900 साल पूराना कटारमल मंदिर एक भव्य सूर्य मंदिर है,जिसे “बढ़ा आदित्य मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। कटारमल, अल्मोड़ा से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कोसी नदी के पास हवालबाग और मटेला को पार करते हुए लगभग तीन किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। कटारमल मंदिर को कुमाऊँ का एकमात्र सूर्य मंदिर होने का गौरव प्राप्त है।
सूर्य की पहली किरणें कटारमल सूर्य मंदिर पर सीधी पड़ती हैं। जब सूर्य की पहली किरण मंदिर पर पड़ती है तो वह सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति उजागर करता है जिसे “व्रतादित्य” भी कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान आदित्य की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बरगद के पेड़ की लकड़ी से बनी है। मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय दिल्ली के ‘राष्ट्रीय संग्रहालय’ की दीर्घा में रखा हुआ है।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार कहते हैं कि सतयुग में, उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्म और आस्था ना रखने वाले एक असुर ने अत्याचार किया था। उस समय द्रोणगिरी कषायपर्वत और कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी (जो अब कोसी नदी कहलाती है) के तट पर आकर सूर्य देव की स्तुति की थी। ऋषि मुनियों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर, उन्होंने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने ‘बड़ादित्य’ नामक तीर्थ स्थान के रूप में इस सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया, जो अब कटारमल सूर्य मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।
मंदिर में शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियाँ भी हैं, जो जटिल मूर्तिकला का एक खुबसूरत उदाहरण है। प्रिजर्विंग देवता की 10 वीं शताब्दी की मूर्ति चोरी हो जाने के बाद, दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में जटिल नक्काशीदार दरवाजे और पैनल को सुरक्षित रखा गया है। इस मंदिर को प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व का स्मारक घोषित किया गया है।
इस मंदिर की कुछ अलग ही स्थापना शैली है और दीवारों पर उकेरी गई छवि बहुत ही बारीक और आकर्षक दिखती है। हालांकि, अब यह मंदिर खंडहर के बीच में खड़ा है परन्तु, आज भी इसे क्षेत्र के मुख्य आकर्षण के रूप में गिना जाता है और यहाँ भक्त, सूर्य देव के समक्ष प्रार्थना करने के लिए आते हैं।
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