रेल मंत्रालय के अनुसार पूरे भारत में पिछले तीन साल में लगभग पचास हजार लोगों की जान गलत तरीके से पटरी पार करने के कारण गयी है। मुंबई में वर्ष 2019 दुर्घटना के कारण हुई मौतों के मामले मे सबसे अच्छा रहा जब 2700 लोगों की जान विभिन्न रेल दुर्घटनाओं में हो गई। इनमें से सबसे ज्यादा 1400 लोगों की जान रेल पटरी को पार करने के दौरान गयी। पटरी पार करने के दौरान होने वाली मौतों को रोकने के लिए मुंबई में सेंट्रल रेलवे और ‘फाइनल माइल’ (Final Mile) नामक कंपनी ने एक साथ मिलकर एक प्रयोग किया जिसे ‘वडाला एक्सपेरिमेंट’ नाम दिया गया।
इस प्रयोग को मुंबई के व्यस्त इलाके वडाला में किया गया जिसके नाम पर इसे वडाला एक्सपेरिमेंट कहा जाता है। इस एरिया में पटरी के आस पास बहुत से लोग रहते हैं। इस एक्सपेरिमेंट ने लोगों के दिमाग पर असर डाला जिससे पटरी पार करने के दौरान होने वाली मौतों को रोकने में काफी मदद मिली। यह प्रयोग मुख्य रूप से तीन मनोवैज्ञानिक कारणों पर आधारित है जिनसे लोग ट्रेन के सामने आने पर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
पहला मनोवैज्ञानिक कारण है परिणाम की कल्पना न होना।
रेल पटरी पर चलते समय अचानक से ट्रेन के सामने आ जाने पर दिमाग का यह निर्णय न ले पाना कि रूको या भागो। इसी हड़बड़ी में लोग ट्रेन के नीचे आ जाते हैं। रेलवे ने ऐसे स्थानों पर ऐसे बोर्ड लगाए जिनमे एक्सीडेंट के चित्र थे। पोस्टर और बोर्ड लगाने का यह परिणाम हुआ कि लोग दुर्घटना के बारे में सचेत होने लगे।
दुर्घटनाओ के पीछे दूसरा मनोवैज्ञानिक कारण यह था कि
इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्यों को तेजी से आती बड़ी चीज की अपेक्षा छोटी चीज से ज्यादा डर लगता है। यह मनुष्य के क्रमिक विकास का परिणाम है। क्योंकि आदि मानव को हाथी ऊट की अपेक्षा आते हुए चीता और तेंदुए से ज्यादा खतरा होता था। पटरी पार करते समय आमतौर पर लोगों को ट्रेन के बड़े आकार के कारण उसकी सही दूरी का अनुमान नही हो पाता था और लोग दुर्घटना का शिकार हो जाते थे। इससे बचने के लिए रेलवे ने सम्भावित दुर्घटना क्षेत्रों में ट्रैक के स्लीपर्स को पीले रंग से रंग दिया गया। जिसने एक मार्कर का काम किया, इससे लोगों को आती हुई ट्रेन की सही दूरी का पता चलने लगा।
दुर्घटनाओ के पीछे तीसरा अहम कारण था कि लोग तेजी से आती हुई ट्रेन की आवाज़ नही सुन पाते थे।
यह सभी दुर्घटना सम्भावित क्षेत्र शहर के अंदर शोरगुल वाले स्थानों पर थे। रेलवे ने इस समस्या के हल के लिए इन सभी दुर्घटना बाहुल्य स्थानों से 120 मीटर पहले रेल ड्राईवरों के लिए हार्न बोर्ड लगाए और निर्देश दिए कि इन बोर्ड को क्रास करते हुए थोड़े थोड़े अंतराल पर दो हार्न बजाएं। हार्न की तेज ध्वनि से लोग सचेत हो जाते हैं दो बार हार्न बजाने से लोग ट्रेन की सही दूरी का अनुमान लगा पाने लगे।
पिछले वर्ष ट्रेन यात्रियों के लिए सबसे सुरक्षित साल रहा जब पूरे साल में किसी भी यात्रा की जान नही गई। भारतीय रेल अपने यात्रियों तथा देशवासियों की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध है। लेकिन लाखों किलोमीटर लंबी पटरियों और हजायों रेलगाड़ियों वाले विशाल रेलतंत्र में दुर्घटना रोकने के लिए आम नागरिकों को भी साथ आना होगा। गलत तरीके से पटरी पार करने, दरवाजे पर लटक कर यात्रा करना, डिब्बों के ऊपर चढ़कर यात्रा करना आदि को छोड़ना होगा। तभी हमारी रेलयात्रा मंगलमय हो पाएगी। unshaven girl