किसानों को हम आम भाषा में अन्न देवता भी कहते हैं। हम उन्हें अन्न देवता इसलिए कहते हैं क्योंकि वह दिन रात एक कर के लोगों का पेट पालने के लिए किसानी करते हैं। अगर वह ना होते तो आज के दौर का इंसान भूख से हीं जिंदा मर जाता। परंतु, यह लोग अपने घर-बार को छोड़कर देश की सेवा करते हैं। हमारा देश किसानी के क्षेत्र में धीमे-धीमे करके आगे बढ़ रहा है। आज समय के साथ किसान भी मॉडर्न होते जा रहे हैं।
हमेशा से हमारे दिमाग में किसान की एक यही तस्वीर बनती आई है कि वह गरीब होते हैं और उन्हें कुछ भी नहीं आता। लेकिन ऐसा नहीं है। भले ही वह किताबी ज्ञान ना जानते हो। परंतु, वह हमसे ज्यादा ज्ञानी होते है क्योकि जो ज्ञान उनके पास हैं, वह ज्ञान किसी के पास भी नहीं।
आज के समय में देश तरक्की कर रहा है। और वैसे हीं किसान भी देश के साथ आगे बढ़ रहे हैं। आज वह टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं और मॉडर्न इंडिया में अपना योगदान दे रहे हैं। उन्हीं के बीच में से आज हम एक ऐसे किसान की बात करने जा रहे हैं। जो ना केवल किसानी के क्षेत्र में आगे हैं बल्कि और दूसरे क्षेत्रों में भी ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। आइए शुरू करते हैं उनकी सफलता की कहानी-
जैविक किसानी के देवता
बाबूलाल दाहिया मध्य प्रदेश के छोटे से जिले सतना के पास पड़ने वाले गांव, पिथौराबाद के निवासी हैं। वह ना केवल किसान है बल्कि एक सफल लेखक, कवि इत्यादि भी हैं। आज उनकी उम्र तकरीबन 75 साल तो होगी ही। उनके पिता भी खेती-किसानी किया करते थे। इसी वजह से उन्हें भी खेती-किसानी में हमेशा से ही रूचि रही है। जब उनकी छुट्टियां पड़ती, तब वह अपने पिता के साथ खेत पर जाया करते थे। वहां उनके पिता उनको विभिन्न प्रकार की खेती की तकनीके सिखाया करते थे। इसी वजह से इसमें उनका ध्यान और भी ज्यादा लग गया था। फिर कुछ समय बाद उन्होंने भी खेती-किसानी करना शुरू कर दिया था।आपको बता दें कि वह इतना सब कुछ करने के बावजूद भी पोस्ट मास्टर की नौकरी करते थे। अभी कुछ सालों पहले ही वह एक सम्मान भरी पोस्ट मास्टर की नौकरी से रिटायर हुए हैं। और आज वह दुनिया के लिए “सीड मैन”बन चुके हैं।
कम बारिश मे भी अच्छी फसल
आज के समय में वह जैविक खेती के लिए जाने जाते हैं। हमेशा से ही उन्हें अपनी प्रकृति से अधिक लगाव था। इसी वजह से उन्होंने ऐसी तकनीकों को अपनी खेती में आजमाया। जिससे कि उनका भी फायदा हो और धरती को नुकसान भी ना पहुंचे। उनकी खेती करने का तरीका इतना ज्यादा सफल है कि वह कम से कम बारिश में भी अच्छी खासी फसल उगा सकते हैं। आपको बता दें कि कुछ सालों पहले जब बहुत कम बारिश हुई थी। उस समय ज्यादातर किसानों की फसल बर्बाद हो गयी थी और कुछ ने तो इसी कारण आत्महत्या भी कर ली थी। परंतु, बाबूलाल जी कि जो फसल थी, वह अंत तक टकी रही। एक भी अनाज के दाने की बर्बादी नहीं हुई थी।
खेती मे इस्तेमाल करते हैं देसी बीज
उनको देसी बीज से बहुत ज्यादा लगाव है। इसी लगाव के कारण आज उनके पास तकरीबन 110 विभिन्न प्रकार के बीज की वैरायटी भी है। वह इन्हीं को अपनी खेती के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसी वजह से हर साल उनकी फसल बहुत ही अच्छी होती है, जिसकी वजह से अन्य किसान भी उनको अपना गुरु मानते हैं। वह कभी उनसे सीख लेने आते हैं तो कभी उनके साथ मिलकर खेती करने के लिए उनका सहारा मांगते हैं। किसी भी क्षेत्र में अगर एक इंसान तरक्की कर लेता है, तो उसके चाहने वाले किसी न किसी तरीके से उसके पास पहुंच हीं जाते हैं। इस बात को बाबूलाल जी ने बिल्कुल सही साबित कर दिया है। अभी तक के आंकड़े के हिसाब से कुल 35 गांव के किसान उनके साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के अनाजों की खेती करते हैं।
देसी बीज के विलुप्त होने का डर
देसी बीज मानव जाति के लिए हमेशा से हीं लाभदायक रहे हैं। उनमे कुछ ऐसे गुण होते है, जिसका मुकाबला कोई और नहीं कर सकता। भले हीं टेक्नोलॉजी कितना भी आगे क्यों ना पहुंच जाए। फिर भी वह देसी बीजों का मुक़ाबला कभी भी नहीं कर सकती हैं। उनमें बुरे से बुरे मौसम को भी सहने की शक्ति होती है। इन बीजों को उन राज्यों में भी उगाया जा सकता है, जहां पर बहुत हीं कम तादात मे पानी पाया जाता हो या जहां पर बहुत कम बारिश होती हो।क्योंकि इनकी फसल कम पानी को भी आराम से झेल सकती है।
बाबूलाल जी को भी उनसे इसी वजह से अधिक लगाव है। इस समय उनके पास तकरीबन 200 से भी ज्यादा देसी बीजों की प्रजातियां हैं। साथ में वह यह भी ध्यान रखते हैं कि अगर कहीं से भी उनको देसी बीज प्राप्त हो सकते है। तो वह जल्द से जल्द उस जगह पर पहुंच जाए और वहां पहुंचकर उसको ले ले। वह यह भी चाहते हैं कि हर किसान खेती में देसी बीजों का हीं इस्तेमाल करें क्योंकि यह बहुत अच्छे होते हैं। उन्होंने इस बात पर भी अपना दुख प्रकट किया कि जल्द हीं देसी बीजों की वैरायटी विलुप्त हो जाएगी। वो यह बिल्कुल भी नहीं होने देना चाहते हैं। इसी वजह से वह सबको इकट्ठा करने में लगे हुए हैं।
बाजार, एक बहुत बड़ी चुनौती
वह जब भी किसानों के साथ काम करते हैं। तब उनको वह एक हीं सीख देते हैं कि विदेशी बीजों का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए। साथ हीं साथ वह उनको देसी क्वालिटी वाले बीजों के बारे में भी समझाते हैं। बाजार उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। क्योंकि बाजार में क्रांति आने के बाद से हीं किसान देसी बीजो को भूल चुके हैं। और अब वह ज्यादा से ज्यादा बजारी बीज को अपनी खेती में इस्तेमाल करने लग गए हैं। इसी नेक काम के लिए उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका हैं।
इस बात के संदर्भ में हम भी अन्य किसानों तक बस यही संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि आप लोग ज्यादा से ज्यादा देसी बीजो का इस्तेमाल करें। आज के समय में उनकी बहुत ही ज्यादा जरूरत है। फ़र्टिलाइज़र, केमिकल इत्यादि के इस्तेमाल से देश की मिट्टी धीरे-धीरे बर्बाद होती जा रही है। अगर हम उसको सही करने के लिए कुछ कर सकते हैं, तो यही वह चीज है जो हमारी पृथ्वी की मिट्टी को दोबारा से जीवनदान दे सकती है। साथ हीं साथ उसको हरा भरा भी बनाने में भी सहायता कर सकती है। займы без отказа