राजस्थान का नाम जैसे ही हम सुनते हैं या कहीं पढ़ते हैं तो कुछ चीजें ख़ुद-ब-ख़ुद दिमाग में आ जातीं हैं , जैसे- राजस्थान का समृद्धशाली इतिहास , भानगढ़ का किला , गट्टे की सब्जी , कोटा की खस्ता कचौरी और अलवर की कढ़ी कचौड़ी के साथ – साथ रेगिस्तान । ये कुछ चीजें हैं जो हमारे ज़हन में आ जाती हैं।
रेगिस्तान , बारिश और खेती अटपटा लगता है न ? सुन के
पर ऐसा बिल्कुल भी नही है , राजस्थान में बारिश भी होती हैं और खेती भी होती है। राजस्थान में एक गाँव है जिसका नाम है – ‘गुढ़ा कुमावतान’ जो ‘मिनी इज़राइल’ के नाम से मशहूर है। आपको यह जान के हैरानी हुई होगी न ? पर ये बिल्कुल सत्य है।
‘गुढ़ा कुमावतन’ राजस्थान की राजधानी ,जयपुर से मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजस्थान या भारत के बाकी गांव की तरह गुढ़ा कुमावतन भी सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों से जकड़ा हुआ था पर अब यह मॉडर्न इंडिया का मॉडर्न विलेज बन चुका है , पर अभी भी लोगों की सोच में बहुत परिवर्तन आना बाकी है। गुढ़ा कुमावतन को मॉडर्न इंडिया का मॉडल विलेज और मिनी इजराइल बनाने के पीछे मेहनत और सोच है ‘खेमाराम चौधरी ‘ की ।इन्होंने खेती से न केवल खुद की स्थिति बल्कि अपने गांव की भी किस्मत चमका दी।
खेमाराम जी की पढ़ाई कुछ खास नहीं हो पाई । उनके पास जमीन थी कुछ जरूरतें थी, तो कुछ अधूरे सपने थे ,जो लगन जज्बे और हिम्मत को कम नहीं होने देते थे । खेमाराम जी ने तकनीक और अपने ज्ञान का प्रयोग कुछ इस तरह किया है कि आज वे भारत के किसानों की प्रेरणा बन गए हैं। गुढ़ा कुमावतन के मिनी इजरायल बनने की शुरुआत कुछ इस तरह शुरू होती है।
एक बार राजस्थान सरकार की तरफ से खेमाराम जी को इज़रायल जाने का मौका मिला । इज़राइल जो खेती के मामले में दुनियां में सबसे आगे हैं। खेमाराम जी इज़रायल गए और उन्होंने वहां देखा कि कैसे वहां रेगिस्तान में ओस की सिंचाई होती है और कैसे दीवारों पर गेहूं और धान की खेती होती है। उन्होंने यह सब सिर्फ देखा ही नहीं बल्कि सीखा भी । हालांकि , जब वे इज़रायल से वापस आए तब वे इन तकनीकों को ,अपने खेत में लागू करना चाहते थे पर उनके पास इतनी जमा पूंजी नहीं थी कि इन तकनीकों को, वे अपने खेतों में लागू करते ।
आखिरकार, फिर सरकार की सब्सिडी से उन्होंने पहला पॉलीहाउस लगाया। उन्होंने अपना पहला पॉलीहाउस 4000 वर्ग मीटर में लगाया था और आज के हालात यह हैं कि वे 30000 वर्ग मीटर में पॉलीहाउस लगाते हैं । खेमाराम जी बताते हैं – ” सबसे पहले मुझे एक पॉलीहाउस लगाने में 33,00,000 का खर्च आया था। 33लाख में से मुझे 9 लाख देना पड़ा , जो मैनें बैंक से लोन लिया था बाकी सरकार से सब्सिडी मिल गई । सबसे पहले मैंने करीब डेढ़ लाख खर्च करके खीरे की फसल की चार महीने बाद, मैंने लगभग ₹1200000 का बेचा ।” खेमाराम जी कहते हैं- “कभी सोचा भी नहीं था कि वे इतनी जल्दी बैंक का लोन वापस कर पाएंगे।”
खेमाराम जी आगे बताते हैं कि पारंपरिक खेती के बजाय संरक्षित खेती में फायदा होता है । खेमाराम जी फैन पैड की मदद से खेती करते हैं ।फैन पैड का मतलब होता है पूरे साल में जब चाहे, जो चाहे वह फसल उगा सकते हैं। खेमाराम जी के खेत में राजस्थान का पहला फैन पैड है पर इसमें लागत बहुत ज्यादा लगती है इसलिए आम किसान इसे लगाने के बारे में नहीं सोचता है।
खेमाराम जी अपने फ़ैन पैड में ज्यादातर खरबूजा और खीरा ही लगाते हैं । इसमें लागत जरूर ज्यादा आती है पर मुनाफा भी चार गुना होता है और करीब डेढ़ महीने बाद ही खेत में खीरों की फसल आ जाती है । फैन पैड में खीरों और खरबूजो का अच्छा मुनाफा मिल जाता है । फैन पैड में एक तरफ फब्बारा चलता रहता है और दूसरी तरफ 23 पंखे । फसल की जरूरत के मुताबिक वातावरण बना लिया जाता है जिससे फसल अच्छी होती है।
फैन पैड में लगे फब्बारों और पंखों के लिए बिजली का होना बहुत आवश्यक है पर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के क्या हालात हैं ,इससे तो हर कोई परिचित है इसलिए खेमाराम जी ने, सरकारी सब्सिडी की मदद से अपने खेत में 15 वाट का सोलर पैनल लगवाया था। फिर जब इससे भी काम नहीं चला तब उन्होंने खुद से अपने खेत में 25 वाट का सोलर पैनल लगवाया।
खेमाराम जी कहते हैं कि एक किसान अगर थोड़ा जागरूक हो जाए। सरकार ने जो खेती से जुड़ी योजनाएं बनाई हैं, उनके बारे में खबर रखने लगे तो किसान अपनी आमदनी को दोगुना कर सकता है। सोलर पैनल लगवाने से न केवल फैन पैड की समस्या हल हुई बल्कि अब उनके खेतों को पानी भी समय से मिल जाया करता था।
खेमाराम जी ने भारत में खेती को एक नई दिशा दी है । उन्हें अपने इस कार्य के लिए नेशनल अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। इन्हें कृषि विभाग ने सोलर पैनल लगाने के लिए सम्मानित किया था और 2015 में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने महिंद्रा की तरफ से खेमाराम जी को खरबूजे की इतनी अच्छी पैदावार के लिए भी सम्मानित किया था। микрозайм онлайн
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