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समीक्षा: मेटामॉर्फ़ोसिस: एक कीड़े की कहानी, जो इंसानी स्वभाव को बयां करती है

लेखक: फ्रेंज़ काफ़्का   

अनुवाद: डॉ परितोष मालवीय   

प्रकाशक: मैंड्रेक पब्लिकेशन्स 

पुस्तक समीक्षा-मेटामॉर्फ़ोसिस 

 दुनिया में हर व्यक्ति यह सोचता है कि अगर वह है तो काम हो रहा है अगर वह नहीं होता तो मजाल है किसी की कि कोई और यह काम कर सके.वह यह तक सोचने लगता है कि वह अपने परिवार में सबसे महत्वपूर्ण रोल निभाता है और वह अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिए सबसे अहम है. परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार उस व्यक्ति पर ही अपनी सभी जरूरतों के लिए निर्भर है यानी” वह है तो सब है,वह नहीं तो कुछ नहीं” और यही सोच आगे जाकर उनके लिए मुश्किल खड़ी कर देती है. लेकिन इसका एहसास बहुत ही कम लोगों को होता है और एक बार जिसको एहसास हो जाता है वह दुनिया का सबसे  सफल, सुखी,खुशहाल व्यक्ति होता है.लेकिन गम है तो केवल इस बात का कि इन लोगों की गिनती संसार में बेहद कम है.

आधे से ज्यादा लोग तो जिंदगी भर इसी गलतफहमी में रहते हैं कि वह दूसरों की जिंदगी के आधार स्तंभ है और इसी गलतफहमी के साथ ही इस संसार से विदा हो जाते हैं.”मान लो कि अगर आपको पता लगे कि आप अपने परिवार के लिए महत्वपूर्ण तो है लेकिन उनकी जिंदगी केवल आपके इर्द-गिर्द नहीं है”तो आप कैसा महसूस करेंगे? यह उस व्यक्ति की मूर्खता है जो अपने आप को इतना अधिक महत्वपूर्ण समझता है,अपने करीबियों की जिंदगी में.लेखक फ्रेंज काफ्का मेटामॉर्फ़ोसिस नामक पुस्तक केजरिए हमें जिंदगी की इसी हकीकत से परिचय कराते है.

 कहानी के लीड कलाकार का नाम ग्रेगर साम्सा है. उसके परिवार में माता-पिता और एक बहन शामिल है वह सभी एक साथ रहते हैं.एक सुबह जब ग्रेगर रोजाना की भांति सो कर उठता है तो वह पाता है कि वह एक बड़े से कीड़े के रूप में परिवर्तित हो जाता है.उससे पहले वह अपने परिवार की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक मशीन की तरह काम करता है; सुबह जल्दी उठना, भागते हुए ट्रेन पकड़ना, साहब की किच-किच सुनना इत्यादि. पिछले लगभग 15 सालों से वह मशीनी जिंदगी जी रहा था.

इतनी भागदौड़ भरी जिंदगी में उसे इस बात की संतुष्टि थी कि वह अपने परिवार की सभी जरूरतों को पूरी कर रहा है.उसके पास एक सुंदर सा अपार्टमेंट भी है. कीड़े मैं तब्दील होने के बाद उसे चिंता थी तो अपने परिवार की;उनका क्या होगा,उनकी जरूरतें कौन पूरी करेगा,नौकरी पर कैसे जाएगा आदि. लेखक ने मेटामॉर्फ़ोसिस के माध्यम से इंसान के स्वभाव को दर्शाने की कोशिश की है.

 आखिर क्यों पढ़ें यह किताब: 

लेखक ने पुस्तक में एक अनूठी शैली का प्रयोग किया है. सबसे अनोखी कहानी है.अगर आप इसे एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो शायद ही आप इसे अधूरा छोड़ें. भाषा काफी सहज और सरल है.अनुवाद के बावजूद पुस्तक में लेखक की झलक देखने को मिलती है.जैसे-जैसे आप किताब पड़ेंगे वैसे-वैसे आप एक से एक घटनाओं से परिचित होंगे और वह आपको हैरान कर देंगी.

अनुवाद डॉक्टर परितोष मालवीय द्वारा किया गया है जो बहुत ही खूबसूरती से कहानी दर्शाता है अनुवाद के बाद भी कहानी ने अपनी वास्तविकता नहीं खोई.

रेटिंग: 5/5 ⭐⭐⭐⭐⭐


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