पुराने वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि घी एक ऐसा उत्पाद है जो मां के दूध की गुणवत्ता के निकट होता है और मस्तिष्क संबंधी कोर्टेक्स के समान आणविक संरचना होती है।
घी- एक चमत्कारी औषधि
जो आयुर्वेद इस्तेमाल कर चुके हैं वे जानते हैं कि घी को पहले से ही चमत्कारी दवा का रुतबा प्राप्त है। पुराने वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि घी एक ऐसा उत्पाद है जो मां के दूध की गुणवत्ता के निकट होता है और मस्तिष्क संबंधी कोर्टेक्स के समान आणविक संरचना होती है। अनुभव से यह ज्ञात है कि जितने समय के दौरान बच्चों का पोषण केवल मां के दूध द्वारा होता है, उनका पाचन तंत्र बहुत अच्छी तरह से कार्य करता है और उनके मल में एक सुखद गंध होती है, साथ ही बच्चों में भी बहुत ही सुखद गंध होती है और उनकी नाजुक प्रतिरक्षा प्रणाली जीवन में किसी अन्य समय की तुलना में इस समय ज्यादा मजबूत होती है। क्योंकि दूध में माता का प्यार होता है, जो इसे सभी सामग्रियां प्रदान करता है जो कि बच्चे के लिए अच्छी तरह से विकसित होते हैं। विशेष रूप से, ओज बीमारियों से शरीर को बचाता है। यह सामग्री स्वस्थ शिशु में उच्च मात्रा में पाई जाती है और गहरे आकर्षण का कारण भी है जो बच्चों के प्रति लोगों में होता है।
“खुशहाल” और स्वस्थ गाय के दूध में लगभग समान बहुमूल्य सरंचनात्मक पदार्थ होते हैं। दूध के इन गुणों को एकीकृत करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं को करें:- दूध से मलाई निकालना। मलाई से मक्खन बनाना। अगला कदम होता है मक्खन को पिघलाना और शुद्ध करना। आखिर में मिलने वाला उत्पाद “घी” होता है।
घी प्रोटीन और अपशिष्ट पदार्थो से मुक्त होता है और इसमें ओज की मात्रा अन्य सभी भोजन से अधिक होती है।
लेकिन सावधान रहें। बहुत ज्यादा घी इस्तेमाल करने से लीवर कमजोर हो सकता है।
प्रत्येक भोजन जिसे घी में पकाया जाता है उसके अपने गुण भी ताकतवर हो जाते हैं, मानव शरीर द्वारा इसे बेहतर ढंग से अवशोषित किया जाता है और पचाने में आसान होता है। घी भोजन को विघटित करने और इसकी ऊर्जा को स्थानांतरित करने के लिए सबसे अच्छा उत्प्रेरक है। घी को पाचन क्रिया द्वारा इतना परिष्कृत बना दिया जाता है कि यह छोटी से छोटी कोशिकाओं में भी प्रवेश करने में सक्षम रहता है, उनका पोषण और सफाई करता है। इसके अलावा, घी में जीवन को नये प्राण देने का प्रभाव होता है।
आयुर्वेदिक शुद्धिकरण उपचार, पंचकर्म में भी घी का इस्तेमाल होता है। अन्य शुद्धिकरण तरीकों की तुलना में, पंचकर्म न केवल पानी में घुलनशील अशुद्धियों को हटाता है बल्कि वसा में घुलनशील विषाक्त पदार्थों और शरीर में जमा भारी धातु को भी हटाता है।
घी बहुत ही शुद्ध और जानवरों के प्रोटीन से पूरी तरह मुक्त होता है: घी बनाने के लिए केवल नमक रहित, आर्गेनिक मक्खन ही इस्तेमाल करें। इन्ही कारणों से घी को आयुर्वेदिक रसोई में वनस्पति तेलों की तुलना में पसंद किया जाता है। तेलों को ऊपर से छिड़का जाता है। जैतून और सूरजमुखी से कोल्ड प्रेस्ड तेलों को आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से सबसे अच्छे तेलों में गिना जाता है क्योंकि वे पचाने में आसान और पौष्टिक होते हैं। हालांकि, मैं इन तेलों को तलने के लिए इस्तेमाल नहीं करने की सिफारिश करता हूं। इसके लिए, नारियल तेल इस्तेमाल करना बेहतर रहता हैं। तलने के लिए घी भी इस्तेमाल किया जा सकता है। फिर भी, इसे बहुत ज्यादा गर्म न होने दें क्योंकि यह बहुत जल्दी जल जाता है। यदि घी से धुआं निकलने लगे तो, समझ ले यह बहुत गर्म हो चुका है। कृपया केवल उच्च गुणवत्ता के तेलों का इस्तेमाल करें। सस्ते तेल ज्यादातर मूंगफली से बनाये जाते हैं और पचाने में मुश्किल होते हैं। बुरे तेल के सेवन से पेट भी फूलता है। सोयाबीन के तेलों से बचें, जिन्हें पचाना मुश्किल होता है और अक्सर आनुवांशिक रुप से संसोधित पौधे से बनते हैं।
घी बनाने का तरीका
अनुमानित समय: 25 मिनट्स।
सामग्रियां: 1 किलोग्राम मक्खन
मैं आपसे आर्गेनिक स्रोतों या अच्छी डेयरी से अच्छा, नमक रहित मक्खन खरीदने की सिफारिश करता हूं। घी लगभग अनिश्चित समय तक चलता है। घी को मिट्टी के बर्तन में किसी ठंडे स्थान पर, सूखी जगह पर रखना सबसे अच्छा रहता है। फ्रिज में रखा हुआ घी कंडेन्स्ड पानी के जमने की वजह से जल्दी खराब हो सकता है। घी को केवल साफ, सूखे चम्मच से निकालना महत्वपूर्ण होता है।
तैयारी: समय लगभग 1 किलोग्राम मक्खन के हिसाब से है। अन्य मात्रा में समय अलग-अलग हो सकता है।
बढ़िया, नमक रहित मक्खन को एक गहरे, चौड़े बर्तन में मध्यम आंच पर उबाल आये बगैर पिघलाए। (इसे जलने न दें!)
उपाय: तापमान को फूड थर्मोमीटर से नियंत्रित करें।
अगले 10 से 15 मिनट्स के दौरान, प्रोटीन वसा से अलग होता है, अलग हुआ प्रोटीन सतह पर एकत्रित होता रहता है और मक्खन की नमी भाप बनकर उड़ती रहती है। मक्खन लगभग 1/8 पानी होता है।
यदि, अगले 5 मिनट्स के बाद, प्रोटीन मक्खन से अलग हो जाती है, उसके बाद इसे छननी वाले चम्मच की मदद से सावधानी पूर्वक सतह से हटा लें। यह प्रक्रिया घी के सुनहरा भूरा और क्रिस्टल की तरह साफ होने पर जारी रखें। पूरी प्रक्रिया के दौरान आपको घी को छूना और हिलाना नहीं चाहिए और तापमान 108 डिग्रीसेंटीग्रेड से अधिक नहीं जाना चाहिए। (थर्मोमीटर)
थोड़ी देर बाद तरल पूरी तरह से पारदर्शी हो जाता है और बर्तन/ कढ़ाई के तल पर केवल कुछ कण रह जाते हैं। घी को हिलाये नहीं।
चूल्हा बंद कर दें और घी को 20 मिनट ऐसा ही रखा रहने दें। इसके बाद छननी के अंदर पतला कपड़ा इस्तेमाल करते हुए इसे मिट्टी के बर्तन में या, नहीं तो, स्टेनलेस स्टील के मर्तबान में छान लें। जब घी ठंडा हो जाये, आप ढक्कन बंद कर सकते हैं।
दूसरा तरीका:
जो लोग शहरों में रहते हैं वे शायद इससे परिचित होंगे। हम लोग प्रत्येक दिन घर के लिए दूध लेते हैं, जब हम दूध को उबालते हैं और उसे ठंडा होने के लिए रखते हैं तो ठंडा होने पर उसके ऊपर मलाई की परत जम जाती है जिसे आप अलग बर्तन में जमा कर सकते हैं और उस बर्तन के भर जाने तक हर रोज या जब भी आप दूध खरीदकर लाते हैं मलाई की परत इसमें डालते रहें। बर्तन को फ्रीजर में रखें ताकि मलाई खराब न हो, जब बर्तन भर जाये तो इसे फ्रीजर से निकालकर इसके सामान्य होने तक किसी सुरक्षित जगह में रख
दें। जब यह सामान्य तापमान पर पहुंच जाता है तो इससे अच्छी तरह मिला लीजिए और चाहे तो इसमें और दही डालें और दोनों को मिलाकर रात भर के लिए छोड़ दें।
अब इसे बड़े बर्तन में डालें और हाथ से फेंटना शुरु करें, यह थोड़ा मेहनत का काम है। करीब 10 मिनट तक फेंटने के बाद आप देखेंगे कि मक्खन पानी से अलग होने लगा है जब यह पूरी तरह से अलग हो जाये तो इसका गोला बना लीजिए।
घी बनाने का तरीका पहले जैसा ही है।
आपकी अपनी सुरक्षा के लिए, बर्तन/ कढ़ाई को ऐसे ही न छोड़ें और घी को छानते समय सतर्क रहें क्योंकि गर्म घी से आपकी त्वचा जल सकती
आयुर्वेदिक रसोई में ताजा दही तैयार करना और इसका विशेष महत्व
प्राचीन काल से ही पूरी दुनिया में लोग ताजा बना, खुद बनाये गये खट्टे दूध के उत्पादों का सेवन करते आये है। उनमें प्राकृतिक और संतुलित बैक्टीरिया मिले होते हैं जो आंतों की पूरी प्रणाली पर अनुकूल असर डालते हैं। जमे हुए दूध के उत्पाद, गाढ़ा खट्टा दूध, छाछ और योगर्ट कुछ जाने-माने खट्टे दूध उत्पाद हैं। मिश्र से भारत तक दही से बनने वाला पेय ऐसा है जो प्रत्येक देश में लगभग एक ही तरीके से बनाया जाता है। तुर्की में इस दही के पेय को हैरान कहा जाता है और भारत में यह प्रसिद्ध राष्ट्रीय पेय, लस्सी के नाम से जाना जाता है। एंटीबॉयोटिक्स लेने के बाद जो कि आंतों की प्रणाली को बरबाद कर देते हैं, आपको इस प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए एक हफ्ते तक हर रोज 1-2 गिलास नमकीन लस्सी पीनी चाहिए।
आप अपने लिए दही खुद तैयार करें। इन दिनों बिकने वाली अधिकांश दही, योगर्ट कल्चर्ड से भरी होती है जिन्हें प्रयोगशालाओं में कृत्रिम रूप से उत्पादित किया जाता है और कुछ कल्चर्ड को आनुवंशिक रुप से संशोधित किया जाता है। अच्छे दही में, जो ताजा बनाया गया हो, प्रकृति मां के बहुत बेहतर और स्वस्थ बैक्टीरिया कल्चर होते हैं। 2 दिनों के बाद दही का अति-अम्लीकरण (बहुत खट्टा) हो जाता है और इसे लंबे समय तक इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
ताजा दही जमाना
तैयारी का समय : 10-15 मिनट्स। जमने की अवधि 6-8 घंटे,
सामग्रियां: 1 लीटर मलाई वाला दूध और 125 ग्राम दही।
तैयार करने की विधि:
दूध को गहरे बर्तन में डालें, इसमें उबाल आने दे और उसके बाद धीरेधीरे लगभग 2-4 मिनट्स तक गर्म करें।
बर्तन को ठंडे पानी के बर्तन में रखें और इसे लगभग 38-40 डिग्री सेंटीग्रेट तक ठंडा होने दें। डबल बॉयलर इसके लिए उपयुक्त रहता है। सावधानीपूर्वक, चम्मच से दूध में दही डालें, इसे अच्छी तरह से मिला लीजिए। बर्तन को ढक्कन से बंद कर दें और इसे लगभग 6-8 घंटों के लिए 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान वाली गर्म जगह पर रख दें। कोई गर्म आलमारी उपयुक्त रहेगी लेकिन यदि गर्म जगह उपलब्ध नहीं है तो दूध को बड़े, चौड़े थर्मस फ्लास्क में डालें और इसे तौलिये से लपेट लें। 6-8 घंटे के बाद दही तैयार हो जायेगा। दूध ठोस और दही एकसार होनी चाहिए।
दही को तुरंत फ्रिज में रख दें, अन्यथा इसमें और अधिक खमीर उठेगा और इसकी वजह से यह बहुत खट्टा हो जायेगा।
देखिए अपने लिए खुद दही बनाना कितना सरल है!
आयुर्वेदिक जल
उबला हुआ पानी, घी की तरह ही, शरीर की सफाई के लिए महत्वपूर्ण होता है और इसे अच्छी स्थिति में रखता है। आयुर्वेद में ऐसा माना जाता है कि पानी को कम से कम दस मिनट्स तक उबालना ऐसी परिवर्तन प्रक्रिया को शुरु करता है जिससे उच्च गुणवत्ता का पानी तैयार होता है। इस प्रकार का पानी शरीर के विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करता है। इस पानी “आयुर्वेदिक जल” को पूरे दिन पिया जाना चाहिए (पित्त प्रवृत्ति वालों को इसे गर्म पीना चाहिए)। 10 मिनट्स तक गर्म करने की प्रक्रिया से यह मोलिक्यूलबॉयोलॉजिकल सरंचना में बदल जाता है। पानी सौम्य और नर्म हो जाता है और विषाक्त पदार्थों को हटाते हुए, संपूर्ण शरीर प्रणाली में बिना बाधा के प्रवाहित हो सकता है। उबालने के बाद, धीमी आंच पर ढक्कन के बगैर उबलने देना चाहिए। यह पानी को शुद्ध करता है और अशुद्धियों को बेअसर, अलग और समाप्त करता है। इसीलिए, अपना थर्मस पानी से भरने के बाद बर्तन में थोड़ा सा पानी छोड़ देना चाहिए। पानी को दिन भर धूंट भरकर पीना सबसे अच्छा रहता है।
ध्यान देने योग्य बात: प्रत्येक दिन 1 लीटर पर्याप्त रहता है, जब तक कि आपका डॉक्टर आपको ज्यादा मात्रा में पीने के लिए न कहें। जल्दी ही आप जान जायेंगे कि इस तरह से तैयार किये गए पानी का बहुत अच्छा स्वाद होता है। यह सौम्य और हल्का सा मीठा होता है। इसे फलों के रस, हर्बल चाय और स्टिल मिनरल वॉटर के साथ मिलाना सर्वोत्तम रहता है।
अदरक वाला पानी
धुले और छिले हुए अदरक के 4 टुकड़े (लगभग 5 मिमी) 1 लीटर पानी में डालें और इसे तब तक उबालते रहें जब तक यह आधा लीटर न रह जाय। आप अदरक वाला पानी दिन में कभी भी पी सकते हैं। यह सर्दी और कफ बढ़ने की वजह से होने वाली इस तरह की बीमारियों में मदद करता है। पित्त प्रवृत्ति वाले लोगों को अदरक वाला पानी बहुत ज्यादा नहीं पीना चाहिए। займы на карту