इस भागदौड़ भरी जिंदगी में सफल होने के लिए शिक्षित होना बहुत जरूरी होता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, कि बिना शिक्षा के सफलता अर्जित करना मुश्किल है। लेकिन सवाल ये है, कि क्या सिर्फ शिक्षित होना ही हर समस्या का समाधान है? अगर हम ये सवाल अपनी अंतरात्मा से पूछे तो जवाब मिलता है, नहीं। कभी कभी शिक्षा के साथ हिम्मत का होना भी जरूरी होता है, जिससे जोखिमों की परवाह ना करके कड़े कदम उठाए जा सके। आज हम शिक्षा और हिम्मत से भरी एक ऐसी ही कहानी के बारे में जानेंगे, जो आज की युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल है।
यह कहानी है हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित लाड गांव के संदीप मान की। आज जब पढ़ाई पूरी करने के बाद लोग नौकरी के पीछे भागते है, ऐसे समय में संदीप ने अपने गांव की मिट्टी को चुना। पंद्रह साल पहले उन्होंने स्नातक किया। नौकरी की तालाश की, लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली। उसके बाद उन्होंने अपने गांव का रुख किया। गांव की मिट्टी को नमन कर उन्होंने खेती करना शुरू किया। धरती का सीना चीर कर फसल उगाना, फिर उसे बाजार में बेचना। घर की माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से उन्होंने खेती के साथ कुछ और काम भी करने का मन बनाया। इसके लिए उन्होंने गाय के दूध को चुना।
गाय के दूध से होने वाले फायदे को उन्होंने पहचान लिया। सरकार से आर्थिक सहायता लेकर उन्होंने अपने गांव में ही एक छोटी सी डेयरी शुरू की। उनकी डेयरी में रोजाना गाय का दूध इक्कठा किया जाने लगा। साथ ही आसपास के गांवों के लोगों से भी दूध इक्कठा करके उसे गुड़गांव की एक दूध बेचने वाली कंपनी को बेचा जाने लगा। धीरे-धीरे अनुभव के साथ बिजनेस भी बढ़ता गया। शुरुआत में उन्होंने अपना दूध ‘नेस्ले’ कंपनी को बेचना शुरू किया, लेकिन इस कंपनी के साथ लंबे समय तक बिजनेस नहीं चल पाया। इसके बाद संदीप ने खुद का बीएमसी प्लांट लगाया।
शुरुआत के दिन
संदीप बताते हैं कि शुरुआत के दिन बहुत मुश्किल भरे थे। जब उन्होंने दूध इकट्ठा करके बेचना शुरू किया, तब कई कंपनियों ने दूध लेने से मना कर दिया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जिस मापदंड पर संदीप अपना दूध बेचना चाहते थे, उस मापदंड पर कोई भी कंपनी दूध लेने को तैयार नहीं थी। इसके बाद संदीप ने अपना खुद का बीएमसी प्लांट लगाने का फैसला किया। बीएमसी प्लांट में मशीनों की सहायता से दूध की गुणवत्ता को मापा जाता है और उसे लोगों तक पहुंचाया जाता है। संदीप के द्वारा उठाए गए इस कदम से फायदा होने लगा और कुछ ही दिनों में उनके पास अनेक गायें हो गईं।
बिजनेस बढ़ने के साथ ही संदीप ने गुड़गांव की एक कंपनी के साथ सौदा किया। यह कंपनी गुड़गांव के बड़े-बड़े फ्लैट और कॉलोनी में रहने वाले लोगों को दूध उपलब्ध कराती है। संदीप ने अपनी डेयरी में दूध इकट्ठा करके इस कंपनी को बेचना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने दूध की सप्लाई छोटी-छोटी गाड़ियों से करना शुरू किया। समय के साथ दूध की मांग बढ़ने लगी। मांग बढ़ने से दूध की ज्यादा मात्रा में सप्लाई होना जरूरी था। छोटी छोटी गाड़ियों की सहायता से दूध का सप्लाई अधिक मात्रा में करना मुश्किल था।
बढ़ती मांग को देखकर संदीप ने गाड़ियों की संख्या बढ़ाना भी उचित समझा। जिस कंपनी से उनका कॉन्ट्रैक्ट था, उस कंपनी से आर्थिक सहायता लेकर और खुद के जमा किए हुए पैसे जोड़कर उन्होंने बड़ी गाड़ियों का इस्तेमाल शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक टैंकर बनाया जिसमें सैकड़ों लीटर दूध भरकर शहर में सप्लाई होने लगा।
वर्तमान की स्थिति
कड़ी मेहनत और 15 साल के लंबे समय के बाद आज संदीप कई लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। आज उनके डेयरी से रोजाना 15000 से 16000 लीटर दूध सप्लाई किया जाता है। आज उनके पास सौ से भी ज्यादा गायें है। नौकरी ना मिलने के बावजूद भी आज संदीप महीने में लाखों रुपए कमाते हैं। उनकी शुरू की गई डेयरी से कई लोगों को रोजगार भी मिला है। आज उनके पास काम करने के लिए तीस से ज्यादा लोग हैं, जिनको वेंडर कहा जाता है। दूध की बड़ी संख्या में सप्लाई करने के लिए उनके पास दस से बारह गाड़ियां है। गांव में ही शुरू की हुई डेयरी में उन्होंने गुणवत्ता जांचने वाली मशीनें लगाई हैं, जिसमें वसा, यूरिया, एसिडिटी की मात्रा मापी जाती है, और दूध को उचित तापमान पर रखकर उसे गुड़गांव में सप्लाई किया जाता है।
आज के समय में संदीप ऐसे अनेक लोगों के लिए उदाहरण है जो पढ़ाई करने के बाद नौकरी ना मिलने पर उम्मीद छोड़ देते हैं। उनकी यह शुरुआत जोखिमों से भरी हुई थी, क्योंकि ऐसा भी हो सकता था कि यह बिजनेस फायदा ही ना पहुंचाएं। हमारे आसपास ऐसे अनेक लोग हैं जिनकी कहानियां समाज को प्रेरणा देती है। ऐसी ही कहानियों और लोगों के बारे में जानने के लिए बने रहे हमारे साथ। संदीप की यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे और भी लोगों तक पहुंचाएं। займ на карту срочно без отказа
Leave a Reply