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काले अध्याय, जिसमें साथ-साथ पसर रहा है नक्सलवाद और आर्थिक साम्राज्यवाद

पुस्तक: काले अध्याय

लेखक: मनोज रूपडा 

प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ

काले अध्याय: पुस्तक समीक्षा

 मनोज रूपड़ा एक बेहतरीन उपन्यासकार हैं और हमारे देश के मशहूर कथाकारों में से एक है. वह कहानी का कुछ इस प्रकार चित्रण करते हैं जैसे वे सभी सच्ची घटनाएं हैं. उनके सभी किरदार हमेशा जीवंत महसूस होते हैं. लेखक का उपन्यास काला अध्याय दो खंडों में विभाजित है: पहला खंड व्यक्ति और उसके इर्द-गिर्द की चीजों व घटनाओं की व्याख्या करता है.वही दूसरा खंड नक्सलवादियों व औद्योगिककरण की समस्याओं को उजागर करता है और छत्तीसगढ़ के गांव में रहने वाले लोगों की कठिनाइयों की व्याख्या करता है.

लेखक मनोज रूपडा का उपन्यास काले अध्याय हमें यानी पाठकों को भूतकाल और वर्तमान के काले अध्यायो से परिचित कराता है. लेखक का उपन्यास छत्तीसगढ़ के गांव में रहने वाले लोगों का हैरान कर देने वाला सच बयां करता है. लेखक अपनी कहानी की शुरुआत एक लड़के से करते हैं जिसने बचपन में कुछ ऐसा देखा जिसे वह कभी भूल नहीं सका.

उसने एक हाथी को मरते देखा जिसका शिकार जंगली कुत्तों ने किया था हाथी रात भर अपनी जिंदगी से लड़ता रहा लेकिन अंत में हार मानकर उसने ईश्वर को आत्मसमर्पण कर दिया.उस रात लड़के ने पहली बार मौत से किसी को जूझते देखा. लेखक किरदारों की मदद से उन लोगों को पाठकों के सामने लाता है जो छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहते हैं और वह अपने घर,अपनी जमीन,अपने तौर-तरीकों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं.वह लड़का भी उन्हीं जंगलों से जुड़ा था लेकिन वह अपनी पढ़ाई के लिए गांव छोड़कर शहर में चला जाता है.

वहीं दूसरी ओर उसकी बड़ी बहन जो उससे बहुत प्रेम करती थी और उसके लिए किसी से भी लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहती थी वह एक नक्सलवादी अभियान से जुड़ जाती हैं जिस बहन ने उसके जीवन में उजाला कर दिया था अब वह खुद एक कभी न खत्म होने वाले अंधेरे में चली गई थी.वह लड़का भी उन्हीं जंगलों से जुड़ा था लेकिन वह अपनी पढ़ाई के लिए गांव छोड़कर शहर में चला जाता है.

जब वह अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म कर वापस लौटता है तो वहां कुछ भी पहले जैसा नहीं पाता,सब कुछ बदल चुका होता है. वह अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अपने दोस्त के साथ मुंबई चला आता है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे इंजीनियर के तौर पर एक जहाज पर नौकरी मिल जाती है जब वह जहाज के साथ यात्रा पर निकलता है तो वह उस यात्रा को अपने गांव के जीवन से जोड़कर देखने लगता है. जैसे ही उसकी यात्रा समाप्त होती है वह अपने गांव पहुंचकर अपनी बहन की तलाश करना शुरू करता है.

जब वह कुछ दिन अपने गांव की में बिताता है तो वह करीब से गांव की परेशानियों को समझ पाता है. वह अपनी बहन को खोजते हुए उसके बहुत नजदीक पहुंच जाता है लेकिन उससे मिल नहीं पाता.उपन्यास दो खंडों में विभाजित है.अगले खंड में कैप्टन और युवक की चर्चा पाठकों को हैरान कर देती हैं. युवक इस बार जब अपने गांव वापस लौटता है तो उसे उसकी बहन मिलती है जो अपना पैर गवां चुकी है.

लेखक ने नक्सलवाद जैसी गंभीर विषय को बड़ी ही सादगी के साथ पाठकों के सामने रखा है. उपन्यास में शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जहां आपको बोरियत महसूस होने लगे.  लेखक कहानी के जरिए कई महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला है जिन्हें आम जिंदगी में हम ज्यादा महत्व नहीं देते. लेखक के सभी किरदार जीवंत थे. उपन्यास पढ़ते वक्त ऐसा महसूस हुआ कि हम ढाई घंटे की फिल्म देख रहे है. लेखक ने बहुत ही सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया है. अगर व्यक्ति समाज और उसकी कठिनाइयों को और करीब से जानना चाहता है तो उसे यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए.

रेटिंग: 4/5⭐⭐⭐⭐


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