23 जून से शुरू हो रही पवित्र अमरनाथ यात्रा, यहाँ हैं यात्रा से जुडी विशेष जानकारियां

बाबा बर्फानी के दर्शनों की आस लगाए भक्तों का इंतजार ख़त्म होने वाला है। जल्द ही भक्तों को श्री अमरनाथ के पावन एवं मंगलमय यात्रा का लाभ मिलेगा। प्रतिवर्ष निश्चित समय के लिए गुफा को भक्तों के दरशनार्थ खोला जाता है। जम्मू कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू में आयोजित श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड की बैठक में श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष एवं जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल श्री गिरीश चंद्र मुर्मू ने यात्रा सम्बन्धी तारीखों की घोषणा की है।

प्रति वर्ष यात्रा आषाढ़ मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक चलती है। परन्तु इस वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन शुरू नहीं हो सकती है क्योंकि इस दिन सूर्य ग्रहण का योग बन रहा है। शायद इसी कारण यात्रा 21 जून से प्रारम्भ न होकर 23 जून से आरम्भ होगी। हालांकि श्राइन बोर्ड की तरफ से अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। फ़िलहाल यात्रा की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं।

हालाँकि बोर्ड से जुड़े अधिकारीयों के अनुसार इस सन्दर्भ में कुछ धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों ने उपराज्यपाल से मिलकर यात्रा की तारीख 1 जुलाई से शुरू करने का आग्रह किया। परन्तु तब इसे लेकर सहमति नहीं बन पायी थी।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस शिवलिंग की खोज सर्वप्रथम महर्षि भृगु ने की थी। इस गुफा की परिधि लगभग 150 फ़ीट के आस-पास है। गुफा से टपकने वाली बूंदों से इस गुफा में 10-12 फ़ीट लम्बा शिवलिंग बनता है। वैसे तो पानी की बूंदें अन्य गुफाओं में भी टपकती रहती हैं किन्तु वहां ऐसा दृश्य नहीं दिखाई पड़ता है। खास बात ये भी है कि इस शिवलिंग की ऊंचाई चन्द्रमा की कलाओं की भांति घटती बढ़ती रहती है। जहाँ पूर्णिमा को ये शिवलिंग अपने पूर्ण आकार में होता है वहीँ अमावस्या के दिन यह अन्य दिनों की अपेक्षा काफी छोटा होता है।

श्री अमरनाथ गुफा तक जाने के दो मार्ग हैं। पहला मार्ग पहलगाम से होकर जाता है। तो वहीँ दूसरा मार्ग सोनमर्ग के बालटाल से होकर गुजरता है। यात्रा पैदल ही की जाती है। बालटाल से गुफा की दुरी तो महज 14 किलो मीटर ही है किन्तु रास्ता अपेक्षाकृत अधिक दुर्गम है। इसलिए अधिकतर लोग पहलगाम से यात्रा करते हैं जो कि अधिक सुगम है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती को इसी गुफा में अमरत्व का रहस्य बताया था। जिसे एक शुक पक्षी ने सुन लिया था। और उस रहस्य को सुनकर वो भी अमर हो गया। कालांतर में जब महर्षि भृगु ने इस पवित्र गुफा की खोज की तबसे ही इस स्थान पर शिव आराधना एवं यात्रा का आरम्भ हुआ।

इसके अलावा इस पावन गुफा की यात्रा के प्रमाण महाभारत काल एवं बौद्ध काल में भी मिलते हैं। कल्हण की ‘राजतरंगिणी तरंग द्वितीय’ में  भी इस गुफा का वर्णन है। यह ग्रन्थ ईसा पूर्व में ही लिखा गया था।

कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने अमरत्व का प्रवचन माता पार्वती को सुनाया था। उस दौरान उन्होंने अनेकों छोटे बड़े नागों को ‘अनंतनाग’ में छोड़ा था। माथे का चन्दन ‘चन्दन बाड़ी’ नामक स्थान पर उतारा था। पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर उतारा था और अपने गले में धारण किये हुए शेषनाग को ‘शेषनाग’ में छोड़ा था। ये सभी स्थल पवित्र यात्रा मार्ग में पड़ते हैं। займ онлайн на карту без отказа


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *