एक बार निर्माता बलदेव दुबे को पुलिस स्टेशन में कोई काम पड़ा वहां उन्हे पुलिस अधिकारी कुलभूषण पंडित मिले, उनके रौब और स्टाइल देख कर बलदेव इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी फिल्म “शाही बाजार” में काम करने का न्योता दे दिया। इन्ही कुलभूषण पंडित को आज सिने जगत में अभिनेता राजकुमार के नाम से जाना जाता है।
बलूचिस्तान में जन्मे कुलभूषण पंडित 1940 के दशक के आखिरी वर्षो में भारत आ गए थे और बम्बई पुलिस में नौकरी करने लगे। वो एक तुनक मिजाज और अड़ियल कलाकार थे जिस ने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया। फिल्म जगत एक ऐसी जगह है जहाँ कभी न कभी हर कलाकार को समझौता करना पड़ता है, लेकिन राजकुमार ऐसे कलाकार थे, जिन्होने कभी अपनी शर्तों से समझौता नहीं किया। कुछ तो बात थी इस सदाबहार जिंदा दिल ऐक्टर में जो इतनी तुनक मिजाजी के बावजूद निर्माता फिल्म में उन्हे काम देते रहते थे।
ठुकरा दी ‘जंजीर’
बॉलीवुड में उनकी तुनक मिजाजी और अड़ियल रवैये के तमाम किस्से मशहूर हैं। कहते हैं कि निर्देशक प्रकाश मेहरा ने फिल्म जंजीर के लिए राजकुमार को अमिताभ बच्चन वाला रोल आफर किया था। राजकुमार को रोल और स्क्रिप्ट पसन्द आई लेकिन उन्होने यह कहकर मना कर दिया कि तुम्हारे बालों में लगे तेल की खुशबू मुझे पसन्द नही। इसी तुनक मिजाज के चलते उनकी दिलीप कुमार और राजकपूर से भी लड़ाई हो गयी।
पाकीजा फिल्म का यह डायलाग उनके बोलने के खास अंदाज से अमर हो गया –
”आपके पैर बहुत खूबसूरत हैं, इन्हें ज़मीन पर मत रखिएगा, मैले हो जाएंगे”।
फिल्म में उनके छोटे रोल भी दर्शकों कों आज भी याद हैं। उनकी ऐक्टिंग और सफेद जूते उनके चाहने वाले दर्शकों के जेहन में आज भी जिंदा हैं।
जानी…हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे, पर बंदूक भी हमारी होगी और गोली भी हमारी होगी और वह वक्त भी हमारा होगा…जैसे डायलाग उनकी विशिष्ट संवाद अदायगी की शैली और हाजिर जवाबी के आज भी लोग कायल हैं,वह एक ऐसे शख्स थे कि कब किसकी बेइज्ज़ती कर दे कुछ पता नही चलता था।
फिल्मी कैरियर
राजकुमार का बॉलीवुड में पदार्पण हुआ 1952 में आई फिल्म “रंगीली” से। उसके बाद आबसार,लाखों में एक और घमंड जैसी फिल्मों में काम किया। 1957 सोहराब मोदी की नौशेरवां ए आदिल उन्हे मशहूर कर दिया। उसके बाद आई फिल्म मदर इंडिया जिसमें नरगिस के पति का छोटा लेकिन सशक्त रोल अदा किया। 1959 में फिल्म पैगाम में एक मिल मजदूर के रोल मे दिलीप साहब के साथ काम करने का मौका मिला। इसी साल वे शम्मी कपूर के साथ उजाला नामक फिल्म में नजर आए। 1961 में यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी फैमिली ड्रामा फिल्म “वक्त” में सुनील दत्त, बलराज साहनी और शशि कपूर के साथ काम किया। इस फिल्म में उनके बोले गए डायलाग्स ने उन्हें अलग पहचान बना दी।
1971 में आई फिल्म हीर रांझा में उनके जबर्दस्त अभिनय ने उन्हें रोमांटिक रोल में भी सुपरस्टार बना दिया। उसके बाद हमराज मर्यादा (1971) लाल पत्थर, पाकीज़ा (1972) फिल्में बाक्स आफिस पर सुपरहिट रही बड़ी।
80 के दशक के आखिरी वर्षों और 90 के शुरुआत में उनकी फिल्म फ्लाप हो रही थी। 1981 के बाद वे सहायक अभिनेता के किरदार में नजर आए। जिसमें उन्हे पर्याप्त सफलता मिली। कुदरत, एक नई पहेली, मरते दम तक, मुकद्दर का फैसला और जंगबाज जैसी मल्टी स्टारर फिल्मों में उनके अभिनय को काफी सराहा गया।
1991 में 32 सालों बाद वे एक बार फिर दिलीप कुमार साहब के साथ फिल्म “सौदागर” में नजर आए। इस फिल्म को बॉलीवुड के शो मैन कहे जाने वाले सुभाष गईं निर्देशन कर रहे थे। 1992 में “तिरंगा” में एक बार फिर उन्होंनें अपने दमदार अभिनय से ब्रिगेडियर सूर्य देव सिंह के किरदार को अमर कर दिया। 1995 में आई ‘गाॅड एंड गन’ उनकी आखिरी फिल्म थी।
1963 में आई श्रीधर निर्देशित फिल्म दिल एक मंदिर में राजकुमार ने कैंसर पीड़ित मरीज का किरदार निभाया था जिसके लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। क्या पता था कि एक दिन यही बीमारी उनकी मृत्यु का कारण बनेगी। 69वर्ष की आयु में 3 जुलाई 1996 की गले के कैंसर के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। hairy woman
Leave a Reply