दमदार दादी की असाधारण कहानी

मध्यप्रदेश का दिल और मिनी मुम्बई कहा कहा जाने वाला शहर इन्दौर एक खूबसूरत शहर है। यह भारत के सबसे स्वच्छ शहरों की रैंकिंग में नंबर 1 है। यह शहर बहुत तेजी से एक शैक्षणिक हब के रूप में उभर कर सामने आया है।

आई आई टी, आई आई एम जैसे बड़े शैक्षणिक संस्थानों ने शिक्षा के क्षेत्र में इसे नंबर एक बना दिया है। मेडिकल और इंजीनियरिंग के बड़े कोचिंग संस्थान भी शहर में चल रहे हैं जिनमें इस पास के ग्रामीण इलाकों से लड़के लड़कियां तैयारी के लिए आते हैं। इसलिए शहर में बहुत से हॉस्टल और पीजी खुल गए हैं। इनमें से कुछ लड़कियों के लिए विशेष रूप से चल रहें हैं।

ऐसा ही एक गर्ल्स हॉस्टल है गोकुल गर्ल्स हॉस्टल जिसकी देखरेख का जिम्मा है हमारी आज की कहानी की मुख्य पात्र 75 वर्षीय कुसुम अग्रवाल जी के हाथों में । जोकि गोकुल गर्ल्स हॉस्टल और आस पास के लोगों में ‘दमदार दादी’ के नाम से मशहूर हैं। 

गोकुल गर्ल्स हॉस्टल वैसे तो सामान्य सुविधाओं से युक्त साधारण सा हॉस्टल है, लेकिन उसे अपने अनुभव और अनुशासन के दम से दमदार दादी ने विशेष बना दिया है। 75 बसंत पार कर चुकी दादी वृद्ध लोगों के प्रति बनने वाली आम धारणाओं को दरकिनार करती नजर आती हैं। लोग मानते हैं कि इस उम्र में किसी औरत के लिए चलना फिर ना काम करना एक कठिन कार्य है लेकिन दमदार दादी आज भी तीन मंजिला हॉस्टल की सीढ़ियां दिन में कई कई बार चढ़ती उतरती हैं। 

कुशल प्रबंधक 

दादी यूं तो ज्यादा पढ़ी लिखी नही है, लेकिन उनका प्रबंधन आले दर्जे का है। वह हॉस्टल का सारा काम एक कुशल प्रबंधक की भाँति देखती है। हॉस्टल के किराये का पूरा हिसाब बिजली,पानी सबकी व्यवस्था व्यवस्थित ढंग से करती हैं। जीवन में 60 वर्ष के बाद सामान्यतः लोग एक कम्फर्ट ज़ोन ढूंढने लगते हैं लेकिन दादी ने तो काम ही इस उम्र के बाद शुरू किया लेकिन वे समय के साथ चलते हुए कुछ नया सीखने और करने के लिए प्रयास करती रहती हैं। दादी ने केवल 8वीं तक पढ़ाई की है। 

अनुशासन पसंद है दादी को

पहली नजर में हर व्यक्ति को दादी एक कड़क मिजाज वाली महिला नजर आतीं हैं, जो हॉस्टल के नियम कायदे और समय की बहुत पाबंद है। इसके पीछे दादी का अपना अनुभव और सोच है। वैसे वे एक प्रगतिशील सोच वाली महिला हैं, जिनका मानना है कि लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। उनके अनुसार हमारे हॉस्टल में आने वाली ज्यादातर लड़कियां ग्रामीण परिवेश से पढ़ने के लिए आती हैं। वहां वे परिवार माता-पिता के नियंत्रण में रहती हैं, लेकिन शहर के स्वच्छंद माहौल में आकर लड़कियां रास्ते से भटक जाती हैं और अपना भविष्य बरबाद कर लेती हैं। इसलिए लड़कियों पर थोड़ा नियंत्रण बहुत जरूरी है। दादी से परमीशन लिए बिना और रजिस्टर में एंट्री किए बगैर कोई भी लड़की हॉस्टल से कदम भी बाहर नहीं रख सकती है। उनका मानना है इससे लड़कियों में अनुशासन की भावना बनी रहती है। 

प्रगतिशील सोच वाली महिला

दादी मानती है कि लड़कियों को खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहिए। उनको स्कूटी से लेकर कार तक सबकुछ चलाना आना चाहिए जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। वे लड़कियों के पढ़ लिखकर नौकरी करने की पक्षधर हैं। उनका मानना है कि आजकल लकड़ियां हर मामले में लड़कों के समकक्ष है, उन्हें किसी से कमतर नही आंका जाना चाहिए। 

दादी अक्सर अपनी बातों में अपनी पोती गुड्डो का जिक्र करती हैं, जोकि अपनी माँ के साथ मथुरा में रहती है। दादी अपने बेटे को खो चुकी हैं वह चाहती हैं जैसे उनके हॉस्टल में लड़कियां पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो रही है वैसे ही गुड्डो भी अपना भविष्य बनाए। वह उसकी शादी में उसे एक स्कूटी भेंट स्वरूप देना चाहती हैं ताकि उसे कही भी आने जाने के लिए किसी दूसरे पर निर्भर न रहना पड़े। 

दादी अपनी पोती गुड्डो को इंदौर बुलाना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि वह भी शहरी लड़कियों की तरह स्मार्ट बने गाड़ी चलाना सीखे। शहरी व्यंजन बनाना सीखे।

बड़े दिल वाली महिला 

आजकल की नई पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी के लोग दकियानूसी ख़यालो वाले लगते हैं उन्हें बात-बात पर रोक-टोक पसंद नहीं आती है। ऐसे में दादी का काम और भी मुश्किल हो जाता है। दादी जब किसी लड़की को देर से आने और नियम पालन न करने पर डाँटती है, तो कई बार लड़कियां उनसे बुरा बर्ताव भी करती हैं लेकिन दादी इन बातों का बुरा नहीं मानती बल्कि वे अगले दिन माँ की तरह स्नेहपूर्वक व्यवहार करती हुई दिख जाती हैं। कई बार सीमित आमदनी और संसाधनों के बावजूद दादी हाॅस्टल की जरूरतमंद लड़कियों की मदद भी करती हैं। 

संघर्षों भरा है दादी के अतीत का जीवन

दादी जीवन में अनगिनत संघर्षों से लड़ते हुए आज यहां तक पहुँची हैं। आठवीं कक्षा में थी, तभी विवाह हो गया। किताबों का बोझ उठाने की उम्र में रिश्तों का बोझ उठाना पड़ा। शादी के बाद अपनी ससुराल आगरा रहने लगीं, उसके बाद अपने पति के साथ आगरा से रतलाम गईं। लेकिन कुछ समय बाद वापिस आकर मथुरा रहने लगीं। वर्ष 1996 में पति को हुए पैरालिसिस अटैक ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। गमों का सिलसिला यही खत्म नही हुआ   कुछ साल बाद एक दुर्घटना में बेटा भी चल बसा। बेटे की पत्नी और बेटी की जिम्मेदारी का पहाड़ सामने था। ऐसे में सहारा बनकर आए किसी परिचित के माध्यम से पति पत्नी  इंदौर आ गए और यहाँ आकर हॉस्टल का ज़िम्मा संभाला। पिछले 15-16 साल से वह इसी हाॅस्टल में ही रह कर इसकी देखभाल कर रहे हैं और रूपए बचाकर अपनी पोती गुड्डो के लिए भी भेजते हैं। hairy woman


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