आज के समय मे भी हमे पानी के लिए भी सरकार को टैक्स के रूप में पैसा देना पड़ता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है अगर आपको इसके लिए कोई पैसा न देना पड़े तो कैसा होगा? सुनने में भले ही अजीब लगता हो लेकिन विशाखापत्तनम में एक कॉलोनी ने पिछले 27 सालों से पानी के लिए एक रुपया भी नही चुकाया। इसको लेकर वहां के रहवासी बहुत गर्व महसूस करते आये हैं। अब आपकी जिज्ञासा को कम करते हुए हम आपको उसके बारे में अधिक जानकारी देते हैं। तो देर किस बात की है आइये जल्दी से चलते हैं।
आज हम आपको लेकर चल रहे हैं विशाखापत्तनम के एक कॉलोनी मे जहाँ रहते हैं के.एस.आर. मूर्ति। उन्हें इस बात को लेकर बहुत गर्व महसूस होता है कि उन्होंने और उनके कॉलोनी में रहने वाले सभी लोगो ने पिछले 27 वर्षों से पीने के पानी के लिए 1 रुपया भी खर्च नही किया। उन्होंने आगे बताया कि यहाँ रहने वाले लोगो को पीने के पानी की सप्लाई 15 पिट और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जरिये होती है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस कॉलोनी में लगभग 1500 लोग रहते हैं।
मूर्ति जी के बारे में बताए तो वो पेशे से एक वैज्ञानिक हैं और जगन्नाधराजू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) के अध्यक्ष हैं। यह एशोसिएशन 1993 में वहाँ रहने वाले लोगो की मदद के लिए बनाया गया था। उस इलाके का भुजल स्तर लगातार घट रहा था और शहर के पानी की परेशानी हो गयी थी। मूर्ति जी इस बात से भली भांति वाकिफ थे। उन्होंने अपने साथियों के मदद से यह जाना कि भविष्य में किस तरह यह संकट और भी गहरा हो सकता है।
मूर्ति जी आगे बताते है कि गर्मियों के मौसम में पानी की बहुत किल्लत रहती थी और बरसात के मौसम में ज्यादा पानी के जमा होने से जल ठहराव और बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती थी। जल ठहराव के कारण उसमे मच्छर पनपने से लोगो को बहुत सी जानलेवा बीमारी होने का खतरा बना रहता है। विशाखापत्तनम की नगर पालिका भी सभी अपार्टमेंट को जल संचयन गड्डो का निर्माण करने के लिए कह रही थी। इसके बाद मूर्ति जी ने अपने एसोसिएशन में बात करके सबके सहमति से अपार्टमेंट में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम शुरू करने की योजना बनाई और इसमे सफल हुए। इसके बाद 2019 में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय से 1 लाख रुपये नकद प्रोत्साहन के रूप में दिया।
RAW के सदस्यों ने वहाँ रहने वाले लोगो को पानी संचयन के महत्वों को बताया और उन्हें आगे आकर इसका समर्थन करने की अपील की। उन्होंने सूखे पड़े कुओं और हौदों का इस्तेमाल करके बारिश के पानी का संचयन किया। इसके लिए उन्होंने बिल्डिंग के छतों को सीधा कुओं से जोड़ दिया जिससे बिल्डिंग के छत का सारा पानी गड्डो में जमा हो सके।
मूर्ति जी और उनके सहायक सदस्यों ने अब इस तकनीक को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने का निश्चय किया। उन्होंने सड़क के किनारे पर गड्डो का निर्माण किया जिससे बारिश का पानी अच्छे से संचय किया जा सके और भुजल स्तर बना रहे। मूर्ति कहते हैं कि उनका मकसद भूजल को फिर से भरना था ताकि शहर में पानी की कमी न हो, जैसे कि दिल्ली औऱ चेन्नई जैसे शहरों में है। अपने सिद्धांत के समर्थन में मूर्ति ने कुछ तथ्य बताए हैं। वह बताते हैं कि शहर में अन्य स्थानों के विपरीत जेआरएन कॉलोनी में पानी 200 फीट पर उपलब्ध है।
मूर्ति ने हमें बताया कि सिस्टम तैयार करने के लिए सामग्री खरीदने से पहले और राजमिस्त्री बुलाने से पहले कॉलोनी के टोपोग्राफी का अध्ययन करना बहुत जरूरी है। इसके बाद जल संचय बिंदुओ की पहचान करनी चाहिए। यह आमतौर पर निचले इलाके होते हैं। इसके बाद ही गड्ढे खोदना शुरू करना चाहिए।
जेआरएन आरडब्ल्यूए ने 4x4x5 फीट (5 फीट गहरे) गड्ढा खोदा और 7,000 रुपये की लागत से सड़क के दोनों ओर गोलाकार गड्ढे बनाए। उन्होंने पानी को शुद्ध बनाने के लिए निर्मित गड्डो में बजरी, पत्थर और रेत डाला गया। इसके बाद गड्डो को कवर कर दिया जाता है। उसके नीचे से एक पाइप लगा दी जो कि बरसात का पानी सीधा अपने अंदर संचय कर सके।
हालांकि यह रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बहुत मददगार साबित हुई लेकिन इसके बाद भी मूर्ति जी मैनहोल के बारे में लोगो को सावधान करते आये हैं। उनका ऐसा मानना है कि बरसात के मौसम में ओवरफ्लो के कारण मैनहोल का गंदा पानी ऊपर आकर गड्डो में चला जाता है जिससे कि भुजल गंदा हो जाता है। इसलिए आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नगर पालिका समय समय पर मैनहोल की सफाई करते रहे।
2010 के बाद से बनाये गए 15 पिट ने जेआरएन कॉलोनी और उसके आसपास के इलाकों के भुजल स्तर को काफी हद तक बड़ा दिया है। इस तकनीक के कारण वर्षा के लाखों लीटर जल का संचयन हो पाया है। इसके अलावा, इन गड्डो मे हर साल लगभग 7.45 लाख लीटर की बचत होती है। मूर्ति जी ने हालही में एक बुकलेट निकाला है जिसमे उन्होंने बताया है कि किस तरह सामान्य तकनीक का इस्तेमाल करके आप अपने सोसाइटी में जल संचयन कर सकते हैं।
आगे उन्होंने हमें बताया कि किस तरह हम अपने रोजमर्रा के काम मे भी पानी की बचत कर सकते हैं जैसे कि नल पर कम लागत का नोजल लगाना, शावर के बदले बाल्टी का इस्तेमाल करना, ग्रेवाटर का पुन: उपयोग, पाइप में लीक की जाँच, ब्रश करने समय नल बंद रखना। उन्होंने कहा कि जल संसाधन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं इसलिए मनुष्य को अब आगे आकर इसका सही ढंग से संचयन करना चाहिए।
तो आज के इस आर्टिकल में हमने आपको बताया है कि किस तरह एक मामूली से पहल भी कभी कभी बहुत बड़ा बदलाव ला सकती हैं जैसा कि मूर्ति जी ने किया। आपकी क्या राय है हमे नीचे कमेंट करके जरूर बताइये। अधिक जानकारी के लिए K4 Feed को फॉलो कीजिये। займ онлайн на карту без отказа