयर को रातों रात तरक्की नहीं मिली इसके लिए उसे सब्र रखना पढ़ा और अपने लक्ष्य के तरफ डटें भी रहना पड़ा।

उम्मीद है की आपको हमारी आज की दास्तां बेहद पसंद आयी होंगी और कुछ नई चीज़े भी जानने को मिली होंगी। आगे भी ऐसे ही नए किस्सों के बारे मे जानने के लिए जुड़े रहे। अगली बार फिर मिलते  है एक नये किस्से के साथ और अपना ध्यान रखना बिलकुल ना भूले। अगर आपको यह ज़्यादा ही पसंद आयी तो लाइक एंड शेयर करना ना भूले और साथ ही साथ कमेंट करके हमें अपने विचार भी बताये।

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