कोरोना की मार से पस्त अर्थव्यवस्था, गहराता जा रहा है संकट!

वर्तमान में कोविड-19 नामक कोरोनावायरस ने मानव जीवन में उथल-पुथल मचा रखी है । चीन में पनपा यह वायरस आज पूरे विश्व में कोहराम मचा रहा है । इसके प्रकोप को रोकने के लिए लगभग सभी देशों ने लॉकडाउन का हथकंडा अपनाया है ।

महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए भारत सरकार ने भी लॉक लडॉउन का ही हथकंडा अपनाया हुआ है। देश 3 मई तक लॉकडॉउन है। हालांकि इस लॉकडॉउन में जरूरी सेवाएं चालू हैं। जैसे राशन की दुकानें, दूध की डेयरी, सब्जियों की दुकानें आदि खुली हैं। इस महामारी ने देश की आर्थिक गतिविधियों पर लगाम लगा दी है। हर एक सेक्टर इस महामारी कि मार झेल रहा है।

गरीबों को खाने की दिक्कत

जैसा कि हम सब जानते हैं महामारी कोविड-19 से भारत ही नहीं पूरा विश्व संकटमय घड़ी का सामना कर रहा है। लॉक डॉउन का मतलब जरूरी सेवाओं को छोड़कर अन्य सेवाएं बाधित रहेंगी। ऐसे में विकास तो असंभव है। क्योंकि उद्योग जगत वस्तुओं का उत्पादन ही नहीं करेगा तो महगांई अपनी चरम पर होगी। हालांकि सरकार ने सब कुछ नियंत्रण में रखा हुआ है। सरकार ने कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ शख्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में अगर कोई भी अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) से अधिक मूल्य पर कोई सामग्री बेचता है तो उसके खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

लॉक डॉउन की वजह से दिहाड़ी मजदूर और रोज कमाई करके अपना घर चलाने वाले लोग के लिए मुश्किल का समय है। क्योंकि इनके सामने खाने की समस्या उत्पन हो रही है। हालांकि कई राज्य सरकारें और केंद्र सरकार मिलकर दिहाड़ी मजदूरों और गरीबों की मदद के 1 हज़ार रुपए और फ्री में राशन देने का काम कर रही है। हालंकि फिर भी हजारों गरीब परिवारों पर खाने पीने का संकट मंडरा रहा है।

सरकार ने प्राइवेट कंपिनयों से भी अपील की है कि वे अपने कर्मचाियों को नौकरी से न निकाले और उनकी पगार भी न काटे। लेकिन कर्ज के बोझ तले दबी कई कंपनियों के पास उनके कर्मचाियों को देने के लिए पैसा ही नहीं है। ऐसे में कई कंपनियां धीरे धीरे छटनी कर रही हैं। अभी हालत भले नियंत्रित हैं लेकिन देश को आने वाले समय में भारी मंदी का सामना करना पड़ सकता है।

गंभीर होती आर्थिक हालत

23 मार्च से ही जारी लॉकडाउन के चलते भारत की आर्थिक गतिविधि प्रभावित हुई है। अर्थव्यवस्था बेपटरी होती दिख रही है।  भारत 49 दिनों के लॉकडाउन का सामना कर रहा है ।

इस महामारी से भारत ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था महाशक्ति अमेरिका भी संकट का सामना कर रही है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी डगमगा रही है। अमेरिका ही नहीं अनेक विकसित देशों की अर्थव्यवस्था इस महामारी से सुस्त पड़ गईं हैं। कैट की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते भारत को खुदरा कारोबार में लगभग 30 अरब डाॅलर का नुकसान अभी तक उठाना पड़ा है। यदि यह लॉकडाउन आगे जारी रहता है, यानी 3 मई के बाद भी अगर लॉकडाउन को आगे बढ़ाया जाता है तो भारत के आर्थिक हालात और भी बुरे हो सकते हैं।

आईएमएफ (IMF) यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की माने तो वित्त वर्ष 2020 में भारत की आर्थिक विकास वृद्धि दर मात्र 1.9 फ़ीसदी रहेगी। भारत की अर्थव्यवस्था पर विश्व बैंक ने भी अनुमान लगाया है कि भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 1.5 फ़ीसदी से 2.8 फ़ीसदी तक रहेगी। यह आंकड़े बेहद निराशाजनक है। अगर ऐसा होता है, यानी अगर यह आंकड़े सही साबित होते हैं, तो 1991 के उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे निचले स्तर पर रहेगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह महामारी ऐसे वक्त में आई है जबकि वित्तीय क्षेत्र पर दबाव के कारण पहले से ही भारतीय इकोनॉमी सुस्ती की मार झेल रही थी। कोरोना वायरस के कारण इसपर और दवाब बढ़ा है।

नौकरी का संकट

लॉकडाउन की वजह से इस घर आते आर्थिक संकट में भारत में करीब 14 करोड गैर कृषि रोजगार लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। ‌ यानी जो लोग कृष से नहीं जुड़े हैं अन्य क्षेत्रों में नौकरियां कर रहे हैं उनकी नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है। अर्थव्यवस्था में भागीदारी रखने वाले प्रमुख क्षेत्र कृषि उद्योग और अन्य क्षेत्रों की हालत गंभीर है। खासकर व्यापार जगत रुका हुआ है। अगर औद्योगिक उत्पादन कम होता है तो इससे कई सेवाएं भी प्रभावित होंगी। जैसे माल ढुलाई, बीमा, गोदाम, वितरण जैसी तमाम सेवाएं शामिल हैं। कई कारोबार जैसे टेलिकॉम, टूरिज्म सिर्फ सेवा आधारित हैं, मगर व्यापक रूप से बिक्री घटने पर उनका बिजनेस भी प्रभावित होता है। कोरोना वायरस नौकरियों के संकट का कारण बन सकता है।  नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार ऐसे लोगों की संख्या 13.6 करोड़ हैं। जिनपर छंटनी का खतरा मंडरा रहा है।

बढ़ेगी बेरोजगारी दर?

अर्थव्यवस्था में मंदी के चलते बेरोजगारी दर बढ़ जाती है। क्योंकि कंपनियां कर्मचारियों की छटनी करने लगते हैं जिससे रोजगार लोग भी बेरोजगार हो जाते हैं। और ऐसे में जब आय नहीं होगी तू निवेश दर में भी कमी आएगी लोग ज्यादा मात्रा में निवेश भी नहीं करेंगे। जिससे बैंकों या वित्तीय संस्थानों के पास कर्ज देने के लिए पैसा घट जाएगा। अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कर्ज की मांग और आपूर्ति, दोनों होना जरूरी है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आने वाले समय में बेरोजगारी दर अपने चरम पर होगी। क्योंकि जब कम्पनियों की आय ही नहीं होगी तो वो कैसे अपने कर्मचरियों को तनख्वाह देंगी। और ऐसे में कंपनियां अपने कर्मचारियों की छटनी कर सकती है। जिसके चलते बेरोजगारी दर बढ़ने के आसार होंगे।

अर्थशास्त्रियों ने किया दावा

बड़े बड़े अर्थशास्त्री और वित्तीय संस्थाओं का कहना है कि लॉकडाउन के बाद देश आर्थिक तबाही का सामना करेगा। यानी आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर का सामना करने के लिए तैयार रहें। क्योंकि अनुमान तो यही लगाया जा रहा है कि कोरोना वायरस महामारी के बाद भारत आर्थिक महामारी का सामना करना पड़ेगा।

अब ऐसे में यही रास्ता है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद आर्थिक मंदी से कैसे निपटा जाए उसके लिए अभी से ही ठोस रणनीति तैयार की जानी चाहिए। इस महामारी को हराने में आप घर में रहकर सरकार के दिशनिर्देशों का पालन कर अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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