अनामिका सेनगुप्ता की कहानी – बच्चे के जन्म पर नौकरी से निकाला तो बना ली अपनी कंपनी

कहने को तो हम 21वी सदी के उस समाज में रहते है जहां महिलाओं को सर्वोपरी माना जाता है, लेकिन क्या सिर्फ मान लेने से ही हर समस्या का हल निकल जाता है? हमारा देश, जहां नवरात्रि में महिलाओं को पूजा जाता है, वहीं आए दिन उनके साथ अपराध होते रहते है। जरूरी नहीं है कि महिलाओं के साथ सिर्फ बलात्कार जैसा ही अपराध हो, कभी कभी समाज के ताने सुनना, अपमानित होना भी बलात्कार के समान ही पीड़ा देता है।

लेकिन ऐसे समाज के गाल पर करारा तमाचा जड़कर खुद की पहचान बनाना हमारे देश की महिलाओं को बखूबी आता है। व्यक्ति विशेष में आज हम एक ऐसी ही महिला की बात करेंगे, जिन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर अपनी एक अलग पहचान बनाई।

हम बात कर रहे है मुंबई के एक छोटे से इलाके डोंबीबली की गलियों में अपना बचपन गुजारने वाली अनामिका सेनगुप्ता की।

बचपन से ही मेधावी छात्रा रही अनामिका के बारे में किसी ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि आने वाले समय में वो कई लोगो के लिए प्रेरणा बनेंगी। हम अक्सर ऐसा सुनते है कि पैसे ना होने की वजह से कई बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते। कुछ ऐसी ही कहानी अनामिका की भी है। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली अनामिका की मां को पढ़ाई की अहमियत पता थी। उन्होंने अनामिका को ज्ञान का महत्व समझाया और पैसों की कमी के बावजूद उनको खूब पढ़ाया।

हमारे बीच में ही कुछ ऐसे कुंठित मानसिकता वाले लोग है, जो महिलाओं को कमजोर और लाचार समझते है। उन्हें ये लगता है कि महिलाओं को चारदीवारी और पर्दे के पीछे ही रहना चाहिए। ऐसी सोच रखने वाले लोगों के लिए अनामिका सेनगुप्ता एक करारा जवाब है।

अगर अनामिका के जीवन पर प्रकाश डालें तो हमें एक प्रेरित करने वाली कहानी मिलती है। कभी हार ना मानने वाली अनामिका का जीवन कठिनाइयों में गुजरा। उनके पास किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं रहते थे। रद्दी वाले से किताबें लेकर वह पढ़ाई किया करती थी। कक्षा 8 में आते ही उन्होंने गरीब बच्चों के लिए एक छोटी सी लाइब्रेरी खोल दी जहां पर वह बच्चों को किताबें किराए पर देने लगी। उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ग्रेजुएशन करने के बाद उनको एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर एचआर काम करने का मौका मिला।

नई शुरुआत

वक्त बदलता रहा और तररकी की सीढ़ियां चढ़ती अनामिका की जिंदगी में एक ऐसे ख़ास शक्स का आगमन हुआ, जिनके साथ उन्होंने शादी के पवित्र बंधन में बंधने का फैसला कर लिया।शादी के बंधन में बंधने के बाद अनामिका कि ज़िन्दगी की एक नई पारी शुरू हुई। अब उन्हें अपने काम के साथ साथ अपने परिवार का भी ध्यान रखना था। सब खुश थे। और एक दिन उनकी ज़िन्दगी में एक और खुशी ने दस्तक दे दी जब अनामिका ने एक बच्चे को जन्म दिया। जब एक स्त्री मां बनती है तो उसके लिए ये सबसे बड़ी खुशी होती है। बच्चे के जन्म के साथ ही अनामिका पर नौकरी, परिवार के साथ एक और ज़िम्मेदारी आ गई। लेकिन वो हर ज़िम्मेदारी को निभाना जानती थी।

वक्त हमेशा एक जैसा नहीं होता। यह हमें खुशी के साथ साथ गम भी देता है। अनामिका की ज़िन्दगी में यह गम की घड़ी तब अाई जब उनके मां बनने के बाद उनकी कंपनी का रवैया उनके प्रति बदलने लगा। हद तो तब हो गई जब कंपनी ने उन्हें यह कहकर निकाल दिया कि अब आपके ऊपर एक पत्नी और बहू के साथ-साथ एक मां की जिम्मेदारी भी आ गई है। अब आपका ध्यान बंट जाएगा और इससे कंपनी को नुकसान होगा। यह एक नारी के साथ-साथ एक मां का भी अपमान था लेकिन अनामिका यह अपमान का घूंट पीकर रह गई।

खुद को साबित किया

लेकिन कहते हैं न, इस दुनिया में सबसे बड़ी योद्धा एक मां होती है, जो अपने परिवार और बच्चों के लिए मौत से भी लड़ने को तैयार रहती है। अनामिका इस बात का एक जीता जागता उदाहरण है। कंपनी से निकाले जाने के बाद भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और खुद की एक कंपनी खोलने का फैसला कर लिया। उन्होंने देखा कि बच्चों के कपड़े बदलने के लिए जो रैप इस्तेमाल होता है वह अमेरिका से आयात होता है। उन्होंने यहीं से अपने काम की शुरुआत की। छोटे-छोटे स्थानीय हस्तशिल्प कारीगरों के साथ मिलकर उन्होंने रैप बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे उत्पाद बिकने लगा और अनामिका ने इस कंपनी को नाम दिया ‘अलमित्रा सस्टेनेबल’।

अनामिका एक पढ़ी-लिखी और जागरूक महिला थी। उन्हें जल्द ही यह आभास होने लगा कि रैप बनाने में जो प्लास्टिक इस्तेमाल होता है, उससे पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचता है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए अनामिका ने एक सराहनीय कदम उठाया। उन्होंने बांस के इस्तेमाल से बाकी के उत्पादों को बनवाना शुरू किया। आज के समय में उनकी कंपनी बांस के इस्तेमाल से स्ट्रॉ, टूथब्रश और कई सारी चीजें बना रही है। हार ना मानने का उन्होंने जो फैसला लिया, उसकी वजह से आज उनकी कंपनी के साथ-साथ उनका नाम भी चारों तरफ बढ़ रहा है।

प्रेरणा बनी

यह सच है कि मां बनने के बाद एक महिला पर जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं लेकिन यह जिम्मेदारियां उस महिला को कमजोर नहीं बल्कि मजबूत बनाती है। बचपन से ही इतनी कठिनाइयों का सामना करने के बाद भी अनामिका ने कभी हार नहीं मानी और यह साबित किया कि इस दुनिया में एक महिला से बड़ा योद्धा और कोई नहीं हो सकता। अनामिका उन तमाम महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है जो खुद को कमजोर समझ लेती हैं।

अनामिका सेनगुप्ता की तरह ही ऐसी हजारों महिलाएं हैं जो भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन कर रही हैं। ऐसी ही महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियों को जानने के लिए जुड़े रहे हमारे साथ, और टिप्पणी करके हमें यह जरूर बताएं कि आपको कौन सी महिला की कहानी प्रेरित करती है? कहानी पसंद आई हो तो इसे और भी लोगों तक पहुंचाए। микрозаймы онлайн


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