हिन्दू धर्म का मुख्य आधार है आराधना। आराधना या भक्ति से तात्पर्य स्वंम या किसी दूसरे व्यक्ति के कल्याण के लिए भगवान में लीन हो जाना। केवल कल्याण के लिए ही नहीं कई लोग तो पूजा इसलिए भी करतें हैं कि यह आत्मसंतुष्टि और आनंद की अनुभूति का एक मार्ग है। इस आनंद को शब्दों में बयां कर पाना असंभव हैं। जाने और अनजाने में आपने भी मुश्किल समय में सबसे पहले भगवान को ही याद किया होगा और भगवान ने आपकी मदद के रास्ते निश्चय ही खोले होंगे।
वैसे तो हिन्दू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है पर आज इस लेख में हम शिव जी के उत्तराखंड में पूजे जाने वाले रूप पर चर्चा करेंगे। शिव जी पंचदेवों और त्रिदेवों दोनों में ही आते हैं।
आस्था के केन्द्र और देवभूमि उत्तराखंड में शिव जी के केवल मुख की पूजा होती है और शिव जी के शरीर के बाकी के हिस्से की पूजा नेपाल के काठमांडू में होती है। जिसे पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है।
भोलेनाथ के मुख की आराधना वाले इस प्राचीन पंच केदारों में से एक रूद्रनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है और भोलेनाथ के इस रूप को नीलकंठ महादेव कहा जाता है। यह मंदिर भारत में शिव जी के अन्य मंदिरों से इसलिए भी अलग है क्योंकि अधिकांश शिव जी की अराधना शिव जी के शिवलिंग की पूजा कर होती है और रूद्रनाथ में शिव जी के मुख की।
भोलेनाथ के इस रूप के पीछे ऐसी गाथा है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने ही कुल का विनाश करने के कारण अत्यंत दुखी थे। अत: श्रीकृष्ण जी पांडवों को उनके पापों का प्रायश्चित करने के लिए भोलेनाथ की शरण में जाने को कहतें हैं। परन्तु पांडवों से भोलेनाथ नाराज़ थे और पांडवों के वाराणसी आने पर शिव जी गुप्तकाशी चले जाते हैं। पांडवों के गुप्तकाशी पहुंचते ही शिव जी केदारनाथ पहुंचते हैं और बैल के रूप में पांडवों को दर्शन देते हैं। भगवान शिव का यही रूप पंचकेदार की उत्पत्ति का मूल बिन्दू है। मान्यता है कि शिव के इस रूप का जो भाग जिस स्थान पर प्रकट हुआ उसी के अनुसार उन्हे पशुपतिनाथ और पंचकेदार के रूप में प्रसिद्धि मिली।
पशुपतिनाथ – शिव जी के बैल स्वरूप के धड़ का ऊपरी हिस्सा नेपाल के काठमांडू में प्रकट हुआ और यह पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है।
पंचकेदार
निम्न स्थानों पर शिव के बैल स्वरुप के शेष अंग प्रकट हुए।
- तुंगनाथ – शिव की भुजाएं
- मध्यमाहेश्वर – नाभि
- केदारनाथ – पीठ की आकृति पिंड के रूप में
- कल्पेश्वर – शिव जी की जटा
- रूद्रनाथ – मुख
अत: रूद्रनाथ मंदिर में मुख्य रूप से भोलेनाथ के मुख की पूजा का विशेष महत्त्व है। प्राचीन काल में पाषाण से बने इस मंदिर में शिव जी टेढ़ी गर्दन किये हुए हैं और इसी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देकर उनका उद्धार करते हैं। इस मूर्ति की गहराई का पता आज तक कोई भी नहीं लगा सका। भगवान के इस रुप के दर्शन पाने के लिए भक्तों में श्रृद्धा ही नहीं दृढ़ शक्ति भी होनी चाहिए। क्योंकि पर्वतो में स्थित मंदिर तक पहुंचना आसान काम नहीं है।
ऐसे ही शिवजी को भोलेनाथ नहीं कहा जाता। आप मंदिर तक पहुंचने की श्रृद्धा और दृढ़ शक्ति तो दिखाईए, भोलेनाथ आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे।
केवल भोलेनाथ के व्यखयान के लिए कुछ बोल ही इतने सुकन देने वाले हैं तो कल्पना कीजिए भोलेनाथ के दर्शन कितनी आत्मसंतुष्टि से भरे होगें।
- मेरा भोला है भंडारी,
- करे नंदी की सवारी।
- भोलेनाथ रे,
- ओ शम्भुनाथ रे।।
आपने भी यदि पंचकेदार और पशुपतिनाथ की यात्रा की है तो अपना अनुभव साझा कीजिए और वे श्रृद्धालू जो यात्रा करना चाहतें हैं उनको भोलेनाथ के रूद्रनाथ मंदिर के दर्शन के लिए इस लेख पर कंमेट और लेख को शेयर कर प्रेरित कीजिए।
ॐ नम: शिवाय !! hairy woman
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