जब राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु मानकर पाया तत्वज्ञान

मनुष्य के जीवन में बुद्धि और बल दोनों महत्वपूर्ण है परंतु, बुद्धि और बल में तुलना की जाए तो बुद्धि की बल से अधिक आवश्यकता होती है। मनुष्य बुद्धि के बिना बल का सदुपयोग नहीं कर सकता। बुद्धि के कारण मनुष्य सफलता को प्राप्त कर सकता है। जिस व्यक्ति को बुद्धि बल प्राप्त होता है, वह असाधारण कार्य करने की क्षमता रखता है और छोटी-छोटी परेशानियों से घबराता नहीं। बुद्धि बल प्राप्त व्यक्ति दार्शनिक होता है। बुद्धि और ज्ञान की मदद से आज मानव सभ्यता नई ऊंचाइयों को छू रही है। बुद्धि की मदद से मनुष्य कोई भी मुश्किल कार्य आसानी से कर सकता है। हम सभी को पता है कि मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं की तुलना में अधिक बलशाली नहीं है परंतु, अपनी बुद्धिबल के कारण मनुष्य को जानवरों में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। बुद्धिमान व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में अपने बाहुबल से ज्यादा अपने दिमाग का प्रयोग करता है और अपने लिए रास्ता निकालता है। मनुष्य की असली पहचान उसके रुप या बाहुबल से नहीं परंतु, उसकी बुद्धि और ज्ञान से होती है। महान विद्वानों ने अपने बुद्धिबल के द्वारा अनेक ग्रंथों की रचना की और समाज का मार्गदर्शन किया।

आज हम अपने दर्शकों को एक कथा के माध्यम से बुद्धि बल के महत्व के बारे में बताना चाहेंगे।

प्राचीन काल में, जनक नगरी में, अष्टावक्र नामक एक बालक रहा करता था। वह बेहद बुद्धिमान था परंतु, उसका शरीर 8 जगह से टेढ़ा-मेढ़ा था, इसलिए सब उसका उपहास करते थे। एक दिन जब वह अपने मित्रों के साथ खेल कर घर लौटा तो उसने अपनी मां को चिंतित देखा। उसकी मां ने उसे बताया कि उसके पिता राज्यसभा में शास्त्रार्थ करने गए थे, परंतु अभी तक नहीं लौटे। यह सुनकर अष्टावक्र ने अपनी माँ को दिलासा दी और कहता है कि कल वह राज्यसभा जाकर अपने पिता को ले आएगा।

अगले दिन, जब अष्टावक्र राज्यसभा में पहुंचा तो वहां मौजूद सभी विद्वानों ने उसके रूप एवं शरीर को देखा और जोर-जोर से हँसने लगें। यह देख कर अष्टावक्र थोड़ी देर चुप रहा और फिर वह भी जोर से हंसने लगा। उसको हंसता हुआ देख राजा जनक को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने अष्टावक्र से उसके हंसने का कारण पूछा। अष्टावक्र ने बड़ी विनम्रता से राजा को जवाब दिया और कहने लगा कि उसने सुना था की राजा की सभा में अनेक विद्वान आए हैं, परंतु यहां तो सब अपने ज्ञान के घमंड में चूर मूर्ख बैठे हैं और इन्हीं मूर्खों पर वह हंस रहा है। उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला कि ज्ञान और बुद्धि किसी शरीर की मोहताज नहीं होती। उसका शरीर अवश्य टेढ़ा है परंतु उसकी आत्मा टेढी नहीं है। यदि नदी टेड़ी है तो क्या उसका पानी भी टेड़ा होता है?

अष्टावक्र की ज्ञान पूर्वक बातें सुनकर राजा जनक बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने उस बालक अष्टावक्र को अपना गुरु बना लिया।

अष्टावक्र और राजा जनक की एक रोचक कहानी

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