पुस्तक: हलाला
लेखक: भगवानदास मोरवाल
प्रकाशक:वाणी प्रकाशन
पुस्तक समीक्षा- हलाला
“हलाला” लेखक भगवानदास मोरवाल द्वारा लिखा गया है.लेखक इस पुस्तक के माध्यम से मुस्लिम समाज में हो रहे स्त्री शोषण को पाठकों के सामने लाने की कोशिश करते हैं. लेखक भगवानदास ने कई उपन्यास,कहानी,संस्मरण,संपादन लिखे हैं.
इस पुस्तक में लेखक ने इस्लाम के नियमों को करीब से देखने की कोशिश की है जैसे हलाला,तीन तलाक आदि कहानी पढ़ते वक्त आपको इन नियमों के कारण महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को करीब से जानने को मिलेगा.
इन्हीं नियमों में से एक है “हलाला” यह नियम मुस्लिम समाज में सदियों से चले आ रहे नियमों में से एक है. हलाला में तलाकशुदा महिला अपने पति के पास वापस जाना चाहती है तो उसे पहले दूसरे पुरुष से शादी करनी होती है, उसके बाद उसे तलाक देना होगा इस नियम को मानने के बाद ही वह वापस अपने पहले पति के पास जा सकती है. हलाला प्रथा मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा बनाई गई पुरुषों के लिए सजा थी, लेकिन पुरुषों से अधिक नुकसान इससे महिलाओं को हुआ है.
तलाकशुदा नजराना जिसे उसके पति ने बिना कोई वजह बताएं उसे तलाक दिया था लेकिन अब उसके परिवार वाले उसे वापस बहू के तौर पर घर लाना चाहते हैं. लेकिन यह तभी संभव है जब वह हलाला के नियमों व शर्तों को पूरी करें.शर्त पूरी करने के लिए नजराना का निकाह उससे करा दिया जाता है, जो उसके पड़ोस में ही रहता है. उसका नाम डमरु है.डमरू को मिलाकर वह चार भाई हैं उनमें सबसे छोटा है डमरु है उसका रंग काला होने के कारण लोग उसे कलसंडा नाम से भी बुलाते हैं.
उसकी ना ही कोई घर के बाहर इज्जत करता है ना ही घर के अंदर. उसकी तीनों भाभियों उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती और ना ही वह चाहती हैं कि उसकी कभी भी शादी हो ताकि उसके हिस्से की जायदाद उन्हीं तीनों में बट जाए. डमरु और नजराना का निकाह तो हो गया था लेकिन तलाक ना हो सका क्योंकि हलाला की जो शर्त थी वह अभी पूरी नहीं हुई थी. नजराना किसी तरह हलाला की शर्त पूरी करने के लिए तैयार हो जाती है लेकिन डमरु साफ इंकार कर देता है और उसे कहता है कि वह पंचों के सामने यह स्वीकार लेगा की शर्त पूरी हो चुकी है.
शर्त पूरी होने की खबर उड़ते-उड़ते नजराना की पहली सांस तक पहुंचती है यह बात जानकर नजराना की सास का उसे घर लाने का फैसला बदल जाता है. लेकिन उसका पहला पति उसे वापस घर लाना चाहता है. जब पंच डमरु से पूछते हैं कि शर्त पूरी हुई कि नहीं? डमरु शर्त पूरी होने की बात कहता है और तलाक देने ही वाला होता है कि नजराना सबको सच बता देती है कि शर्त अभी तक पूरी नहीं हुई है और अब वह अपनी जिंदगी डमरू के साथ ही बिताना चाहती है.
यह उपन्यास पुरुषों और धर्म के ठेकेदारों से सवाल करता है और यह बताता है कि अब महिलाएं और जुर्म नहीं सहेगी. लेखक ने यह कहानी हरियाणा के मेवात जिले से ली है इसका पता हमें उपन्यास में उपयोग हुई मेवाती बोली से लगता है. उपन्यास पाठकों को मुस्लिम समाज में हो रहे हलाला के नाम पर महिलाओं के साथ अत्याचारों के बारे में बताता है. लेखक ने काफी सहजता के साथ इस विषय को पाठकों के सामने रखा है. इस उपन्यास की खास बात है, संरचना जो किसी को भी मोहित कर सकती है. इसकी भाषा शैली काफी दिलचस्प है जो पाठको अपनी ओर खींचती है.
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