पुस्तक: गुलिस्तां
लेखक:शेख सादी
अनुवाद :डॉ. नाजिया खान
प्रकाशक: मैंड्रेक पब्लिकेशन
गुलिस्तां: पुस्तक समीक्षा
गुलिस्तां के लेखक हजरत शेख सादी सिराज(इरान)के रहने वाले थे जिसके कारण लोग उन्हें सिराजी कहकर भी बुलाते थे.उनकी पैदाइश को लेकर कई अटकलें लगाई गई हैं. उनका जन्म लगभग 13 वी से 14 वी शताब्दी के बीच हुआ होगा. लेखक को किताब पूरी करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जहां उनका मन डगमगाता वह यह कहकर अपने आप को उत्साहित करते कि “मैं इस किताब को लिख सकता हूं और पतझड भी इस किताब का कुछ नहीं बिगाड़ सकता” इस तरह लेखक ने अपनी किताब पूरी की. यह किताब पर्शियन भाषा में लिखी गई थी. बाद में इसका अनुवाद कई भाषाओं में किया गया. अंग्रेजी से इसका अनुवाद डॉ. नाजिया खान ने किया.
पुस्तक में छोटी-छोटी कहानियां वर्णित है.जो हमें शिक्षा भी देती है और हमें जीवन में सही रहा पर चलना सिखाती है. पुस्तक गुलिस्तां में हर विषय से जुड़ी कहानियां आप पढ़ सकते हैं जैसे सियासत,बुढ़ापा,जिंदगी,इश्क,खामोशी और सब्र आदि यह सभी कथाएं हमें अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करती है.यह किताब पढ़ते वक्त आप पाएंगे कि किताब किसी एक दौर के लिए नहीं बल्कि सभी दौर के लिए प्रसांगिक है उदाहरण के तौर पर पुस्तक में वर्णित कथा का नाम “जालिम बादशाह हुकूमत नहीं कर सकता” कहानी में बादशाह के जुल्म और बिचारी प्रजा की व्याख्या की गई है.
इस कहानी से पाठकों को यह शिक्षा मिलती है कि जिसने भी अपनी ताकत का इस्तेमाल गलत तरीके से करना शुरू कर दिया तो मानो उसने खुद अपने शासन को उखाड़ दिया.एक और कहानी है जिसका नाम है “आराम की कीमत” इस कहानी में बादशाह और एक गुलाम नाव की सवारी करते हैं गुलाम पहली बार नाव पर बैठा था इसलिए वह डर से चीखने लगता है. उसी नाव पर एक और आदमी बैठा था वह बादशाह से कहता है कि हुजूर अगर आप इजाजत दें तो मैं इसे चुप करा दूं बादशाह की इजाजत के बाद आदमी गुलाम को नदी में डूबा देता है और कुछ देर बाद का गुलाम को बाहर निकालता है और गुलाम चुपचाप बैठ जाता है.आदमी कहता है कि जब तक हम मुसीबत नहीं सहते तब तक हमें आराम है कि अहमियत पता नहीं लगती. इस गुलाम ने भी कभी पानी में डूबने की तकलीफ नहीं उठाई थी इसलिए नाव पर सुरक्षित बैठने का आराम नहीं समझ पाया.पुस्तक में ऐसी कई कहानियां हैं जो राजा,मंत्री,गुलाम के जरिए हमें नसीहते देती है.
ऐसी ही एक और कहानी है “सूफी कथा” इस कहानी में एक बुजुर्ग से पूछा जाता है कि सूफी का अर्थ क्या होता है? बुजुर्ग जवाब देता है कि पुराने समय में सूफी उन लोगों को कहा जाता था जो देखने में अच्छे नहीं होते थे लेकिन उनका दिल साफ होता था लेकिन आज के समय में उन लोगों को सूफी कहा जाता है जिनकी सूरत तो साफ होती है लेकिन दिल मेला होता है. शेख सादी कहते हैं कि जब तक मोहब्बत दूर है तो उससे कहीं अधिक मोहब्बत है और अगर मोहब्बत हर रोज मिलने लगे तो मोहब्बत कम हो जाती है, जैसे सूरज गर्मी में ज्यादा निकलता है तो वह बुरा लगता है लेकिन सर्दियों में उसका असली महत्व पता लगता है.
लेखक की कहानी जीवन के हर क्षेत्र पर मिलेंगी. एक कथा है “बेटा भी कभी बाप होगा” इस कहानी में बूढ़ा पिता होता है जो अपने दोस्त से कहता है कि मैंने अपने पुत्र के लिए ना जाने कहां-कहां मन्नते मांगी तब जाकर मुझे औलाद का सुख मिला वहीं दूसरी और बेटा कहता है कि काश मुझे कोई ऐसी जगह मिल जाए जहां हर मन्नत पूरी हो और मेरा बाप मर जाए कहानी अंत में कहती है कि जब तुम पुत्र थे तो तुमने कौन सा अपने पिता के साथ भलाई की जो अब तुम अपने पुत्र से भलाई की उम्मीद कर रहे हो. यह कथा आज के समय पर बिल्कुल सटीक बैठती है.
पुस्तक में ऐसी कई कथाएं आपको पढ़ने को मिलेंगी जो हमें जीवन की सही राह दिखाती हैं. शेख शादी में गुलिस्ता के जरिए कई नसीहते लोगों को दी है लेकिन उनकी मेहनत तब सफल होगी जब पाठक उस पर अमल करने लगेंगे. यह किताब पाठको को बहुत रोचक और दिलचस्प लगेगी. इसकी कहानी बच्चों को पढ़कर सुनाई जानी चाहिए ताकि बच्चे भी अच्छी अच्छी नसीहत ओ को अमल में लाएं.
रेटिंग:5/5⭐⭐⭐⭐⭐