दुनिया भर में क्रिकेट की लोकप्रियता के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे क्रिकेट का नाम लेते ही लोगों में एक अलग सा उत्साह देखने को मिलता है और भारत में तो क्रिकेट गली-मोहल्ले से लेकर बड़े-बड़े स्टेडियम में खेला जाता है और बच्चों से लेकर बड़ों का मनपसंद खेल भी क्रिकेट है.अगर मेरी बात करें तो मुझे तो क्रिकेट बहुत पसंद है आपको भी होगा.कभी ना कभी कोई ना कोई क्रिकेटर ऐसा रहा होगा जिसे हम किसी ना किसी कारण से उसे याद करते होंगे. तो आज हम उन्हीं में से एक क्रिकेटर की बात करेंगे.
जब भारत में क्रिकेट टीम बनना शुरू ही हुआ था यानी शुरुआती समय में,आज हम उसी समय की टीम के कप्तान से जुड़ी एक घटना के बारे में जानेंगे इस कप्तान का नाम है विजय आनंद गजपति राजू लेकिन उन्हें लोग उनके असली नाम की जगह महाराज ऑफ विजयनगरम और विज़ी के नाम से ज्यादा जानते हैं. विज़ी का जन्म 28 दिसंबर 1905 में उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में हुआ विज़ी को क्रिकेट में बहुत दिलचस्पी थी.विज़ी के पिता विजयनगरम के राजा थे,उनका नाम पुष्पती विजयरामा गजपति राजू था.विज़ी उनके दूसरे बेटे थे इसी कारण उन्हें महाराजकुमार की पदवी मिली.अब हम विज़ी के कुछ अनसुने किस्से जानेंगे.
पिता की मृत्यु के बाद विज़ी अपने परिवार के साथ बनारस में ही रहने लगे.विज़ी को क्रिकेट इतना पसंद था कि उन्होंने 1926 में अपनी खुद की क्रिकेट टीम बना ली उन्होंने खुद के पैलेस में ही क्रिकेट ग्राउंड बनवा लिया. इस टीम में सिर्फ भारतीय ही नहीं विदेशी भी शामिल थे.विज़ी क्रिकेट में ही नहीं बल्कि टेनिस में भी उस्ताद थे.
विज़ी कहते थे कि वह शिकार भी बहुत अच्छा करते हैं लेकिन बाकी इसे सत्य नहीं मानते थे. एक रोज वह कमेंट्री कर रहे थे तो वेस्ट इंडीज के दिग्गज रोहन कन्हाई ने कुछ ऐसा कहा कि विज़ी को काफी शर्मिंदा होना पड़ा दरअसल विज़ी का दावा था कि वह लगभग 300 टाइगर मार चुके हैं इसी के जवाब में उन्होंने कहा कि “सच में क्या ऐसा है? मुझे तो लगा कि कॉमेंट्री करते वक्त तुमने अपना ट्रांजिस्टर खुला छोड़ दिया और वह बोर होकर मर गए. इसी बात को लेकर विज़ी को लोगों के सामने काफी शर्मिंदा होना पड़ा.
महाराज ऑफ विजयनगरम VS महाराज ऑफ पटियाला
बात दरअसल 1930 की है विज़ी ने अपनी दौलत खर्च कर क्रिकेट के दिग्गजों को अपने पैलेस पर क्रिकेट खेलने के लिए आमंत्रित किया.यहां तक तो ठीक था लेकिन जब उन्होंने सीधा टक्कर महाराजा ऑफ पटियाला भुप्पी से ली तो वह पिछड़ गए भुप्पी क्रिकेट में विज़ी से कई कदम आगे निकले. इसके बाद विज़ी ने 1932 में इंग्लैंड टूर स्पॉन्सर करने की घोषणा कर दी और इसी के साथ उन्हें डेप्युटी वाइस कैप्टन की पदवी मिल गई लेकिन स्वास्थ्य कारणों के चलते वह इस टूर पर जाने से चूक गए.
1936 में जब वह गए तो यह उनके लिए काफी नुकसानदेह साबित हुआ इस टूर के दौरान उनका एवरेज 16.21 से 600 रन रहा और तीन टेस्ट मैच में उनका एवरेज 8.25 पर 33 रन रहा और उनका झगड़ा लालाजी से हो गया और उन्हें टूर से वापस भेज दिया. इस बात का असर उनकी छवि पर काफी पड़ा.
उन पर इल्जाम लगे कि उन्होंने विपक्षी प्लेयर्स को घूस दी थी ताकि उन्हें खराब गेंदे की जाए,क्रिकइंफो ने कहा कि उन्होंने विपक्षी टीम के कप्तान को सोने की घड़ी दी है. इन्हीं आरोपों के कारण उनके कैरियर का अंत हो गया कुछ साल गुमनामी की जिंदगी जी कर जब वह 1965 में दोबारा लौटे तो इस बार वह एडमिनिस्ट्रेटर और ब्रॉडकास्टर के रूप में सामने आए लेकिन वह इतने लोकप्रिय नहीं हुए जितने पहले थे साथ ही उनके साथी कॉमेंटेटर को भी उनका काम पसंद नहीं आया और 2 दिसंबर 1965 में उनका देहांत हो गया.