राजस्थान का चूरू जिला बना महिला सशक्तिकरण की एक अनोखी मिसाल

भारत में महिला सशक्तीकरण की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। भारत उन देशों में से है जो महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं। इसके कई कारण हैं। सबसे पहले, भारत में महिलाओं को ऑनर ​​किलिंग का खतरा है। उनके परिवार को लगता है कि अगर वे अपनी विरासत की प्रतिष्ठा के लिए शर्म की बात है, तो वे अपने जीवन को लेने का अधिकार रखते हैं। इसके अलावा, शिक्षा और स्वतंत्रता परिदृश्य बहुत प्रतिगामी है।  पुरुष अभी भी कुछ क्षेत्रों में महिलाओं पर हावी हैं।

परंतु जैसे-जैसे समय बदल रहा है महिलाओं की स्थिति भी दिन प्रतिदिन सुधरती जा रही है धीरे-धीरे महिलाएं आगे आ रही हैं अपने घर के साथ-साथ काम की बागडोर अपने हाथों में ले ली है। ऐसे कई किस्से हैं जिनसे हमें महिला सशक्तिकरण कि प्रेरणा मिलती है आइए आपके साथ ऐसा ही एक किस्सा बांटते हैं।

जब भी हम भारत में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो हमें केरल जैसे समृद्ध और संपन्न राज्य याद आते हैं। राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों की गिनती, महिला सशक्तिकरण के मामले में काफी पिछड़े राज्य में होती है। परंतु, आज हम राजस्थान के चूरू जिले के बारे में बात करेंगे जहां ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं।

कस्तूरबा कैंटीन इस पहल की सिर्फ एक पहली सीढ़ी उसके पश्चात जिले के प्रशासन ने महिलाओं को प्लांट, जैविक नर्सरी ,डब्बे ,मसाले, हैंडीक्राफ्ट शॉप और चप्पल फैक्ट्री मैं शामिल करना शुरू कर दिया और इसका अंजाम लिखा हुआ कि आज 800 से ज्यादा महिलाएं इस पहल से जुड़ चुकी है और 10,000 से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं इसका पार्ट है।

राजस्थान के चूरू जिले के ग्रामीण महिलाएं राजस्थान आजीविका मिशन के तहत आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। राजीविका प्रोजेक्ट मैनेजर, बजरंग लाल सैनी के मुताबिक यह सब जिलाधिकारी संदेश नायक की पहल से संभव हो सका है। आईएएस नायक ने महिला सशक्तिकरण के तरफ अपना योगदान देते हुए, महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को गृह उद्योग से जोड़ने की शुरुआत की ताकि महिलाओं को रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त हो सके।

उनकी इस शानदार पहल की शुरुआत चूरू जिले के कलेक्ट्रेट की कस्तूरबा कैंटीन खोलने से हुई थी। इस कैंटीन में 25 महिलाएं काम करती हैं और वे छोटे से लेकर बड़े, सभी अधिकारियों को खाना परोसने का काम करती हैं। यह कैंटीन पूरी तरह महिलाओं द्वारा चलाया जाता है।

कस्तूरबा प्रोडक्ट कॉर्नर संभालने वाली अंजू ने सूत्रों को बताया की कैसे इस पहल ने महिलाओं को अपने हुनर की सही पहचान दिलाने में मदद की है।

उन्होंने बताया कि‌ अब कैसे अलग-अलग गांवों के महिला समूह उनके बनाए हुए हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट जैसे, सजावट के सामान, सिलाई कढ़ाई किए हुए कपड़े खरीदते हैं और फिर उचित दमों पर सभी प्रोडक्ट्स को बाजार में पहुंचाया जाता हैं । पहले, इन महिलाओं को अपने उत्पाद ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए बहुत परेशानियां उठानी पड़ती थी खुद दुकानदारों से मोलभाव करना पड़ता था और उन्हें उचित दाम भी नहीं मिलता था लेकिन अब प्रशासन की मदद से सब बहुत आसान हो गया है।

राजीविका गृह उद्योग के नाम से एक फैक्ट्री भी शुरू की गई। इस फैक्ट्री में हवाई चप्पलें, मसाले और दाल बन रही हैं। यह सभी काम महिलाएं ही संभाल रही हैं।

इस गृह उद्योग से जुड़ी फैक्टर को शुरू करने के लिए 210 महिलाओं ने पाँच-पाँच हजार अपनी तरफ से निवेश किया और आज इस फैक्ट्री में लगभग 5000 से अधिक महिलाएं काम करतीं हैं और आज हर महिला कम से कम 2000 से 8000 तक कमा लेती है। जिससे उनके घर खर्च निकल जाता  और बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भी निकल जाता है। इन सबके लिए उस जिले की हर महिला वहां के कलेक्टर साहब के आभारी है जिनके प्रयासों की वजह से आज उनकी स्थिति बहुत बेहतर है।

हवाई चप्पल बनाने का काम 15 महिलाएं संभालती हैं, वही मसाले और दालों के लिए अलग-अलग महिलाओं को नियुक्त किया गया है। पहले सभी सूखे मसाले बाहर से मंगवाया जाते थे, परंतु अब प्रशासन की पहल से जैविक खेती की शुरुआत की गई है; जिससे महिलाएं जैविक खेती की ट्रेनिंग ले रही हैं और खुद मिर्च, हल्दी जैसे फसलों को खेतों में तैयार कर रही हैं। रतनगढ़ ब्लॉक में 76 ग्राम संगठन है और प्रशासन ने हर एक संगठन में राजीविका दुकान खुलवाई है। इन दुकानों को महिलाएं ही चलाती हैं और यहां दाल, चप्पल, मसाले, आदि, फैक्टरी से लाकर ग्राम संगठन तक पहुंचाए जाते हैं। यही ग्राम संगठन स्कूलों में मिड-डे मील के लिए दाल और मसाले भी उपलब्ध करवाते हैं। रोजगार के साथ-साथ उन्हें पहचान और सम्मान भी मिला है।

साथ ही प्रशासन में “आपदा नियंत्रण फंड ”भी शुरू किया है जिसमें हर महिला ₹10 डालती है और यदि किसी महिला को जरूरी को जरूरत पड़ती है तो वह आपदा की स्थिति में इस फंड से पैसे निकाल सकतीं हैं। इस से ही सीख मिलती है कि अगर प्रशासन का साथ‌, संसाधन और अपनों का प्रोत्साहन मिले तो हर महिला कुछ कर सकती है और आत्मनिर्भर बन सकती हैं।

सभी‌ भारतीय सरकारों को चूरु प्रशासन से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने अपने राज्य में महिला सशक्तिकरण के कार्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।

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