जब भारत रत्न जेआरडी टाटा को सुधा मूर्ति ने लिखी चिट्ठी

किसी नें यह बात बिलकुल सच हीं कही हैं कि-

” किसी भी किताब को उसके बाहर के कवर को देख कर जज नहीं करना चाहिए”

इसी प्रकार किसी के पहनावे से किसी की पहचान नहीं करना चाहिए। बड़े-बड़े मशहूर इंसान जैसे बिल गेट्स, मार्क ज़ुकरबर्ग इत्यादि का हीं उदाहरण ले सकते हैं आप। परन्तु आज हम आपको एक ऐसी महिला का किस्सा सुनाने जा रहे हैं। जिसको उसके पहनावे से जज करने वाले लोग देख कर हैरान रह गए थे। जी हाँ, आज हम बात करने जा रहे हैं इनफोसिस कंपनी की फाउंडर, सुधा मूर्ति जी की।

उनका साधारण सा जीवन

उनका पूरा नाम “सुधा कुलकर्णी मूर्ति” हैं। उनकी माता का नाम विमला कुलकर्णी था और पिताजी का नाम आर. एच कुलकर्णी था। उनका जन्म 19 अगस्त, 1950 मे कर्नाटक के एक छोटे से गांव, शिगगांव मे हुआ था। जिस ज़माने मे लड़किओं को खुल कर बोलने की भी इज़्ज़त नहीं थी। उस समय उनके परिवार नें उनको पढ़ाई के लिए सहारा दिया था। उन्होंनें बी. वी. बी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की फील्ड मे बी. की डिग्री हासिल की थी। पढ़ाई मे हमेशा से वह आगे थी। अपने क्लास मे वह एक इकलौती लड़की थी। हमेशा वह अव्वल नम्बरों के साथ पास होती। इसी वजह से उनका नाम पूरे कॉलेज मे मशहूर था। इसके लिए उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री, श्री देवराज उर्स से स्वर्ण पदक भी मिला था।

रखी थी शर्त कॉलेज मे एडमिशन की

वह उस ज़माने मे इंजीनियरिंग कॉलेज मे एडमिशन लेने वाली अकेली लड़की थी। इसी वजह से कॉलेज के प्रिंसिपल नें उनके समने कुछ शर्ते रखी थी। यह शर्ते मंज़ूर करने के बाद हीं उन्हें कॉलेज मे दाखिला लेने की इजाज़त थी। वह शर्ते यह थी कि उन्हें लड़को से बातें नहीं करनी थी, कॉलेज की कैंटीन मे नहीं जाना था और साड़ी पहन कर कॉलेज मे आना था। यह सारी शर्ते उन्होंने मंज़ूर कर ली थी। उन्होंनें कभी खुद से जाकर लड़को से बात नहीं की। वह अकेले चुप-चाप बैठी रहती हैं, ना किसी से बात करती हैं, पढ़ने मे भी बहुत अच्छी थी।

जेआरडी टाटा को सुधा मूर्ति ने लिखी चिट्ठी

वह बहुत हीं शांत दिमाग़ की थी। लेकिन एक बार उनको ऐसा गुस्सा आया कि एक बहुत बड़ी कंपनी उनके आगे झुक गयी थी। उस कंपनी का नाम टेल्को (TELCO) था। दरअसल, बात यह थी कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी के लिए एप्लाई कर रही थी। तब उनको टेल्को कंपनी का भी फॉर्म मिला। लेकिन जब वह उसको भरने के लिए आगे बढ़ी, तो उसमे पाया की इसे नौकरी के लिए औरते नहीं भर सकती। बस फिर क्या था, उनको इतना गुस्सा आया की उन्होंने सीधा टाटा को पत्र लिख दिया। उसमे उन्होंने यह लिखा कि आप इतनी बड़ी कंपनी चलाते हैं। इतनी बड़ी सोच रखने के बावजूद भी आप लोग ऐसा भेदभाव कैसे कर सेकते हैं। कंपनी नें माफ़ी मांगते हुए उनके पूरे इंटरव्यू का खर्चा उठाया और साथ हीं साथ उन्हें डेवलपमेंट इंजीनियर की नौकरी दी।

पति को दिया 4000 रुपये का उधार

उनकी शादी नारायण मूर्ति जी से हुई थी। शादी से पहले वह ज्यादातर रेस्टुरेंट मे हीं मिलते थे। उस समय नारायण जी के पास उतने पैसे नहीं हुआ करते थे। तो वह उनसे उधर ले लिया करते थे। उधार लेते समय वह उनसे यह कह दिया करते थे कि तुम इसका हिसाब रखना, जब नौकरी लगेगी तो सारे पैसे देदूंगा। फिर बाद मे पता चला कि वह हिसाब 4000 रुपये तक पहुंच चुका था। लेकिन तब तक उनकी शादी हो चुकी थी। इस वजह से उन्होंने सारा उधर माफ कर दिया।

इनफ़ोसिस की शुरुआत

इनफ़ोसिस उन दोनों की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा कदम था। इसके लिए उन्होंने यह ठान था कि साथ मिलकर काम करेंगे। जहाँ नारायण जी दफ़्तर सँभालते वहां वह सिस्टम एनालिस्ट का काम करती थी।इसके साथ-साथ उन्होंने और भी बहुत सारे रोल निभाए हैं जैसे कुक, प्रोग्रामर और एक क्लर्क के। इसके अलावा उन्होंने अपनी ज़िन्दगी मे बहुत सारे सामाजिक कार्य भी किये हैं जैसे बच्चो को पढ़ाया हैं, दान दिए हैं इत्यादि।

हमें उनकी ज़िन्दगी से एक सबसे बड़ी सीख यह मिलती हैं कि साधारण मनुष्य की तरह भी आप अपने जीवन मे तरक्की हासिल कर सकते हैं। इतने पैसे होने के बावजूद भी उन्होंने कभी अपने अस्तित्व पर घमंड नहीं किया। और यही एक सज्जन इंसान की निशानी हैं। займ онлайн на карту без отказа


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