अमिताभ बच्चन, एक ऐसा नाम जो बॉलीवुड की पहचान तथा परिभाषा बन चुका है। आप देश-विदेश कहीं भी चले जाएं, अगर वहां बॉलीवुड का जिक्र होगा तो अमिताभ बच्चन का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाएगा। सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव से भरी हुई है और प्रेरणादायक है। अमिताभ बच्चन का फिल्मी सफर 5 दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने, अपने अभिनय से सभी के दिलों को जीता है और उनके कुछ किरदार आज भी बॉलीवुड के इतिहास में मील का पत्थर माने जाते हैं।
शोले फिल्म का जय हो, या जंजीर फिल्म का इंस्पेक्टर विजय खन्ना, अग्निपथ का विजय दीनानाथ चौहान हो या शराबी का विक्की कपूर, पा फिल्म का ऑरो या सूर्यवंशम फिल्म का ठाकुर भानु प्रताप; उनके हर किरदार हमारी यादों में आज भी जिंदा है। लेकिन उनकी जिंदगी के कुछ ऐसे किस्से भी हैं जिनसे बहुत से दर्शक अनजान हैं। आज हम ऐसे ही एक दिलचस्प किस्से के बारे में बात करते हैं और यह जानते हैं कि 1984 के लोकसभा चुनाव में, जब अमिताभ बच्चन ने अपना हाथ राजनीति में आजमाया तो उनका अनुभव कैसा रहा।
गांधी परिवार और बच्चन परिवार के दोस्ती काफी पुरानी है। अमिताभ बच्चन के पिता श्री हरिवंश राय बच्चन, इंदिरा गांधी के बहुत अच्छे मित्र थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, लोकसभा चुनाव में, अमिताभ बच्चन अपने दोस्त राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए और इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। 1984 का चुनाव कांग्रेस और अमिताभ बच्चन के लिए, इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से काफी नाटकीय अंदाज में शुरू हुआ और अंत में अमिताभ ने भारी मतों से जीत दर्ज की।
1984 के चुनाव में अमिताभ बच्चन का मुकाबला लोक दल के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं हेमवती नंदन बहुगुणा से था। यह चुनाव भी किसी आम चुनाव की तरह ही आगे बढ़ रहा था, लेकिन जब कांग्रेस ने, महानायक अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद सीट से अपना प्रत्याशी घोषित किया, तो मानो शहर की फिजा ही बदल गई। उनका नामांकन भी काफी नाटकीय अंदाज से हुआ था। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि के 1 दिन पहले तक कुछ पता नहीं चल रहा था कि कांग्रेस किसे टिकट देगी, फिर अचानक खबर आई कि अमिताभ बच्चन इलाहाबाद सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे और अगले ही दिन अमिताभ बच्चन इलाहाबाद आए और अपना नामांकन दाखिल किया।
इस महान अभिनेता ने प्रचार और जनसभाओं के दौरान अपने कई डायलॉग से लोगों का दिल जीत लिया जो आज भी लोगों की जेहन में जिंदा है। ऐसा ही एक डायलॉग, जो एक जनसभा के दौरान अमिताभ ने बोला था- “मैं एक शून्य हूं और इस शून्य को आप की संख्या दस गुना करेगी” जनता में काफी प्रचलित हुआ। जनसभाओं के दौरान उनके अंदाज को लोगों ने बहुत पर पसंद किया और खासतौर पर युवा उनकी जनसभाओं से काफी प्रभावित हुए। के पी कॉलेज मैदान पर हुई अमिताभ की जनसभा आज भी लोगों को याद है। इस जनसभा में राजीव गांधी भी आए थे, अमिताभ फिल्मी अंदाज में घुटनों पर बैठकर हाथ जोड़ते हुए राजीव गांधी से यमुना पर पुल बनवाने का आग्रह किया और वह बोले “साहब एगो पुलवा बनवाई दा बड़ा दिक्कत होत बा”। इसके बाद राजीव गांधी ने यमुना नदी पर पुल बनवाने का वादा किया।

इस चुनाव का एक दूसरा पहलू भी है, जो कुमकुम चड्ढा बताती हैं। इस वरिष्ठ पत्रकार ने उस चुनाव को कवर करने का काम किया था। वह कहती हैं, “उस चुनाव में बच्चन अपना रोल नहीं बदल पाए, वे आखिर तक यही समझते रहे कि वह फिल्म स्टार है, उन्होंने सर्किट हाउस में बंद कमरे में चुनाव लड़ा, उनके चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई अजिताभ हाथों में थी और वह कम जनसभाएं करते थे”।
कुमकुम आगे बताती हैं, “सर्किट हाउस का गेट बंद रहता था, अमिताभ के कमरे का दरवाजा भी बंद रहता था और चुनाव प्रचार में हर जगह अमिताभ रटी-रटाई पाँच या छः वाक्य बोलते थे”। कुमकुम चड्ढा अपने अनुभवों को याद करके कहती हैं, “उनको(अमिताभ) चुनाव की बारीकियों और गहमागहमी की बिल्कुल भी समझ नहीं थी, शुरू में वह शर्तिया चुनाव हार रहे थे, उनके पक्ष में हवा तब बदली जब जया चुनाव प्रचार में कूदी, जया ने ‘भाभी’, ‘देवर’ और ‘मुंहदिखाई’ वाले जुमले बोलकर, जीत अमिताभ के पक्ष में डाल दी। मेरा तब भी मानना था और अभी मानना है कि अगर जया चुनाव प्रचार में नहीं खुद ही होती तो अमिताभ के लिए चुनाव जीतना टेढ़ी खीर होता”।
वर्ष 1984, पहला और आखरी मौका था, जब अमिताभ ने अपने हाथ चुनावी दांव पेंच में आजमाएं, इसके बाद उन्होंने अपने फिल्मी करियर पर ज्यादा ध्यान दिया और राजनीति से दूर हो गए।
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