नमस्कार दोस्तो आपका स्वागत है। आज हम न्यूज़ में या अखबार में अक्सर सुसाइड यानी आत्महत्या की खबरों को पढ़ते रहते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रति 1 लाख में से 10 लोग हर साल सुसाइड कर लेते हैं। रिसर्च में देखा गया है कि सामान्य लोगो की तुलना में मेडिकल सेक्टर से जुड़े लोग अधिक आत्महत्या करते हैं। तो आइए आज आपको इससे जुड़ी कुछ खास बात बताते हैं, इसलिए हमारे आर्टिकल को शुरू से अंत तक पूरा पढ़िए।
हाल ही में दिल्ली एम्स के एक डॉक्टर ने बीते 8 जुलाई को रात के समय अपने हॉस्टल के 10 मंजिल से कूद कर जान दे दी। जिसने भी यह खबर सुनी वह स्तब्द्ध रह गया। बताया जा रहा है कि डॉक्टर सायकाइट्री में एमडी का कोर्स कर रहे थे और अवसाद से पीड़ित थे, जिसके चलते उन्होंने अपनी जान दे दी। अब आपकी जिज्ञासा को कम करते हैं और आइये आपको बताते है कि क्यों मेंटल हेल्थ वर्कर्स सब जानते हुए और समझते हुए भी कैसे इतना टूट जाते हैं कि आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
मेडिकल प्रोफेशनल और सुसाईड
पुलिस की जांच में पाया गया कि डॉक्टर ने अपने हॉस्टल के 10वीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। हालांकि अभी भी पुलिस मामले की जांच कर रही है । लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि डॉक्टर अवसाद यानी डिप्रेशन के शिकार थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जितने भी लोग दुनिया भर में सुसाईड करते हैं उनमें साइकाइट्री के डॉक्टरों की संख्या अधिक होती है।
आत्महत्या से जान गवाने वाले लोगो की संख्या
जैसा कि हमने आपको बताया कि हर साल 10 लाख में से 10 से 12 लोग सुसाईड के जरिये अपनी जान गवां देते हैं। और इसमे मेडिकल प्रोफ़ाइल से जुड़े लोगों की संख्या अधिक होती है और सबसे खास बात तो यह है कि इसमे सबसे ज्यादा साइकाइट्री के डॉक्टरों की संख्या होती है। सुनने में यह थोड़ा अटपटा से लगता है कि मनोविज्ञान के बारे में अच्छी तरह जानकारी होने के बावजूद आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं। तो आइए जानते हैं इसकी वजह……
1. समझिए व्यक्तित्व को
ऐसा देखा गया है और आमतौर में जो लोग अधिक सेंसेटिव और सिंपेथेटिक होते हैं, वही चिकित्सा और मेडिकल के क्षेत्र को अपने करियर के रूप में चुनते हैं। और एक अच्छा चिकित्सक होने के लिए आपमें यह गुण होना स्वाभाविक भी है। आप किसी भी रोगी का इलाज भावनात्मक रूप से तभी कर सकते हैं जब आप उस दर्द को समझ और महसूस कर सकें।
शायद यही एक बड़ी वजह है कि सभी डॉक्टर अपने पेशंट्स के साथ भावनात्मक रूप से अधिक जुड़ जाते हैं। खास तौर पर यह साइकायट्री डिपार्टमेंट से जुड़े डॉक्टरों में अधिक देखा जाता है। वे अपने पेशंट्स के अंदर से नकारात्मक भावनाओं को निकालने के चक्कर मे उनसे इतना अटेच हो जाते है कि खुद भी अवसाद यानि डिप्रेशन के शिकार हो जाते है।
2. पेशा ही बन जाता है सबसे बड़ी परेशानी
आमतौर पर हर पेशे में देखा जाता है कि लोग एक दूसरे से अच्छा और बेहतर बनने के लिए हर संभव कोशिश करते है और कभी कभी वे इसी चक्कर मे खुद को इतना तनाव और दबाव में डाल देते हैं कि उससे बाहर निकल पाना उनके लिए संभव नही होता।
काम करने के लिए खुद को अधिक प्रेशर देना और हेल्थी रूटीन न होने के कारण अवसाद या डिप्रेशन का खतरा बहुत हद तक बढ़ जाता है। एक्सपर्ट की माने तो, डिप्रेशन चाहे कैसा भी हो उसकी एक मुख्य वजह होती है स्ट्रेस यानी तनाव। और आपके जीवन मे यह तनाव प्रोफेशनल या करियर, किसी से भी प्रभावित हो सकता है।
3. जब बढ़ जाता है डिप्रेशन का असर
रिसर्च में ऐसा पाया गया है और एक्सपर्ट का भी ऐसा मानना है कि डिप्रेशन चाहे जिस भी प्रकार का हो लेकिन आत्महत्या करने वाले अधिकतर लोगों में डिप्रेशन एक मुख्य वजह होती है। ऐसे लोग तनाव और नकारात्मक विचारों से भरे होते हैं और खुद को खत्म कर लेना ही इन्हें तनाव से मुक्ति का एकमात्र विकल्प नजर आता है।
4. शराब भी है एक बड़ी वजह
ऐसा आमतौर पर पाया जाता है कि जो लोग डिप्रेशन के शिकार होते हैं, वे शराब का सेवन अधिक मात्रा में करते हैं और यही उन्हें आत्महत्या की ओर अधिक उकसाने का काम भी करती है। और एक मेंटल हेल्थ वर्कर जो डिप्रेशन का शिकार हो चुका है वो अपना इलाज भी कराने से भी कतराने लगता है। मेन्टल हेल्थ वर्कर के तौर पर काम करते हुए उसे इलाज के हर एक पहलू के बारे में बारीकी से पता होता है, इसलिए वो अपना इलाज नही हो सकने के ख्याल भी कही न कही मन मे बसा लेता है और यही एक बड़ी वजह बनती है डिप्रेशन के अधिक बढ़ जाने की।
5. कुछ गलत धारणाएं
आमतौर पर हमारे बीच यह धारणा होती है कि जो खुद बीमार है वो हमारा इलाज कैसे कर सकता है। लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए वो अपने पेशंट्स की बीमारी को दूर करते वक़्त उनसे इतना अटेच हो जाते है की खुद भी डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
लेकिन हमें नही भूलना चाहिए कि डॉक्टर हेल्थ वर्कर होने से पहले एक इंसान भी है। और अगर किसी भी इंसान को अधिक समय के लिए नेगेटिव एनर्जी के बीच रख दिया जाए तो वह खुद नकरात्मक विचारों का शिकार हो सकता है। लेकिन मेंटल हेल्थ वर्कर के केस में ऐसा बहुत कम देखा जाता है। क्योंकि उन्हें पहले से इस बात की खास ट्रेनिंग दी जाती है।
कैसे की जा सकती है रोकथाम
अगर आप किसी डिपार्टमेंट में सीनियर लेवल पर हैं, तो आपको अपने जूनियर स्टाफ और कर्मचारियों के बदलते व्यवहार को लगातार समझते रहना चाहिए। अगर आपको कोई भी बदलाव नजर आए जिसे देखकर कर आपको अंदाजा हो सकता है कि आपका साथी तनाव में है तो आपको उससे इस बारे में बात करनी चाहिए। उसे बेहतर ट्रीटमेंट के लिए प्रेरित करना चाहिए और इससे जुड़ी जानकारी किसी से भी साझा नही करनी चाहिए।
क्यों है मेन्टल हेल्थ एजुकेशन की जरूरत
इन सब कोशिशों के अलावा हर सरकार को अपने राज्य के पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। ऐसा करने से हम स्कूल और कॉलेज में भी इन चीज़ों को बेहतर ढंग से समझ कर आगे ऐसी परिस्थितियों से बच सकते हैं।
तो आज के इस आर्टिकल के जरिये हमने आपको डिप्रेशन से जुड़ी जानकारी बतायी है। इसमे हमने आपको बताया कि कैसे आप डिप्रेशन से लड़कर अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अगर आपके दिल मे कोई सवाल है या आपके मन मे कोई राय है तो आप नीचे कमेंट करके पूछ सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए K4 Feed को फॉलो कीजिये। займ онлайн