ध्यान लगाना क्यों है आवश्यक

हमारे मन में असंख्य कल्पना और विचार चलते रहते हैं, इसके कारण हमारे मन-मस्तिष्क में कोलाहल-सा बना रहता है। इस कोलाहल को दूर करने का सबसे अच्छा और प्रभावी रास्ता है, ध्यान लगाना। ध्यान लगाना हमारे अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटा कर, शुद्ध और निर्मल विचारों को हमारे मन मस्तिष्क में लाता है, जिससे व्यक्ति के अंदर साक्षी भाव बना रहता है।

आज हम, एक प्रचलित कथा के माध्यम से, अपने दर्शकों को, ध्यान के लाभ के बारे में बताएंगे।

नगर में एक धनी सेठ रहा करता था। उसके पास धन संपत्ति और सुख सुविधाओं की कमी नहीं थी, परिवार में कोई परेशानी नहीं थी तथा उसके सभी घरवाले स्वस्थ थे, परंतु उसके जीवन में आनंद नहीं था। उसके मन-मस्तिष्क में हमेशा कोलाहल सा मचा रहता था और वह तनाव में रहता था। एक दिन उसके नगर में एक प्रसिद्ध संत का आगमन हुआ। वे संत-महात्मा नगर के लोगों को प्रवचन सुनाया करते थे और जब सेठ को उस संत के बारे में पता चला तो वह उनके आश्रम पहुंच गया।

वह सेठ संत के पास पहुंचा और उसने सारी परेशानियां बताई। संत ने बड़े ध्यान पूर्वक उसकी सारी परेशानियां सुनी और अंत में कहा कि उसकी सभी परेशानियों का इलाज उनके पास है। संत ने उस सेठ को अपने पास बिठाया और बोला आंखें बंद करके ध्यान लगाओ, परंतु जब सेठ आंखें बंद करके ध्यान लगाने की कोशिश करने लगा तब उसके दिमाग में व्यापार की लेन-देन तथा अन्य विचार घर करने लगे।

उसने बहुत कोशिश किया परंतु वह ध्यान लगाने में असफल रहा। उसने संत को अपनी सारी दुविधा में बताई जिस पर संत उस सेठ को अपने साथ बगीचे में ले गया। विद्वान संत ने बगीचे में पहुंच कर उसे एक गुलाब तोड़ने को कहा, परंतु जैसे ही सेठ ने गुलाब तोड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, उसके हाथ में कांटा चुभ गया। सेठ को पीड़ा में देखकर संत उसे आश्रम में ले गया और उसके हाथ पर मरहम लगा दिया।

संत ने बड़े विनम्र स्वरों में सेठ से बोला कि एक छोटे से कांटे के कारण तुम्हें इतना दर्द हो रहा है, परंतु तुम्हारे मन में क्रोध, लालच, शत्रुता, घमंड, जैसे अन्य बड़े-बड़े कांटे चुभे हुए हैं, जिसके रहते तुम्हें शांति कैसे मिल सकती है।

उन्होंने अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहा कि अगर तुम्हें शांति चाहिए तो तुम्हें सबसे पहले इन सारी बुरी बातों को छोड़ना होगा। सेठ को संत की सारी बातें समझ आ गई। उसने अपना सारा व्यापार घरवालों के हवाले कर दिया और संत का शिष्य बन गया। धीरे-धीरे ध्यान लगाने के कारण उसका मन अंततः शांत हो गया।

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