मनुष्य का जीवन संघर्ष और चुनौतियों से भरा रहता है। इस धरती पर जन्म लेने वाले सभी मनुष्य अपनी किस्मत, विधाता के यहां से लिखवा कर आते हैं, परंतु कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी मेहनत, लगन और निरंतर परिश्रम से अपनी किस्मत खुद लिखते हैं। ये वह लोग हैं, जो विपरीत परिस्थितियों से समझौता नहीं करते, परंतु उनका डटकर सामना करते हैं और सकारात्मक सोच तथा दृढ़ आत्मविश्वास के साथ, विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता को प्राप्त करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति, एपीजे अब्दुल कलाम ने छात्रों को संबोधित करते हुए बहुत सुंदर बात कही थी:-
“हमारे जीवन में समस्याओं का आना अति आवश्यक है, अन्यथा हम सफलता का स्वाद नहीं ले पाएंगे”
संघर्ष, चुनौतियां एवं विपरीत परिस्थितियां हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं और जो व्यक्ति इन सब का सामना करने की बजाय दूर भागता है, वह समस्याओं और संघर्षों के भंवर जाल में फंसता चला जाता है, जिससे निकलना बहुत मुश्किल है।
हर सफल इंसान की जिंदगी में एक संघर्ष की कहानी जरूर होती है और आज हम अपने दर्शकों को, इस आर्टिकल के माध्यम से, एक ऐसी ही कहानी से अवगत कराने जा रहे हैं। यह कहानी है लक्ष्मी शंकर पाठक की जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से इंग्लैंड में भारतीय खाने का बहुत बड़ा बिजनेस एंपायर खड़ा किया।
1940 के दशक में लक्ष्मी शंकर पाठक का परिवार आर्थिक तंगी और अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा प्रोत्साहित किए जाने के कारण गुजरात से केन्या आ गए। परंतु 1956 में, विद्रोह के बाद उनका केन्या में रहना और गुजारा करना मुश्किल हो रहा था। विद्रोह के कारण उनका बिजनेस नहीं चल पा रहा था जिसके कारण वहाँ भी लक्ष्मी पाठक के परिवार को पैसों की कमी होने लगी। अंततः वह अपने परिवार के साथ लंदन आ गए। लक्ष्मी शंकर पाठक ने 1945 में शांता गौरी पाठक से शादी की और उनके चार बेटे और दो बेटियाँ हैं।
एक बेहतरीन आईडिया, जिसने बदली लक्ष्मी शंकर पाठक और उनके परिवार की जिंदगी
लंदन आने के बावजूद उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुई क्योंकि उन्हें अपने परिवार का पालन पोषण करना था और लंदन जैसे अनजान शहर में उनका कोई जानने वाला नहीं था। पैसों के लिए उन्होंने लंदन की गलियों में झाड़ू लगाना और सफाई करने का काम शुरू किया। शुरुआती दिनों में उनका परिवार फुटपाथ पर ही सोता था और उन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिल पाता था।
एक दिन उनके दिमाग में आईडिया आया कि क्यों ना भारतीय व्यंजनों का व्यापार लंदन में भी किया जाए, क्योंकि केन्या में वह इसी का व्यापार किया करते थे। इस आइडिया को साकार करने के लिए लक्ष्मी शंकर ने एक बेसमेंट फ्लैट रेंट पर लिया, जहां वह भारतीय व्यंजन जैसे समोसे, चटनी, अचार बनाया करते थे।
शुरुआती दिनों में वह और उनकी पत्नी 18 घंटे काम किया करते थे और उनका पूरा परिवार इसे बेचने में उनकी मदद करता था। उनके बनाए भारतीय व्यंजन, लंदन में रहने वाले भारतीयों को बेहद पसंद आने लगे। परंतु, शुरुआती दिनों में, वह इन व्यंजनों को बेहद मामूली दाम पर बेचते थे, इसलिए उनका प्रॉफिट कम रहता था। वह अपने व्यंजनों की डिलीवरी, अपने 6 वर्षीय बेटे से करवाया करते थे क्योंकि उनके पास डिलीवरी वाला लड़का रखने के लिए पैसे नहीं थे। सड़क पर चलने वाले लोग उस छोटे बच्चे को पता बता दिया करते थे इसलिए लक्ष्मी शंकर का खर्चा कम होता था। शुरुआती दिनों में उनकी रसोई काफी छोटी थी इसलिए उन्हें जल्दी-जल्दी अपने व्यंजनों को ग्राहकों तक पहुंचाना पड़ता था।
धीरे-धीरे उनके इस आइडिया ने असर दिखाना शुरू किया और उनका कारोबार बढ़ता गया। उन्हें शादी-पार्टी के लिए आर्डर मिलने लगे जिसके कारण उनका मुनाफा बढ़ने लगा। कारोबार बढ़ने के साथ उन्होंने एक बड़ा कमरा किराए पर लिया और अपनी दुकान खोली। यह दुकान काफी समय तक भारतीयों और लंदन के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही क्योंकि इस दुकान पर लक्ष्मी शंकर चटपटा भारतीय व्यंजन बेचा करते थे। उन्होंने अपनी दुकान और ब्रांड का नाम ‘Patak’s’ रखा जो आगे चलकर बेहद लोकप्रिय हुआ।
1965 में उनके इस बिजनेस को थोड़ी परेशानियां झेलनी पड़ी, क्योंकि उनके किसी मैनेजर ने बहुत सारी सब्जियों आर्डर कर दी थी जिसका दाम चुकाने में वह असफल रहे और उनकी कंपनी दिवालिया होने के कगार पर आ गई थी। परंतु लक्ष्मी शंकर ने इन परिस्थितियों का सामना किया और इसे अपने अनुकूल बनाया। उन्होंने उन सब्जियों से चटनी और अचार बनाएं और अपने प्रोडक्ट रेंज को आगे बढ़ाया, जिससे उनका बिजनेस और तरक्की करने लगा।
1972 में हुई एक घटना ने उनके बिजनेस को बुलंदियों पर पहुंचा दिया। 1970 के दशक में, युगांडा से एशियाई शरणार्थी इंग्लैंड आने लगे। इस मौके का भरपूर लाभ उठाने के लिए लक्ष्मी शंकर ने, इंग्लैंड की सरकार से दरख्वास्त करके शरणार्थियों के लिए खाने का प्रबंध करना शुरू कर दिया। उनकी कंपनी शरणार्थियों को विभिन्न प्रकार के खाना उपलब्ध कराया करती थी और बाद में, जब उन शरणार्थियों ने अपने-अपने रेस्टोरेंट खोलें तो उन्होंने लक्ष्मी शंकर की कंपनी से अपना कच्चा माल लेना शुरू किया, जिससे लक्ष्मी शंकर पाठक का बिजनेस कई गुना बढ़ गया।
लक्ष्मी शंकर पाठक का निधन 1997 में हो गया, परंतु उनकी कंपनी दुनिया भर में 700 से अधिक लोगों को रोजगार देती है और उनके उत्पाद 40 से भी अधिक देशों में निर्यात किए जाते हैं। उनके उत्पाद ब्रिटेन के लगभग 90 परसेंट रेस्टोरेंट में उपयोग किए जाते हैं।
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