पुस्तक: औघड़
लेखक:नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशन: हिंदयुग्म प्रकाशन
पुस्तक समीक्षा: औघड़
लेखक नीलोत्पल मृणाल का पिछला उपन्यास हम पहले ही पढ़ चुके हैं जिसका नाम था “डार्क हॉर्स” जिसमें वह सिविल सर्विसेज की तैयारी में लगे युवकों की चर्चा करते हैं. वह उपन्यास पढ़कर आप और हम यह जान ही चुके हैं कि लेखक कितने उम्दा उपन्यासकार हैं और उनका चीजों को देखने का नजरिया कितना विशाल है.उनका नया उपन्यास औघड़ भी कुछ ऐसा ही है. इस उपन्यास की खास बात है कि लेखक अपना नजरिया तो बताते हैं साथ ही साथ घटनाओं की समीक्षा भी करते हैं.
वह हर घटनाओं पर अपनी राय प्रस्तुत करते हैं लेकिन उपन्यास पढ़ते वक्त ऐसा कहीं महसूस नहीं होता कि समीक्षा एकतरफा की गई है.तो यह कह सकते हैं कि लेखक उपन्यास को तटस्थ रूप से लिखने में कामयाब रहे हैं. लेखक ने उपन्यास में भारतीय समाज, संस्कृति, राजनीति,जीवन दर्शन का परिचय दिया है.
लेखक का उपन्यास हिंदी पट्टी के गांव के इर्द-गिर्द घूमता है. लेखक उपन्यास के जरिए हमें उस दौर में ले जाता है जब भारत में टेक्नोलॉजी शुरू ही हुई थी और धीरे-धीरे लोगों की जिंदगी में मोबाइल फोन अपनी जगह बना रहे थे. यह क्रांति दावा कर रही थी कि मोबाइल फोन के जरिए लोगों की दूरियां कम हो जाएगी, लोग इसके जरिए एक दूसरे के करीब आ जाएंगे.
इसके अलावा गांव में उस समय एक मंदिर बनवाया जा रहा था.लोगों के मन में एक अजीब सा डर और बेचैनी थी. इसके जरिए लेखक कहता है कि लोग आधुनिकीकरण की राह पर तो चल दिए लेकिन आज भी वह पूर्वाग्रहों से पूरी तरह निकल नहीं सके हैं. लेखक ने अपने किरदारों की मदद से जाति, सामंतवाद जैसे मुद्दे को दुनिया के सामने रखा है. लेखक के उपन्यास में हर जाति के किरदार और उनकी कहानियां वर्णित है.
उपन्यास की मुख्य कहानी का किरदार गणेशी महतो और उसका बेटा रोहित है. लेखक इस कहानी के जरिए उस समय के गांव की दशा का चित्रण करता है जब गांव में जाति और ऊंच-नीच जैसी चीजों पर ज्यादा विश्वास किया जाता था. इस कहानी में गणेशी महतो नीची जाति से है और वह बिल्कुल नहीं चाहता कि उसका बेटा रोहित भी उसी की तरह खेती-बाड़ी करते हो अपना जीवन बिताएं।वह इस बात से बेहद खुश था कि उसके बेटे रोहित का उठना बैठना ऊंची जाति वाले लोगों के साथ है.
इस मुख्य कहानी में और भी कई किरदार है जो इस कहानी में तो अपना रोल तो निभा ही रहे इसके अलावा उनकी कहानी अलग से भी लेखक ने उपन्यास में दर्ज की है. यह किरदार थे मुरारी, बैजनाथ मंडल, बदरी मिसिर,दरोगा पारसनाथ पासवान,डॉक्टर बालेंदु घोष,कामता प्रसाद,शेखर जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ता था आदि.
उपन्यास में चुनाव के समय का भी वर्णन है. चुनाव को लोकतंत्र के पर्व के रूप में मनाया जाता है. लेखक बताता है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं गांव में भी समीकरणों में बदलाव आते हैं.समय पंचायत चुनावों का था गांव दो गुटों में बॅट चुका था. सभी लोग अपने-अपने प्रतिनिधि का समर्थन कर रहे थे. एक और पुरुषोत्तम सिंह है और वहीं दूसरी ओर नया हरिजन प्रत्याशी जमीर पिबत्तर दास है.इस चुनाव का सबसे अहम किरदार बिरंचि है जो पिबत्तर दास को चुनाव में खड़े होने से लेकर चुनाव जीतने तक का सफर तय करने में उनकी मदद करता है.जीतने के बाद भी पिबत्तर दास क्या लोगों की उम्मीदों पर खड़ा उतर पाएगा?
क्या वह अपने लोगों की सभी उम्मीदों को पूरा कर सकेगा? क्या बदलाव आएगा? क्या पुरुषोत्तम सिंह इतनी आसानी से हार मानेगा? इन सभी के जवाब आपको उपन्यास में मिलेंगे.उपन्यास हमें गांव की राजनीति से परिचित कराते हैं. हम यह कह सकते हैं कि लेखक गांवों का बिल्कुल सटीक चित्रण देने में कामयाब रहा.
लेखक ने उपन्यास के जरिए समाज के रूप को उजागर किया है और चुनावों के वक्त गांव में जो उथल-पुथल देखने को मिलती है उसको भी दर्शाए है. लेखक ने समाज के हर वर्ग हिंदू-मुस्लिम, दलित,ऊंची-नीची जाति सभी की वास्तविकता का बोध पाठकों को कराया है.
आपको यह उपन्यास काफी दिलचस्प लगेगा. लेखक के सभी किरदारों की एक अलग छवि देखने को मिलेगी. लेखक ने उपन्यास में सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया है उपन्यास की कहानी पाठकों को बांधने में सफल रहती हैं.
रेटिंग:4.5/5⭐⭐⭐⭐⭐