पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच श्रेष्ठा को लेकर विवाद हो गया। दोनों के इस विवाद को देखते हुए एक अग्नि स्तंभन प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई कि जो इस स्तंभ का आदि और अंत जान लेगा, वही श्रेष्ठ होगा। ब्रह्मा जी और विष्णु जी, दोनों ने बहुत प्रयास किया, परंतु इसका रहस्य नहीं जान पाए तब भगवान विष्णु ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली और अग्नि स्तंभ के सामने अपना रहस्य प्रकट करने की विनती की।
उस अग्नि स्तंभ से भगवान शिव निकले और उन्होंने बताया कि वे आदि और अंत है, जिसके बाद भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने उस अग्नि स्तंभ की पूजा की और वह अग्नि स्तंभ दिव्य ज्योति लिंग में बदल गया। जिस दिन घटना हुई उस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
महाशिवरात्रि को, शिव और शक्ति के मिलन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिव और शक्ति, यानी शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
भगवान शिव से जुड़े भारतवर्ष में अनेकों मंदिर हैं, परंतु क्या आपको पता है कि भगवान शिव एक प्राचीन मंदिर पाकिस्तान में भी है? जी हां आपने सही सुना। यह 900 साल पुराना भगवान शिव का कटासराज मंदिर है।
कटासराज मन्दिर
कटास राज मंदिर पाकिस्तान पंजाब के उत्तरी भाग में नमक को पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह पुराना मंदिर लाहौर से 280 किलोमीटर दूर, पहाड़ी पर बना है। यह मंदिर सिंध प्रांत के चकवाल जिले में है। इस स्थान से जुड़ी हिंदू धर्म की कई मान्यताएं हैं, जिसके कारण यह हिंदुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र है।
भगवान शिव के आंसू से बना ‘अमृत कुंड’
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान को शिव नेत्र माना जाता है। कहते हैं कि जब माँ पार्वती सती हुई थी, तो भगवान शिव दुख के कारण अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए और उनके दो आंसू टपके। एक आंसू की बूंद कटास पर टपका जहां वह अमृत बन गया और आज भी महान सरोवर, अमृत कुंड के नाम से मौजूद है और दूसरा आंसू अजमेर, राजस्थान में टपका। कटास का यह कुंड 150 फीट लंबा और 90 फीट चौड़ा है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने अपने वनवास तथा अज्ञातवास के कुछ दिन इन्हीं पहाड़ियों में बिताए थे और उन्होंने यहां कुछ पुराने मंदिरों का निर्माण भी किया था। परंपरागत रूप से, हिंदुओं द्वारा माना जाता है कि यह वह स्थल है, जहां यक्ष के साथ एक पहेली प्रतियोगिता में धर्मराज युधिष्ठिर विजय हुए थे और अपने भाइयों की जान बचाई थी। मान्यता के अनुसार, यक्ष ने चार पांडु पुत्र: अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव से प्रश्न किए परंतु वह जवाब नहीं दे पाए, जिसके परिणाम स्वरूप उस यक्ष ने उन्हें मूर्छित कर दिया, परंतु युधिष्ठिर ने बड़ी विनम्रता से उस यक्ष के सारे प्रश्न सुने और उनका उत्तर दिया। युधिष्ठिर के उत्तर से प्रसन्न होकर यक्ष ने उनके सभी भाइयों को जीवनदान दिया।
एक अन्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह कहा गया है कि हिंदू देवता कृष्ण ने यहाँ के मंदिरों की नींव रखी, और कि उन्होंने अपने हाथों से यह मौजूद शिवलिंग बनाया था।
2005 में भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा मंदिरों का दौरा किया गया था। हाल ही में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस मंदिर में राम, शिव और हनुमान की मूर्तियां पुनर्स्थापित करने की इजाजत दी है। जिसके बाद यह मंदिर, हिंदू समुदाय के लोगों के लिए खोल दिया गया।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद, पाकिस्तान सरकार इस मंदिर को यूनेस्को की हेरिटेज लिस्ट में लाने का प्रयास कर रही है। 2019 दिसंबर में, 97 हिंदू श्रद्धालुओं का जत्था इस मंदिर में पूजा करने गया था।
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