जीवन में समभाव
सुख व दुख यह दोनों ही मनुष्यो के जीवन में आते है। जो मनुष्य इन परिस्थितियों में भी समभाव में रहता है, वही सही मायनो में प्रसन्न रहता है। जो सुख के समय भी अधिक हर्षित न हो, और दुख में अतयंत निराश व नकारत्मकता से न घिरे वह ही समझदार माने गए है। समय भले ही आपके पक्ष में हो या विपक्ष में , जो इंसान दोनों में ही उद्विग्न व विचलित नहीं होता, एक सकारात्मक सोच बनाये रखते हुए, अपना व्यवहर एक सामान रखता है, वही सिद्ध पुरुष कहलाते है।
चलिए इस नीति को एक प्रचलित लोककथा के माध्यम से देखते है
एक समय की बात है, एक बार एक धनि सेठ आश्रम में एक गाय दान दे कर गया था। इस बात से एक शिष्य काफी खुश था, उसने तुरंत जा कर यह बात अपने गुरुदेव को बतलायी। गुरुदेव ने कहा कि ” चलो अच्छा ही हुआ वत्स, अब हमें रोज़ ताज़ा दूध मिलेगा और गौ माता का आशीर्वाद आश्रम पर बना रहेगा ” कुछ दिनो तक तो सब सही रहा, फिर उस सेठ के घर चोरी हो गयी, उसका सब चला गया। उसने सोचा जो गाय उसने आश्रम में दी थी वह वापिस ले आता हूँ, उससे कुछ गुज़ारा तो शुरू होगा। यह सोचकर वह व्यक्ति आश्रम से अपनी गाय वापस ले कर चला गया।
यह बात जानकार शिष्य को बहुत दुख हुआ। उसने अपनी यह व्यथा गुरुदेव को बतलाई कि किस कारण वह सेठ गाय वापिस ले गया और इससे वह कितना दुखी है। यह सुनकर गुरूजी कहते है कि ” यह तो नेक काम हुआ है। गौ माता उस सेठ पर अपनी कृपा बनाये। इस वक्त उसे गाय की अधिक आवश्यकता है। ”
इस पर भी शिष्य को दुखी देख गुरु ने मज़ाक में कहा कि ” गाय के जाने से अब तुम्हे उसका गोबर और गंदगी भी नहीं साफ़ करनी पड़ेगी “।
यह सुनकर शिष्य भी मुस्कुरा दिया। इसके बाद शिष्य ने पूछा कि ” हे गुरुदेव ! आपको गाय के जाने का दुख नहीं हुआ ?”
गुरुदेव बतलाते है ” मनुष्य को हर हाल में समभाव की स्थिति में ही रहना चाहिए। यही तो सुखी रहने का मूल मन्त्र है। जब गाय मिली तब न तो हम अधिक प्रसन्न थे और न जाने पर अधिक दुखी “। срочный займ
Leave a Reply