पूरे संसार में तीन तरह की सोच के लोग हैं, एक वे जो राजनीति में विश्वास रखते है, दूसरे जिन्हे राजनीति में बिल्कुल विश्वास नहीं और तीसरे तरह के वे लोग हैं जिन्हें राजनीति से कोई लेना देना नहीं, इनका मिज़ाज बिल्कुल न्यूट्रल होता है।
गौर करने वाली बात यह है कि हमारी लाइफ राजनीति और वालीवुड से बहुत प्रभावित होती है, चाहे हम राजनीति और वालीवुड में इंट्रस्ट लें या न लें। दूसरी रोचक बात ये है कि कुछ वालीवुड अभिनेता राजनीति में कूद जाते हैं तो कुछ राजनेता वालीवुड में। जनता का इन दोनो की ओर एकतरफ़ा प्यार इन्हे इनकी मंज़िल भी पहुंचा देता है।
राजनेता और अभिनेता दोनो का करियर एक दूसरे पर परस्पर निर्भर भी करता है। कई राजनेता तो राजनीति में इसलिए चुने गये क्योंकि किसी पोपुलर एक्टर ने उनका प्रचार किया। इसी बात का एक उदाहरण हैं दिलीप कुमार। दिलीप कुमार जी अपने समय के पोपुलर अभिनेता रहे। इन्होंने बहुचर्चित हिट फिल्में ‘ज्वार भाटा’, ‘अंदाज’ और ‘देवदास’जैसी फिल्में दी। इन्हें ट्रेजिडी किंग के नाम से भी जाना जाता है।
राजनीति-वालीवुड से संबंधित हम ऐसी घटना की बात करते हैं जो हमारे देश के हर एक व्यक्ति को इसमें रूचि लेने को मजबूर करेगी। यह घटना है भारत – चीन युद्ध के बाद चुनाव की।
1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भारत की हार हुई तो युद्ध के बाद युद्ध में मिली हार का जिम्मेदार रक्षा मंत्री मेनन को ठहराते हुए, भारत में विरोधी राजनेताओं ने वी. के. कृष्ण मेनन को पद से हटाने की मांग की।
जैसा कि हम सभी जानते हैं चीन, भारत का पड़ोसी देश है और चीन का मिज़ाज हमेशा से ही विश्व स्तर पर अपनी छवि को बेहतर करने का है और ऐसा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। हम सभी जानते हैं कि हिमालय की सीमायें हमेशा से ही भारत के पड़ोसी देशों से भारत के बीच लड़ाई की एक मुख्य वजह रही है और आज तक ये वजह लगातार जारी है।
इन्हीं में से हिमालय सीमा 1962 में भारत-चीन युद्ध की मुख्य वजह बनी। भारत-चीन युद्ध अधिकांशतः 4250 मीटर यानी 14,000 फीट से अधिक ऊंचाई से लड़ा गया। संभवतः इतनी ऊंचाई पर दोनों पक्षों के लिए मुश्किलें खड़ी करता है।
भारत-चीन युद्ध में हार का ज़िम्मेवार रक्षामन्त्री को बताते हुए कांग्रेस कट्टर विरोधी पार्टी रक्षा मंत्री मेनन को पद से हटाने की मांग करने लगे जिसके लिए जवाहरलाल नेहरू तैयार न थे। उन्होनें इस चुनौती को अपनी चुनौती माना। उन्होने एक्टर दिलीप कुमार से मेनन के लिए चुनाव का प्रचार का प्रस्ताव रखा। दिलीप कुमार जो कि उस समय बहुत ही चर्चित एक्टर थे, उन्होने प्रधानमंत्री मंत्री जवाहरलाल नेहरु की मदद करने के लिए हाथ बढ़ाया जिसके परिणाम स्वरूप मेनन जी को जनता का साथ मिला और मेनन विजयी हुए।
1962 की यह घटना किसी फिल्मी एक्टर के द्वारा राजनीति में राजनेता के लिए प्रचार की पहली घटना थी और एक्टर द्वारा प्रचार नेता के लिए विपरीत कंडीशन होते हुए भी जीत दिलवाना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। एक्टर का राजनीति में कदम मील का पत्थर साबित हुई। और आज भी इस तरह का ट्रेंड भारत में बड़े जोर और शोर से प्रैक्टिस में है।
भारत की जनता वालीवुड के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से ज्यादा कनेक्टड रहती है और लगाव महसूस करती है। यह सब परदे पर किये गये अभिनय के कारण होता है। चाहे एक्टर का व्यवहार, सोच, देश के प्रति श्रृद्धा व जनता के प्रति लगाव फिल्म में किए गये अभिनय की तरह हो और न भी हो। जनता का इस बात को नजर अंदाज़ कर एक्टर के एक इशारे पर कठपुतली की तरह व्यवहार हमें कई काबिल नेताओं को राजनीति में अपनी काबिलियत साबित करने का मौका ही नहीं देने देता है।
आपकी क्या राय है, कंमेट कर जरूर शेयर कीजिए। जिस तरह एक्टर दिलीप कुमार ने जवाहरलाल नेहरु और मेनन का साथ देकर मेनन को विजयी घोषित करवाया, क्या इस तरह वालीवुड का राजनीति में हस्तक्षेप भारत के हित में है? और यह किस तरह की मुश्किलें खड़ी कर सकता है?
(दिलीप कुमार की आत्मकथा ‘वजूद और परछाई’ पर आधारित) срочный займ
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