ज्योतिष शास्त्र के मुख्य रूप से दो भेद हैं। आदि काल के अन्त में यही दो भेद स्वतन्त्र रूप से विकसित हुए। वे हैं-गणित ज्योतिष और दूसरा फलित ज्योतिष।
1.गणित ज्योतिष
गणित ज्योतिष के अर्न्तगत करण, तन्त्र व सिद्धान्त का ग्रहण होता है। पंचांग आदि इसी से बनाए जाते हैं। प्राचीन ग्रन्थों जैसे सूर्य सिद्धान्त जो महार्षियों के सूक्ष्म गणित पर आधारित पद्धति है, पर भी पंचांग बनते हैं। ग्रहज्ञाधव जैसे करण ग्रन्थों के आधार पर भी पंचांग बनाए जाते हैं। पाश्चात्य प्रणाली में दूरबीन द्वारा वेधशालाओं में नियमित रूप से ग्रहों का वेध लिपिबद्ध करके लिखित सूचना तैयार की जाती है। यह सूचना अर्थात् रिपोर्ट प्रतिवर्ष नियमित रूप से प्रकाशित होती है। इस सूचना के आधार मान कर बहुत ही पंचांग बनाए जाते हैं। आज कल तो अधिकतर पंचांगों का आधार यही आंकड़े होते हैं। इस लिए गणित ज्योतिष को खगोल विद्या (ASTRONOMY) भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र का गणित भेद अति महत्वपूर्ण है। गणित द्वारा पंचांग का निर्माण होता है तथा विद्वान एवं ज्योतिषी और अंतरिक्ष के बीच पंचांग ही एक है जो सम्पर्क सूत्र का कार्य करता है। ग्रह स्थिति और अंतरिक्ष का ज्ञान पंचांग कराता है। यदि पंचांग शुद्ध होगा तो ग्रह स्थिति भी शुद्ध होगी और सही भविष्य फल प्राप्त होगा। संक्षेप में गणित ज्योतिष के अन्तर्गत गणित द्वारा ग्रहों की स्थिति आदि निकाली जाती है। इसके अर्न्तगत ऐसा गणित भी है। जिसमें गुणा, भाग, वर्गमूल, जोड़ना, घटाना, आवश्यक संस्कार गणित की जोड़-बाकी भूमि, आकाश, अंतरिक्ष आदि के नापने की विधियां वर्णन की गई हैं।
2.फलित ज्योतिष
फलित ज्योतिष को (Astra-logy) भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा ग्रहों पर फल-कथन किया जाता है अथवा जाना जाता है अतः फलित ज्योतिष में ग्रहों की स्पष्ट स्थिति पर से शुभाशुभ फल का विचार होता है। फलित ज्योतिष के भी कई भेद हैं परन्तु मूल रूप से फलित ज्योतिष के पांच भेद माने जाते हैं। यह है होरा, मूर्हत, ताजिक, प्रश्न व संहिता।
1. होरा
फलित ज्योतिष के होरा नामक भेद ने व्यक्ति की जन्म कुण्डली बनाना तथा उस पर से दुःख-सख का विचार करना होता है। होरा शास्त्र को जातक शास्त्र भी कहा जाता है। अतः इसके अन्तगत जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार किसी भी व्यक्ति के शुभाशुम का निर्णय किया जाता है। होरा शब्द की उत्पति अहोरात्र शब्द से हुइ है जिसका मतलब होता है रात दिन। अतः अहोरात्र में 24 होरा होते है इस तरह एक होरा घंटा की होती है। इस तरह होरा शास्त्र में मानव जीवन में जो कुछ भी रात और दिन में घटित होता है, वह सब कुछ होरा शास्त्र के अन्तर्गत आता है। यही ज्योतिष भेद वास्तव में जातक के साथ सीधा सम्बन्ध रखता है। यही भेद प्रस्तुत विषय का भी है क्योंकि फल-कथन का आधार कण्डली होता है, और जन्मकुण्डली और जन्मपत्री की रचना कैसे करें ही हमारा विषय है।
2.मुहूर्त
इसके अन्तर्गत किसी भी कार्य को आरम्भ करने में तिथि, नक्षत्र, ग्रह वार आदि के प्रमाण से शुभाशुभ फल का विचार होता है। मुहूर्त अर्थात् किसी विशेष कार्य को करने का विशिष्ट निर्धारित समय। यह समय ज्योतिष शास्त्र के इस भेद के अन्तर्गत निधारित किया जाता है। मुहूर्त का शब्दार्थ ही उपयक्त क्षण पर किए जाने वाले काम का क्षण होता है। इस क्षण को खोजना इस भेद द्वारा ही किया जाता है। इसके लिए वार के अनुसार चौकड़ियां विशेष महत्व रखते हैं।
3. ताजिक
वर्ष, मास, दिन प्रवेश आदि जानकर पूरे वर्ष भर का शुभाशुभ फल का विचार फलित ज्योतिष के इस भेद की अन्तर्गत होता है।
4.प्रश्न
किसी भी समय प्रश्न का विचार इस द्वारा किया जाता है।
5.संहिता
इसमें भू-शोधन, दिक् शोधन, मेलापक, भूकम्प, सामुद्रिक, स्वरोदय, अंग स्फुरण, शरीर चिन्ह द्वारा संकेत इन्द्र धनुष का विचार होता है। शकुन भी इसी अन्तर्गत आता है।
यह तो सुस्पष्ट हो गया है कि सभी प्रकार के फल का आधार किसी-न-किसी रूप में राशि, ग्रह व नक्षत्र आदि ही हैं अतः सर्वप्रथम राशि चक्र व सौर मंडल की जानकारी आवश्यक है। займы без отказа
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