पुस्तक:बा
लेखक:गिरिराज किशोर
प्रकाशक:राजकमल प्रकाशन
पुस्तक समीक्षा:बा
उपन्यास “बा” गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया उपन्यास है.यह उपन्यास कस्तूरबा गांधी के जीवन पर लिखा गया है.यह उपन्यास उनकी जीवन गाथा और कुछ कही-अनकही बातों को पाठकों के सामने लाने की कोशिश करता है. लेखक पाठकों को कस्तूरबा गांधी के योगदानों से परिचित कराना चाहता है.जब आप यह उपन्यास पढ़ना शुरू करेंगे तो एक सवाल आपको बार-बार परेशान करेगा वह सवाल है,कि क्या महात्मा गांधी ने जो भी किया उसमें कस्तूरबा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी और अगर वह ना होती तो क्या महात्मा गांधी देश के लिए इतना सब कुछ करते?
लेखक इस उपन्यास से पहले एक उपन्यास जिसका नाम “पहला गिरमिटिया”महात्मा गांधी पर लिख चुके हैं.लेखक ने उनकी पत्नी को केंद्र पर रखकर उपन्यास लिखा है. सभी लेखकों ने हमेशा ही महात्मा गांधी के जीवन पर लिखने का सोचा और कई लेखकों ने लिखा भी, लेकिन जीवन भर उनका साथ देने वाली जो उनके वजूद के लिए अपना वजूद खो चुकी है उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी पर शायद ही किसी ने लिखने की सोचा और अगर कहीं लिखा भी है तो वह इतने महान व्यक्तित्व वाली कस्तूरबा गांधी के लिए काफी नहीं है. हम सभी कस्तूरबा गांधी को महात्मा गांधी के पत्नी के तौर पर ही जानते हैं लेकिन इससे अलग उनका खुद का व्यक्तित्व और खुद की पहचान भी थी. कस्तूरबा गांधी आम पत्नियों की तरह नहीं थी उनका व्यक्तित्व आम पत्नियों से कई विशाल था.लेखक ने कस्तूरबा गांधी पर लिखने से पहले गहन शोध किया और जानकारी इकट्टी की थी और कई अनसुने प्रसंगों को पाठकों के सामने लाए और एक सशक्त महिला कस्तूरबा गांधी का चित्रण किया जो कि अपने पति की तरह कि एक मजबूत और दृढ़ निश्चय वाली इंसान थी.
अगर आप गांधी जी को जानना चाहते हैं तो उनकी जीवन संगिनी को जानना बेहद जरूरी है. क्योंकि उन्हें समझने के पश्चात ही आप गांधी जी को समझ सकते हो कि वह कैसे व्यक्ति थे?वह अपने बच्चों के लिए क्या थे?वह कैसे पति थे? आदि. कस्तूरबा गांधी पोरबंदर से थी और जिनके साथ वह बचपन में खेलती – कूदती थी वह मोनिया बाद में उनके पति बन जाते हैं.गांधी जी को बचपन में सब लोग प्यार से मोनिया कहकर बुलाते थे.मोनिया कस्तूरबा गांधी से 6 महीने छोटे थे लेकिन वह हमेशा इस बात पर झगड़ते थे कि वह कस्तूरबा से बड़े हैं. पति की बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए कस्तूरबा ने जुदाई सही.
मोनिया बैरिस्टर की डिग्री लेकर लौटे थे तब उन के पास कोई काम नहीं था उन्हें समझने वाली उस समय एकमात्र कस्तूरबा थी. बाद में मोनिया दक्षिण अफ्रीका गए और वहां उनके व्यक्तित्व को एक अलग पहचान मिली.लोग उन्हें जानने लगे और उनका ओहदा भी बढ़ने लगा.ओहदे के साथ-साथ उनका रवैया भी बदल गया. उनके इस रवैए के चलते कस्तूरबा को कई बार तकलीफे भी सहनी पड़ी लेकिन उनकी सहनशीलता की दाद देनी पड़ेगी. लेकिन वक्त आने पर प्रतिशोध भी किया और जहां उन्हें अपनी बात रखनी होती थी, वह बड़ी दृढ़ता से रखती थी.
यह पुस्तक कस्तूरबा गांधी के जीवन के हर पहलू को पाठकों के सामने रखती है. भाषा सहज व सरल है.लेकिन कई जगह ऐसी चीजें भी है जो पाठकों को बोर कर सकती हैं.लेकिन आपको किसी इंसान के बारे में जानने में रुचि है तो यह उपन्यास आपको काफी अच्छा लगेगा.
रेटिंग:4/5⭐⭐⭐⭐