हम मनुष्यों में एक भावना होती है, डर की भावना। हम अक्सर डरते हैं। किसी को खोने से, नुकसान से, या हारने से। ये डर हमारे दिलों में बैठ सा गया है। हम अक्सर बदलाव से भी डरते हैं। हमें यह डर रहता है कि कहीं बदलाव के रास्ते में चलने से हमारा नुकसान ना हो जाए। लेकिन साथ ही ऐसे कई लोग भी हैं, जो जोखिम उठाकर बदलाव के सफर पर निकल जाते हैं। आज हम एक ऐसे ही एमबीए ग्रेजुएट व्यक्ति के बारे में जानेंगे, जिन्होंने जोखिमों की परवाह ना करके अलग रास्ता अपनाया, और अपने लक्ष्य को हासिल किया।
अमित त्यागी – एक परिचय
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के रहने वाले अमित त्यागी ऐसे लोगों के लिए मिसाल हैं, जो जीवन की परेशानियों कि परवाह करके आगे नहीं बढ़ते। गाजियाबाद से एमबीए ग्रेजुएट होने वाले अमित ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि बात 1996 के आस पास की है। उन दिनों वे एक मल्टीनेशनल फार्मा कंपनी में सालाना लाखों रुपए की तनख्वाह पा रहे थे। एक दिन उनकी पत्नी को, जो खुद एमबीए पीएचडी थी, वर्मीकम्पोस्ट बनाने का ख्याल आया। अगर वर्मीकम्पोस्ट के बारे में संक्षिप्त में जाने तो यह एक ऐसी पद्धति होती है, जिसमें मिट्टी के अंदर मिलने वाले केचुए से पौधों के लिए खाद बनाया जाता है। इस खाद से पौधों को बहुत लाभ होता है। मिट्टी उपजाऊ बनती है।
कुछ अलग करने की सोच रखने वाले अमित को भी अपनी पत्नी की बात पसंद आई। उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट बनाने का फैसला कर लिया, लेकिन उनके मन में यह डर भी था कि क्या वो इस काम में सफल हो पाएंगे? उन दिनों लोगों को वर्मीकम्पोस्ट के बारे में जानकारी नहीं थी। यह एक जोखिम भरा काम था, क्योंकि इसमें सफलता मिलेगी या नहीं, यह कहना मुश्किल था। पर अमित ने फैसला कर लिया कि वो इस जोखिम भरे रास्ते पर चलेंगे। मल्टीनेशनल कंपनी की शानदार नौकरी छोड़ उन्होंने अपनी गांव की जमीन को चुना, और वर्मीकम्पोस्ट बनाने के कार्य में लग गए।
जब अमित ने की नई शुरुआत
यह सफर आसान नहीं था। शुरुआत में लोगों ने उत्साह नहीं दिखाया। लोगों के उत्साह ना दिखाने और सहमत ना होने के पीछे एक वजह थी, ज्यादा उत्पादन के लिए गैर आर्गेनिक और केमिकल फर्टिलाइजर का बड़े स्तर पर इस्तेमाल। लोगों को लगता था कि केमिकल ही सही है, और वर्मीकम्पोस्ट से बने खाद से कोई लाभ नहीं। ऐसे समय में अमित ने एक रणनीति बनाई। उन्होंने फैसला लिया कि वो गांव गांव घूमेंगे, और लोगों को वर्मीकम्पोस्ट से बनने वाले खाद के फायदे के बारे में बताएंगे। उन्होंने अपनी रणनीति पर काम किया, लेकिन शुरुआत में लोगों को समझ में नहीं आ रहा था। अमित ने लोगों से कहा कि वो वर्मीकम्पोस्ट से बनाने वाले खाद को एक बार इस्तेमाल करें, और अगर कोई फायदा ना लगे तो वो इस्तेमाल करना छोड़ दे। उनकी यह मेहनत रंग लाई, और काम चल निकला।
अमित बताते हैं कि उन्होंने अपनी खाद कि पहली खेप एक नर्सरी वाले को बेची। अभी सप्ताह भर ही गुजरा था कि वो नर्सरी वाला बड़ी मात्रा में खाद मांगने लगा। उसे इस खाद से फायदा हुआ था। उस समय अमित के पास बड़ी मात्रा में खाद उपलब्ध नहीं था, इसलिए उन्होंने नर्सरी वाले को टालने के लिए कह दिया कि यह खाद दस रुपए प्रति किलोग्राम है। यह सच नहीं था, क्योंकि उसकी कीमत उस समय पचास पैसे प्रति किलोग्राम थी। नर्सरी वाला उस खाद से इस कदर प्रभावित था, कि उसने ऊंची कीमत की परवाह नहीं की और खाद खरीदने को तैयार हो गया। ऐसा देखकर अमित को विश्वास हो गया कि आने वाले समय में इस खाद से होने वाले लाभ को सभी जानेंगे और इसका इस्तेमाल भी करेंगे।
मेहनत रंग लाई
इसके बाद अमित में पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो वर्मीकम्पोस्ट बनाने में लग गए। उनकी मेहनत रंग लाई और कारोबार सफल होने लगा। आज के समय में अमित एक जाना पहचाना चेहरा हैं। उन्होंने ‘सजग इंटरनेशनल’ के नाम से एक कंपनी शुरू की है। आज उनकी कंपनी पूरे देश में वर्मीकम्पोस्ट से बने खाद की आपूर्ति करती है।
अमित बताते हैं कि केंचुआ खाद में गोबर की अपेक्षा तीन गुना अधिक पोषक तत्व होते हैं। अब इनकी कंपनी से कई लोग जुड़ गए हैं। आज के समय में अमित की कंपनी को दो करोड़ रुपए का सालाना फायदा होता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उड़ीसा, असम सहित कुल चौदह राज्यों में इनकी कंपनी के करीब आठ हजार यूनिट स्थापित हैं। इनमें से अकेले मेरठ जिले में अस्सी यूनिट स्थापित हैं। वह किसानों को केंचुए की खाद बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें यूनिट स्थापित करने में भी सहायता प्रदान करते हैं।
साथ ही अमित ने यह भी बताया कि उन्होंने मेरठ जिले के किनानगर में 350 वर्मीकम्पोस्ट लगाए हैं। हर माह लगभग सौ टन का उत्पादन होता है। उन्होंने बताया कि खाद की लागत 3 रुपये प्रति किलोग्राम आती है। वह थोक में छह रुपए से लेकर बीस रुपए प्रति किलोग्राम तक खाद बेचते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1,5,10,20,40 जबकि शहरी क्षेत्र के लिए 1,2,5 और 10 किलो की पैकिंग उपलब्ध हैं। इस खाद की विधि बताते हुए उन्होंने कहा कि वे इसे बनाने के लिए आस्ट्रेलियाई आइसोनिया फेटिडा का इस्तेमाल करते हैं। खाद बनाने के बाद उसे पैक करके बेचा जाता है।
अमित की तरह ही ऐसे अनेक लोग हैं जो आज के समय में जोखिमों की परवान ना करके सराहनीय कार्य कर रहे हैं। ऐसे ही अनेक लोगों के बारे में जानने के लिए बने रहे हमारे साथ। अगर यह कहानी पसंद आई हो तो इसे दूसरे लोगों तक भी पहुंचाए। займ на карту срочно без отказа
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