डी. ए . वी पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले एक छात्र ने बुज़ुर्ग और निर्धन लोगों के लिए कुछ करने की ठानी। इनका नाम अर्जुन देशपांडे है और इन्होंने जब अपना व्यापार शुरू किया था तब ये केवल 16 वर्ष के थे । इनकी माता मार्केटिंग कम्पनी की मालकिन है और इनके पिता एक ट्रेवल एजेंसी चलाते है ।
जब यह अपनी माँ के साथ छुट्टियों में दुबई ,अमेरिका और अन्य देश फ़ार्माक्यूटिकल इवेंट के लिए जाते थे तब इन्हें व्यापार करने की इच्छा हुई । इनके माता पिता ने इनका साथ देने के लिए इनके कम्पनी में पैसे लगा कर उसे शुरू कराया । दवाइयों पर तीस प्रतिशत मुनाफ़ा रख कर बेचा जाता था पर इन्होंने सीधा उत्पादक से दवाई ले कर उसे बेचा जिससे ज़्यादा मारजिन रखने की आवश्यकता ही नही पढी ।
एक रिटेल कम्पनी को इनकी सोच बहुत अच्छी लगी और हिस्सेदारी के लिए आतुर भी थे परंतु बात आगे बढ़ी नही । आगे चल कर जब रतन टाटा के समक्ष बात आया तो वे पैसे लगाने के लिए तैयार हो गए । इन्होंने बहुत से कम्पनी मे पैसे लगाए है जैसे – ओला, स्नेपडील, पेटीएम और क्योंरफ़िट ।
देशपांडे ने इस बात का ख़ुलासा नही किया की टाटा ने कितने पैसे लगाए है । रतन टाटा ने 3 से 4 महीने पहले ही उनके प्रस्ताव को सुन लिया था। टाटा को पार्टनरशिप की दिलचस्पी थी और वे मेंटर बनकर बिजनेस चलाना चाहते थे। जल्दी ही इस डील के किए गए निवेश की औपचारिक घोषणा की जाएगी।
इनकी कम्पनी ,जेनरिक आधार , मे 55 लोग काम करते है । शुरुआत मे इनका रिवेन्यू 6 करोड़ था और अगले तीन सालों में 150-200 करोड़ होने की संभावना है । देशपांडे के प्लान के अनुसार ये आगे हज़ार फ़ार्मेसी को पार्टनर बनाना चाहते है । ये जेनरिक आधार को गोआ , गुजरात ,तमिलनाडु , दिल्ली , आँध्र प्रदेश और राजस्थान तक ले जाना चाहते है । वर्तमान में जेनरिक आधार केवल डाईबटीज और हाईपर टेनशन की दवा देता है पर बहुत जल्द इनके पास कैंसर की दवा भी उपलब्ध होगी ।
ये बहुत जल्द टाटा की सहायता से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच पाएगा और उन्हें बहुत कम रुपये में दवाई बेचने में सफल होंगे । срочный займ