“रहने को सदा दहर में आता नही कोई
तुम जैसे गये ऐसे भी जाता नही कोई”
– कैफ़ी आज़मी
29 अप्रैल की सुबह जैसे ही समाचार आया मशहूर अभिनेता इरफ़ान हमारे बीच नही रहे, सारा देश स्तब्ध रह गया। एक बेहतरीन अदाकार हरदिल अज़ीज इंसान हमारे बीच से बहुत जल्द ही विदा हो गया। फिल्मी पर्दे के न जाने कितने किरदार इरफ़ान का इंतजार कर रहे थे। एक ऐसा कलाकार जिसकी बड़ी-बड़ी आंखों में न जाने कितने अफ़साने छिपे हुए थे। जिसकी दिलकश आवाज़ सुनने को मजबूर करती है।
इरफान का जन्म जयपुर में हुआ था और बचपन सुभाष चौक की गलियों में खेल कर बीता, पतंगों से बेहद लगाव था । प्यार से सब उन्हें शहज़ादे इरफान बुलाया करते थे। इरफान के बारे में कुछ लोग ही जानते हैं कि वह एक उम्दा क्रिकेटर भी थे। वे सीके नायडू ट्राॅफी के लिए अंडर-23 टीम में चुने गये थे। मशहूर क्रिकेटर सतीश शर्मा उनके बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों ने साथ में बहुत क्रिकेट मैच खेले थे। लेकिन आर्थिक कारणों से वे इस शौक को पूरा नही कर पाए। इरफान के पिता टोंक जैसे छोटे कस्बे से निकल कर जयपुर आ गए थे लेकिन इरफान जयपुर से पहले दिल्ली और फिर बम्बई और हॉलीवुड तक जा पहुंचे।
जयपुर के रवीन्द्र मंच से शुरू हुआ इरफान के अभिनय का यह सफ़र नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से बाॅलीवुड से होता हुआ हॉलीवुड के सुनहरे पर्दे तक जा पहुंचा। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में सीखी गई अभिनय की बारीकियां उनके हर किरदार में झलकती हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में सीखी गई अभिनय की बारीकियां और वहां बनी दोस्त सुतापा सिकदर (पत्नी) उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गईं। सुतापा एक संवाद लेखिका और प्रोड्यूसर हैं।
फिल्म में पहला काम मिला मीरा नायर की फिल्म सलाम बाम्बे में। लेकिन इस फिल्म में उनके किरदार को छोटा कर दिया गया। बम्बई में शुरुआती दिनों में इरफान को काफी संघर्ष करना पड़ा। वे एसी मैकेनिक का काम करके अपना खर्च पूरा करते थे। बॉलीवुड इस दौर में स्टार पुत्रों को लांच करने में व्यस्त था। ऐसे में इरफान जैसे साधारण चेहरे वाले कलाकार को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। फिल्मों में बड़ी पहचान न मिलने पर उन्होंने टेलीविजन के छोटे पर्दे की ओर रुख कर लिया।
टेलीविजन इस दौर में हर घर में जगह बना चुका था। ऐसे में इरफान को भारत एक खोज, चाणक्य, सारा जहाँ हमारा, बनेगी अपनी बात, चंद्रकांता जैसे धारावाहिक मिलते गए। इन धारावाहिकों में उनके द्वारा अभिनीत किरदार काफी सराहे गए। चंद्रकांता के बद्रीनाथ अय्यार के किरदार को भला कौन भूल सकता है। लेकिन टेलीविजन का पर्दा बहुत छोटा साबित हुआ इतनी बड़ी शख्सियत को कैद कर पाने में। वर्ष 2004 में मिली फिल्म हासिल के लिए उन्हें निगेटिव किरदार का फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ।
इसके बाद आई फिल्म मक़बूल जिसे विशाल भारद्वाज ने शेक्सपियर के नाटक मैक्बेथ से प्रेरित होकर बनाया था, इरफान के अभिनय का हिंदी सिने जगत में लोहा मनवा दिया। वर्ष 2005 में फिल्म रोग़ में इरफान को मुख्य अभिनेता का किरदार निभाने को मिला। वर्ष 2007 में आई फिल्म लाइफ इन अ मेट्रो बाक्स आफिस पर बड़ी हिट साबित हुई। इरफान को इस फिल्म के लिए सहायक अभिनेता का फिल्म-फेयर अवार्ड मिला। पान सिंह तोमर, हिन्दी-मीडियम, हैदर, लंच-बाक्स अंग्रेजी-मीडिय यह सभी फिल्में इरफान की अदाकारी की बेहतरीन मिसाले हैं। पान सिंह तोमर जैसी फिल्म को परदे पर आने के लिए दो वर्ष का इंतजार करना पड़ा, इस फिल्म ने उन्हें फिल्म जगत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।अंग्रेजी-मीडियम इरफान की आखिरी फिल्म थी जो इसी साल मार्च में पर्दे पर आई थी लेकिन लाकडाउन के चलते अच्छा प्रदर्शन नही कर पाई।
फिल्मों में लम्बे संघर्ष के बीच इरफान ब्रिटिश फिल्म निर्माता आसिफ कपाड़िया की फिल्म द वाॅरियर से चर्चा में आए। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में इस काफी सराहा गया, इसके बाद विदेशी फिल्मों से उनका नाता सा जुड़ गया। स्लमडॉग मिलिनेयर,मीरा नायर की द नेमसेक, जुरासिक वर्ल्ड (2015), द लाइफ आफॅ पाई, द अमेजिंग स्पाइडर-मैन। जुरासिक-पार्क फिल्म के बारे में इरफान अक्सर एक बात कहा करते थे कि जब जुरासिक पार्क पहली बार पर्दे पर आई थी तो उनके पास टिकट खरीदने के लिए भी रुपए नही थे।
इरफान को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई मीरा नायर की फिल्म ‘द नेमसेक’ में उनके द्वारा अभिनीत एन आर आई बंगाली प्रोफेसर के किरदार ने। इस फिल्म में उनके किरदार को काफी सराहा गया। 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में उन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट ऐक्टर का अवॉर्ड मिला था। वर्ष 2014 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
भले ही इरफान अपने जीवन का शतक न पूर्ण कर पाए लेकिन इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले फिल्मों का शतक अवश्य पूर्ण कर लिया और अपने चाहने वालों के लिए फिल्मों और धारावाहिकों के बेजोड़ किरदार और किस्से छोड़ गए। सबसे जुदा संवाद अदायगी की शैली, उनका हर शब्द दिल से होकर रूह तक पहुँचता था। किरदार छोटा हो या बड़ा इरफान अपने अभिनय से उसे विशेष बना देते थे। इरफान सिर्फ अभिनय नहीं करते थे बल्कि वे किरदार को जीते थे। इसीलिए उनके द्वारा निभाया हर चरित्र विशेष है।
इरफान पिछले कुछ वर्षों से एक दुर्लभ बीमारी न्यूरोइंडरकाइन कैंसर से जूझ रहे थे, इस बीमारी ने उन्हें अंदर से तोड़ कर रख दिया था। लंदन से इलाज कराने के बाद लग रहा था कि सब कुछ ठीक हो गया है लेकिन अपनी मौत के दो दिन पूर्व अपनी वालिदा (माता) की मौत की खबर सुनकर वह कमज़ोर पड़ गये, देशव्यापी लाकडाउन के कारण वे अपनी वालिदा के कफ़न-दफन में भी नही पहुंच पाए थे। यही मलाल लिए वे इस दुनिया से विदा हो गए। hairy girl
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