जब उसे तकलीफ़ होती थी, वह सहता था। उसे प्रताड़ित किया जाता था, गहरे ज़ख्म दिए जाते थे, लेकिन वह मुस्कुरा कर सबको भूल जाता था। लेकिन जब दर्द सह नहीं पाता था तो गुस्सा करता था, जिससे गर्मी बढ़ जाती थी। दर्द में रोता था तो उसके आंसुओ से धरा पर बाढ़ आ जाती थी। लेकिन आखिर वो कब तक अपने आप को रोक पाता? जब तकलीफ़ असहनीय हो गई तो उसने भी बदला लेने की ठान ली, और कर दिया सारी दुनिया को घरों में कैद। रोक दिए सबके कदमों को। कुदरत, यही परिचय है उसका। वो कभी पहले किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन जब उसके सब्र का बांध टूटता है, तो कयामत आ जाती है। ऐसा नहीं है कि उसके सब्र का बांध पहली बार टूटा है। पहले भी उसने इंसानों से अपनी भरपाई करवाई है। पहले ‘प्लेग’ और ‘हैजा’ उसके हथियार थे, और इस बार उसका हथियार है ‘कोरोना’। अभी तक सिर्फ सुना ही था कि इतिहास अपने आप को दोहराता जरूर है, आज देख भी लिया। वर्तमान की स्थिति से तो हम सब वाक़िफ हैं, लेकिन आज का यह वर्तमान हमारे बीते हुए कल के साथ भी जुड़ा हुआ है। सवाल ये है कि कैसे? तो आइए, जानते है इसकी कहानी।
“दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना तलवार, साबरमती के संत ने कर दिया कमाल”। ये सदाबहार पंक्तियां एक ऐसे व्यक्तित्व को दर्शाते हैं, जिन्हें पूरा हिंदुस्तान अपना पिता मानता है। हम सबके पूजनीय, राष्ट्रपिता स्वर्गीय मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें हम महात्मा गांधी पुकारते हैं। आज दुनिया एक महामारी से जूझ रही है, और लोग परेशान हैं। लेकिन अपनी गलतियों को मानने की बजाय लोग ये कहते हैं कि पहले का समय सही था। ऐसी महामारियां नहीं थी, जो लोगों की जान निकाल लें। लेकिन क्या लोगों की यह सोच सही है? नहीं, क्योंकि पहले भी ऐसी बीमारियां थी, जो गांव के गांव निगल जाती थीं। आज जब कोरोना वायरस नाम की यह बीमारी अस्तित्व में आई है, तो इसके साथ एक शब्द भी आया है, ‘क्वॉरेंटाइन’. अधिकांश लोगों ने पहली बार इस शब्द का नाम सुना है। लेकिन एक सच यह भी है कि यह शब्द नया नहीं, बल्कि बहुत पुराना है।
जब महात्मा गांधी परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका के लिए निकले
आज जब कोरोना नाम की इस महामारी ने लोगों को घरों में कैद कर दिया है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि बहुत साल पहले भी ऐसा ही एक वाकया हुआ था, जिसकी वजह से हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी इसका शिकार होना पड़ा था। बात उन दिनों की है जब महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका में रहते थे। साउथ अफ्रीका के शहर डरबन के पूर्वी तट पर ब्रिटेन का एक उपनिवेश था, जिसका नाम था ‘नताल कॉलोनी’। वर्तमान में इसे ‘क्वाज़ुलु नताल प्रांत’ के नाम से जाना जाता है। उस दौर में भारत से गिरमिटिया मजदूरों को काम करने के लिए दुनिया के कई हिस्सों में लेकर जाया जाता था। उनके साथ जानवरों जैसा सलूक होता था। उन्हें शारीरिक प्रताड़ना भी दी जाती थी। उन्हें बंधक और गुलाम बनाकर रखा जाता था।
1896 का समय था। उन्हीं दिनों महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। उन दिनों हिंदुस्तान पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। हिंदुस्तान के लोगों को अपने ही देश में गुलामों की जिंदगी जीनी पड़ती थी। जब महात्मा गांधी भारत लौटे तो उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने अपने परिवार को दक्षिण अफ्रीका ले जाने का सोचा। उन दिनों समुद्र के रास्ते एक देश से दूसरे देश आना जाना होता था। महात्मा गांधी भी परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका के लिए समुद्र के रास्ते निकल पड़े। उनके साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी, बेटे हरिलाल और मणिलाल, और उनकी विधवा बहन का बेटा गोकुलदास भी था। दिसंबर महीने में दक्षिण अफ्रीका जाने का सफर शुरू हुआ। कई दिनों की यात्रा के बाद जनवरी 1897 में जहाज डरबन शहर के किनारे लगा।
जब महात्मा गांधी को क्वॉरेंटाइन किया गया
जब जहाज साउथ अफ्रीका के डरबन शहर पहुंचा तो जहाज से लोगों को उतरने नहीं दिया गया। उस जहाज में महात्मा गांधी भी अपने परिवार के साथ सवार थे। लोगों को जहाज से ना उतरने देने के पीछे वजह थी भारत के साथ दुनिया के कई हिस्सों में फैली एक महामारी। असल में जब महात्मा गांधी हिंदुस्तान से दक्षिण अफ्रीका जाने के लिए निकले, तब उन दिनों हिंदुस्तान के साथ साथ दुनिया के कई हिस्सों में प्लेग नाम की एक महामारी फैली थी। इस महामारी से कई लोग अपनी जान गंवा चुके थे।
चिकित्सकों का मानना था कि प्लेग के जीवाणु 23 दिनों तक सक्रिय रहते हैं। जब भारत से जहाज दक्षिण अफ्रीका पहुंचा, तब जहाज के यात्रियों को जहाज से उतरने नहीं दिया गया। चिकित्सकों को डर था कि अगर लोग जहाज से बाहर निकलेंगे और दूसरे लोगों के संपर्क में आएंगे, तब प्लेग की बीमारी आम जन तक फैलने में देर नहीं लगेगी, क्योंकि यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से फैल सकती थी। इस वजह से महात्मा गांधी और उनके परिवार को अन्य यात्रियों के साथ कई दिनों तक जहाज में ही क्वॉरेंटाइन करके रखा गया था। अर्थात उन्हें प्लेग नाम की बीमारी से ग्रसित होने की आशंका की वजह से आम जन से दूर रखा गया था।
13 जनवरी 1897 को महात्मा गांधी को अन्य यात्रियों के साथ जहाज से बाहर निकाला गया। जब सब लोग बाहर निकले तब लोगों ने उन्हें अपशब्द कहे। उन पर पत्थर भी फेंके। महात्मा गांधी पर जानलेवा हमला भी हुआ। वहां की एक पुलिस अधिकारी की पत्नी ने बीच-बचाव करके गांधी और उनके परिवार की जान बचाई। यह खबर जब लंदन पहुंची, तब वहां से निर्देश आया कि जिन लोगों ने गांधी पर हमला किया है उन्हें तुरंत पकड़ा जाए। कुछ लोगों को पकड़ा भी गया। लेकिन गांधी ने उन आरोपियों की शिनाख्त नहीं की। उन्होंने कहा कि वो लोग गुमराह किए गए हैं। जब उन्हें अपनी गलती का एहसास होगा, तब उन्हें खुद ही पश्चाताप होगा। मैं उन्हें क्षमा करता हूं।
आज जब कोरोना नाम की यह महामारी फैली है, तब हिंदुस्तान सहित दुनिया के कई देशों में सरकारें लोगों को दूरी बनाकर रहने की अपील कर रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्लेग की तरह ही यह महामारी भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से फैल जाती है, जिससे लोग अपनी जान गवा रहे हैं। जिन लोगों पर आशंका है उन लोगों को क्वॉरेंटाइन किया जा रहा है, ताकि वह स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आकर उन्हें भी संक्रमित ना करें। इस कोरोना नाम की महामारी के आने की वजह से ही कई लोगों ने क्वॉरेंटाइन शब्द पहली बार सुना है। परंतु यह शब्द नया नहीं है। पहले भी लोगों को क्वॉरेंटाइन करके रखा जाता था, जिस तरह महात्मा गांधी को भी रखा गया था।
हिंदुस्तान का हर नागरिक महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानता है और उनके नक्शे कदम पर चलता है। लेकिन सिर्फ आदर्श मान लेना ही बहुत नहीं है। जिस तरह महात्मा गांधी ने क्वॉरेंटाइन के सभी नियमों का पालन किया था, ठीक उसी तरह आज हमें भी उनके नक्शे कदम पर चलते हुए सरकार की हर अपील को मानना होगा। इस कोरोना नाम कि बिमारी को हराने के रास्ते पर चलते हुए हम सबको सरकार के हर आदेश पर अमल करना होगा। ऐसा करके ही हम इस महामारी को खत्म कर सकते हैं, और यही महात्मा गांधी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। срочный займ