एक आश्रम में एक बूढ़े संत रहा करते थे। काफी दिनों से उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही थी। उन्हें इस बात का आभास पहले से ही हो गया था कि अब वे ज्यादा दिन नहीं जी सकेंगे। उन्होंने सोचा कि क्यों ना वे अपने शिष्यों को कुछ ऐसा बता कर जाएं, जिससे वे अपने जीवन में हमेशा ख़ुश रह सकें और दूसरों को भी ख़ुश रख सकें। इसलिए अपने जीवन के कुछ आख़री दिनों में उन्होंने अपने सभी शिष्यों को और चेलों को अपने पास बुलाया।
जब सभी शिष्य उनके पास आ गए तब गुरुजी ने कहा कि शिष्यों -“मैं अपना मुंह खोल रहा हूं और तुम सबको यह बताना है कि मेरे मुँह में कितने दांत हैं।”
चेलों और शिष्यों ने बारी-बारी कर उनका मुँह देखा और फिर एक साथ बोले कि -“गुरु जी ! आपके मुंह में तो एक भी दाँत नहीं है।
संत ने कहा-” अच्छा तो तुम्हें मेरे मुंह में क्या नज़र आ रहा है?” उनमें से एक शिष्य ने कहा -“गुरु जी ! मुझे आपके मुँह के अंदर जीभ नज़र आ रही है।” सभी शिष्य एक साथ बोले -“हाँ! हाँ! गुरु जी ! आपकी जीभ तो अभी भी बची हुई है पर ऐसा कैसे हो सकता है ?”
गुरु जी बोले-” देखो शिष्यों! जब मेरा जन्म हुआ था उस वक्त भी जीभ थी और अब जब मैं दिन-ब- दिन मौत के करीब आता जा रहा हूँ तब भी यह जीभ है । मेरे जन्म के काफी दिनों बाद यह दाँत आए थे। फिर भी, मेरे दाँत नहीं बचे हैं और यह जीभ बची हुई है। जानते हो ऐसा क्यों है?”
उनके सारे शिष्य कुछ सोचने लगे थोड़ी देर बाद सब बोले-” महाराज ! आप ही बताइए कि ऐसा क्यों है ?” संत ने कहा -“शिष्यों! जीवन के इसी रहस्य को जानने के लिए मैंने तुम सबको यहाँ बुलाया है। इस जीभ में मधुरता है और यह लचीली भी है इसलिए आज भी है लेकिन दाँत हमेशा से ही कठोर हुआ करते हैं इसलिए आज नहीं बचे, वे टूट चुके हैं। दाँत जीभ के बाद में आए थे पर अपनी कठोरता के कारण जीभ से पहले ही उनका अस्तित्व समाप्त हो गया।”
संत ने कहा -” इसीलिए शिष्यों! अगर लंभी उम्र प्राप्त करना चाहते हो तो कठोर नहीं ,विनम्र बनना सीखो।” पर शिष्य तो शिष्य ही होते हैं। एक उदाहरण से भला उन्हें कहां यकीन होने वाला था इसलिए उन्होंने संत से दूसरा उदाहरण बताने को कहा।
संत ने कहा -“शिष्यों! क्या तुममें से किसी ने बांस देखा है ? जब तेज आँधी आती है , तो बड़े-बड़े पेड़ टूट जाते हैं, धराशाई हो जाते हैं पर बांस का आँधी बाल भी बांका नहीं कर पाती है तो इसलिए बहुत जरूरी है कि आप विनम्र बनें और अपने जीवन को खुशहाली से शांतिपूर्ण व्यतीत करें।”
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है -“विनम्र होना मनुष्य का प्राथमिक लक्षण है। विनम्रता एक ऐसा गुण है, जिससे शांति का संचार होता है। विनम्रता एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को अहिंसक बनाती है। मनुष्य अगर अपना जीवन सही दिशा में ले जाना चाहता है तो उसे विनम्रता के भाव को अपने अंदर लाना ही होगा। займ на карту